गीत, नज्म और कविताएं लिखने के अलावा गजल का एक अलग अंदाज है : जावेद अख्तर
जावेद साहब में रोमांस की एक हड्डी भी नहीं : शबाना आजमी
सेशन में चर्चा करते हुए जावेद अख्तर कहते हैं कि शायरी, गीत व कविताएं लिखने के अलावा गजल का एक अलग स्टाइल है। उर्दू में तो यह लिखी ही जाती है, इसके अलावा पंजाबी, गुजराती, मराठी और हिन्दी में भी गजलें लिखी गई हैं।
जेएलएफ के दूसरे दिन फ्रंट लॉन में हुए सत्र ‘दायरा एण्ड धनक कम्पेनियम वॉलियम ऑफ नज्म बाय कैफी आजमी एण्ड जां निसार अख्तर’ में जावेद अख्तर, शबाजा आजमी से रक्शंदा जलील ने चर्चा की। इस दौरान शबाना की कैफी आजमी पर लिखी पुस्तक पर चर्चा हुई। इनकी शायरी और रचनाओं को लेकर इस पुस्तक का निर्माण किया गया है।
इस दौरान हंसी मजाक के पलों में शबाना ने एक वाकया बताते हुए कहा कि अक्सर लड़कियां और महिलाएं जावेद अख्तर के पीछे भागती हैं और मेरे पास भी आती हैं। वे कहती हैं कि आपके पति इतनी रोमांटिक रचनाएं लिखते हंै, आप तो बड़ी खुशनसीब हैं। ये घर पर भी बहुत रोमांटिक होंगे। ऐसे में मैं उन सभी को कहती हूं कि जावेद साहब में रोमांस नाम की एक हड्डी तक नहीं है। इस पर जावेद साहब भी कुछ कहते हैं, कि सर्कस में गोल चक्कर में काम करने वाला व्यक्ति वहां उल्टा लटकता है, लेकिन वह घर आकर वैसे ही उल्टा नहीं लटकता। इस सेशन को सुनने के लिए फेमस गीतकार गुलजार और पॉप सिंगर उषा उत्थुप भी मौजूद रहे।
सेशन में चर्चा करते हुए जावेद अख्तर कहते हैं कि शायरी, गीत व कविताएं लिखने के अलावा गजल का एक अलग स्टाइल है। उर्दू में तो यह लिखी ही जाती है, इसके अलावा पंजाबी, गुजराती, मराठी और हिन्दी में भी गजलें लिखी गई हैं। ये यूरोप में क्यों नहीं लिखी गई, यह बड़ा सोचने वाला विषय है। वैसे गजल सुनते वक्त गजल की बात होती है, लेकिन लोगों को इसके स्टाइल के बारे में जानकारी नहीं है। गजल की जो दो लाइन होती है, वे एक राइम की तरह होती है, लेकिन उनमें रदीफ भी होता है। इस दौरान उन्होंने पंजाबी में भी एक गजल सुनाई। पोएट्री से शुरू हुई यह बातचीज बुक पर आते हुए ट्रांसलेशन पर खत्म हुई।
जावेद और शबाना ने कहा कि ट्रांसलेशन आज भी समस्या है। हर भाषा में जो लिखा होता है, ट्रांसलेशन के बाद उस विषय का मर्म बदला सा लगता है। आज भी अनुवाद को लेकर ज्यादा स्ट्रॉन्ग नहीं हुए हैं। शबाना ने सेशन में कहा कि गुलजार साहब इस सेशन में मौजूद हैं, इसलिए मैं एक किस्सा बताना चाहती हूं।
मैं एक धुन पर अटक गई थी। एक कमरे में गुलजार साहब और दूसरे कमरे में जावेद अख्तर साहब थे। मैं दोनों के पास गई और अपनी धुन सुनाई। दोनों ने एक मिनट में उस धुन पर रचना लिखी। दोनों का अंदाज एक दम जुदा था। ऐसा अंदाज कैफी आजमी और जां निसार अख्तर की लेखनी में देखा जा सकता था।
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