'कप्तान साहब' की अमिट स्मृतियां
चोर-डकैतों को पकड़ने में ‘नवज्योति’का योगदान
एक दिवाली ऐसी भी आई
एक दिवाली ऐसी भी आई जिस दिन हमारे पास एक पैसा भी नहीं था। फिकर हो गई, दिवाली कैसे मनाएं? इत्तफाक से छोटी लड़की के पास 10 रु. निकले जो स्कूल की फीस के लिए थे। उनसे दीपावली मनाई।
अजमेर की दरगाह शरीफ को बचाया
15 अगस्त को हिन्दुस्तान आजाद होने के बाद अजमेर से काफी संख्या में करीब 50 हजार मुसलमान पाकिस्तान चले गए। करीब 10 हजार रह गए। सिंध से सिंधी भाइयों का आना शुरू हो गया। उन्होंने बदले की भावना से मुसलमानों को भगाना, लूटना, मारना शुरू कर दिया, लेकिन कोई खास बड़ा नुकसान जान और माल का नहीं हुआ।
इन्द्रकोट में तारा चंद पुलिस सिपाही जो वहां तैनात था उसको कुछ मुसलमानों ने जान से मारकर एक घर में गाड़ दिया। कुछ दिनों तक उसको मारने वालों का पता नहीं चला। मि. खलीलउद्दीन गोरी ने जो डिप्टी सुप. पलिस थे, मारने वालों का पता लगा दिया और लाश बरामद कर ली। हिन्दुओं ने सरकार से लाश की मांग की और कहा कि हम इसका दाह-संकार करेंगे। उनका इरादा था कि लाश का जुलूस दरगाह के सामने से ले जाया जाय और दरगाह के अंदर घुसकर मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार को तोड़फोड़ दिया जाय।
सरकार को शंका तो थी कि कहीं कोई गड़बड़ी न हो। आर्य समाजी नेता पं. जियालाल और कांग्रेसी ज्वालाप्रसाद ने चीफ कमिश्नर से कहा कि हम कोई गड़बड़ नहीं होने देंगे और जुलूस शांति से निकलेगा। मुझे जुलूसियों के इरादे का पता चल गया था। इसलिए मैैंने पुलिस सुपररिन्टेडेंट सुघड़सिंह और चीफ कमिश्नर शंकरप्रसाद से कहा का आप जुलूस को किसी भी हालत में दहगाह के सामने से न जाने देना, वरना जुलूस वाले दरगाह को नष्ट-भ्रष्ट कर देंगे। दोनों नेताओं ने बहुत आश्वासन दिया कि कोई गड़बड़ न होगी, जुलूस दरगाह बाजार से ले जाने दिया जाय लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई। नए बाजार के कड़क्के चौक दरवाजे के सामने पुलिस तैनात कर दी और जुलूस को उधर से न जाने दिया और एक बड़ी घटना होने से टल गई।
चोर-डकैतों को पकड़ने में ‘नवज्योति’का योगदान
कुछ वर्ष पूर्व अजमेर के सावित्री कालेज के सामने जब एक व्यक्ति स्टेट बैैंक से दर हजार रुपए लेकर स्कूटर में बैठकर जा रहा था कि सावित्री कालेज के सामने दो लुटेरे उसे लूटकर भाग गए। पुलिस डिप्टी सुप. श्री खलीलउद्दीन गोरी को खबर मिलते ही उन्होंने एक डाकू को तो पकड़ लिया जिसे अजमेर जेल में बंद कर दिया और दूसरा पकड़ नें नहीं आया। उसको पकड़ने की योजना बनाई। वे मेरे पास आए। कहा कि आप एक खबर छाप दीजिए कि फलां नाम का दूसरा डकैत भी पकड़ा गया। वह खबर अखबार में छपवाकर अखबार लेकर वे जेल गए और डकैत से कहा कि फलां नाम का दूसरा तुम्हारा साथी हमने गिरफ्तार कर लिया है तो उसने तुरन्त कहा कि फलां आदमी जिसे पकड़ा है बेकसूर है, फलां आदमी मेरे साथ डकैती में शामिल था। उसको भी गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस सुप. गुप्ता को जब यह खबर बताई थी तो वे बड़े नाराज हुए थे, लेकिन गिरफ्तारी के बाद गोरी ने गुप्ता साहब से कहा कि दूसरा भी पकड़ा जाय इसलिए यह खबर छपाई थी।
जब मैैं इक्कीस मंजिली इमारत पर सीढ़ियों से चढ़ गया
सन् 1982 की बात है। मैैं ‘नवज्योति के काम से कलकत्ता गया हुआ था। वहां विज्ञापन एजेंसियों से मिला। इसी सिलसिले में चौरंगी रोड पर एक विज्ञापन एजेंसी से मिलने गया। चौरंगी रोड पर एक इक्कीस मंजिल की इमारत पर उसका आफिस था। मेरे साथ हमारे दफ्तर का नवजवान साथी भी था। जब हम वहां पहुंचे तो इत्तफाक से बिजली बंद थी, जिससे लिप्ट काम नहीं कर रही थी। मेरे साथी ने कहा कि बिजली आएगी तब ऊपर चढ़ेंगे। मैंने कहा- नहीं, बिजली का इंतजार नहीं करना है और हमें चींटी की चाल से इक्कीस मंजिल चढ़ना है। हम दोनों चींटी की चाल से सीढ़ी दर सीढ़ी इक्कीस मंजिल पर चढ़ गए। मैं तो न थका न मेरे कोई पसीना आया। साथी थक कर पसीने से तर-बतर हो गया और हांफने लगा। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम आफिस में गए और मिल करके वापिस आए, तब भी लिफ्ट बंद थी। मैैंने कहा कि उतरने में क्या जोर आएगा। अपन सीढ़ियों से नीचे उतर सकते हैैं। मेरे साथी ने कहा-मेरी अब हिम्मत नहीं है, लिफ्ट जब चालू होगी तब ही चलेंगे।’ थोड़ी देर में लिफ्ट चालू हो गई, हम लोग उसके जरिए नीचे उतर आए। एक विज्ञापन एजेन्सी में हमने यह सारी घटना सुनाई। पास में किसी न्यूज एजेन्सी के संवाददाता भी बैठे हुए थे। उन्होंने अपनी एजेन्सी द्वारा कलकत्ते के सारे अखबार वालों को हमारी यह न्यूज दी और दूसरे दिन वहां के सारे अखबारों में हमारी यह न्यूज छप गई।
रात्रि में पहाड़ों पर तीस मील का सफर
सन् 1938 में जब मैं, माणिक्यलाल वर्मा, भोगीलाल पांड्या तथा हमारे पच्चीस साथी डूंगरपुर रियासत में महारावल के सहयोग से भीलों में रचनात्मक कार्य कररहे थे,उस समय भंयकर अकाल पड़ा था। भील लगान न दे पाएं तो दीवान ने सख्ती शुरू की। खडलाई पाल के क्षेत्र में जहां हम रहते थे, वहां हम लोगों को बुलाकर कहा कि आप भीलों से कहें कि वे लगान अदा करें। हमने कहा न तो हम लगान देने के लिए कहेंगे,क्योंकि यह माहे कार्य क्षेत्र के बाहर है। महारावल के पास ये बात पहुंचानी जरूरी थी। मगर हम वहां से डूंगरपुर रास्ते रास्ते जाते तो हमें दो दिन लगते। पहाड़ों-पहाड़ों पर चलने से हम शाम को रवाना होकर सुबह डूंगरपुर पहुंच सकते थे। इसलिए मैैं और वर्माजी चार भीलों को साथ लेकर शाम को रवाना हुए और तीस मील रात में पहाड़ों ही पहाड़ों पर चलकर सुबह डूंगरपुर पहुंच गए। वहां भोगीलालजी पांड्या को सारी स्थिति बताई। पांड्याजी ने महारावल से सारी बातें कहीं। महारावल नाराज हुए और दीवान को कहलवा दिया कि लगान वसूली के बारे में इनसे कोई बात न करे।
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