वित्तीय घाटा एवं अनुशासन एक चुनौती
आने वाला है केंद्रीय बजट 2023-24
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष में अर्थव्यवस्था के आकार को 26 ट्रिलियन डॉलर कर देगा, जबकि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 3.5 ट्रिलियन डॉलर है।
एक फरवरी, 2023 को वित्त मंत्री सीतारमण देश का केंद्रीय बजट 2023-24 प्रस्तुत करने जा रही है, यह बजट ऐसे समय प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि समूची दुनिया में आर्थिक मंदी की संभावनाएं वर्ष 2023 में व्यक्त की जा रही है। जिसका असर भारत की वर्ष 2023 की विकास दर पर पढ़ने की आशंकाएं है। भारत को वर्ष 2047 तक हर हालत में विश्व की विकसित अर्थव्यवस्था बनना है जिसके लिए आत्मनिर्भर भारत का मंत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है। जिसका रोड मेप नीति आयोग द्वारा तैयार किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है कि लगातार 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की औसत विकास दर को अर्जित किया जाए।
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष में अर्थव्यवस्था के आकार को 26 ट्रिलियन डॉलर कर देगा, जबकि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 3.5 ट्रिलियन डॉलर है। यह अनुमान विश्व की सलाहकार फर्म ईवाई द्वारा अपने प्रतिवेदन में लगाया है। प्रतिवेदन में यह उल्लेख है कि भारत यह लक्ष्य निवेश संभावनाओं, सर्वाधिक प्रतिभाशाली मानवीय शक्ति, आर्थिक सुधारों में गतिशीलता, तेजी से बदलती हुई डिजिटल अर्थव्यवस्था, दीर्घकालीन विकास लक्ष्यों के माध्यम से अर्जित कर लेगा।
लेकिन एक दूसरी खबर यह भी है कि भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है जबकि चीन की जनसंख्या में वर्ष 2022 में 8.5 लाख की कमी हुई है जिससे भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो गई है। यहां पर सवाल यह है कि आगामी समय में विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या रखने वाला देश विकसित राष्ट्र बन जाएगा तथा विश्व की दूसरी महान आर्थिक शक्ति बन सकेगा। भारत एवं चीन प्रतिस्पर्धी राष्ट्र है, जबकि चीन की विकास दर कम हो रही है तथा 3 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है, जबकि किसी समय लगातार 10 प्रतिशत या अधिक की रफ्तार से बढ़ रही थी। किसी भी बजट की अनेक पहलू होते हैं तथा विभिन्न उद्देश्य एवं प्राथमिकताएं होती है वर्तमान समय में वित्त मंत्री के समक्ष बजट की प्राथमिकताएं विकास दर वृद्धि, महंगाई को नियंत्रण, रुपए का अंतरराष्ट्रीय मूल्य, निवेश को बढ़ावा तथा रोजगार सृजन की है, लेकिन इसके अतिरिक्त बढ़ता वित्तीय घाटा, सार्वजनिक ऋण, ब्याज देयता, वेतन पेंशन भार, रक्षात्मक बजट, सब्सिडी का बढ़ता बजट, आर्थिक सामाजिक कल्याणकारी योजनाएं आदि भी है। सरकार का खर्च तो बढ़ता जा रहा है, लेकिन आय उस गति से नहीं बढ़ पाती है।
गत माह में ही केंद्रीय सरकार 4.36 लाग करोड़ रूपए की अतिरिक्त व्यय की अनुमति लेनी पड़ी थी। जिसका की बजट 2022-23 मे प्रावधान नहीं था। यह अनुमति उर्वरक एवं खाद्य सहायता, घरेलू गैस के लिए तेल विपणन कंपनियों को भुगतान तथा मनरेगा कार्यक्रम के लिए अतिरिक्त बजट के लिए लेनी पड़ी थी। अर्थशास्त्रियों एवं विभिन्न एजेंसियों का अनुमान है कि वर्ष 2023 के लिए वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 से 6.0 प्रतिशत तक रहेगा तथा वर्तमान वित्त वर्ष 2022-23 में वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 प्रतिशत रहेगा, जबकि वित्त मंत्री द्वारा वित्तीय वर्ष 2025-26 तक सकल घरेलू उत्पाद का 4.5 प्रतिशत लाया जाना है। सवाल यहां पर यह है कि यह लक्ष्य कैसे अर्जित होगा, जबकि इस सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट होगा। चुनावी वर्ष होने के कारण अधिकतम घोषणाओं एवं रियायतों की उम्मीदें लगाई जा रही हैं।
भारत के वित्तीय घाटे को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है इस संबंध में आर्थिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि बढ़ते हुए राजस्व को कम किया जाए। इसके लिए सब्सिडी के भार को 26 फीसदी तक कम किया जाए लेकिन समस्या यह है कि खाथ सब्सिडी देना सरकार की मजबूरी है। जिसके अंतर्गत लगभग 80 करोड़ जनसंख्या को भूख से मरने से बचाने के लिए मुफ्त खाद्यान्न वितरित करना होगा। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का बजट लगातार बढ़ रहा है। यह योजना आगामी वर्ष में भी लागू रहेगी। कोरोना काल में रोजगार प्रभावित हुआ है जिसके कारण मनरेगा कार्यक्रम के अंतर्गत कम से कम 100 दिवस का वार्षिक रोजगार दिया जाना जरूरी है। मांग यह भी है कि मनरेगा जैसी योजना शहरी क्षेत्र के लिए लाई जाए। सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाए जाने की आवश्यकता है इसके लिए किसानों, व्यापारियों, लघु उद्यमियों, दैनिक मजदूरों वृद्धजनों, पिछड़े वर्ग, महिलाओं के लिए वार्षिक पेंशन दिए जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है, लेकिन कई राज्य सरकारें पुरानी पेंशन योजना वर्ष 2004 से नियुक्त सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने का निर्णय ले चुकी है तथा केंद्र सरकार पर समूचे देश में समान पेंशन योजना को लागू किए जाने की मांग कर रही है। पेंशन भार राजस्व की महत्वपूर्ण मद है। रक्षा कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना का दायरा बढ़ाया जाना है। पेंशन योजना एक चुनौती बन गई है। केंद्र एवं राज्यों का सम्मिलित वित्तीय घाटा 9.3 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया जा रहा है।आज सबसे बड़ी जरूरत वित्तीय अनुशासन लाए जाने की है इसके लिए राजस्व घाटा शून्य लाया जाना चाहिए।
-डॉ. सुभाष गंगवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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