सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

कर्नाटक के बाद साल के अंत तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम। हालात ठीक रहे तो इसमें जम्मू-कश्मीर की भी चुनावी संभावना।

चर्चा में बयान!
राहुल गांधी के लंदन वाले बयान चर्चा में। सत्ताधारी भाजपा ने आपत्ति जताई। तो कांग्रेस राहुल गांधी के बचाव में। साथ में भाजपा पर पलटवार करते हुए सवाल-जवाब भी कर डाले। लेकिन सवाल यह। राहुल गांधी ने ऐसे बयान दिए क्यों होंगे? हां, हिंडनबर्ग, बीबीसी की डाक्यूमेंट्री और अब अमेरिकी अरबपति नागरिक जॉर्ज सोरोस चर्चा में। भाजपा इन सबको उसकी सत्ता के खिलाफ साजिश से जोड़ रही। लेकिन कांग्रेस भी अपनी बात पर अड़ी हुई। राहुल गांधी ही नहीं। पार्टी प्रवक्ता लगातार अपनी बात कह रहे। लेकिन बात जब लोकतंत्र, संविधान और संस्थाओं की आ रही। तो गंभीरता समझी जा सकती। लेकिन आरोप कौन लग रहा? यह भी देखने वाली बात। फिर सवाल यह। जन जागरण विदेश में या भारत में जरुरी। काम तो यहीं से चलेगा। फिर शिकवा शिकायत देश की धरती से बाहर क्यों हो रहा? यदि जन जागरण भारत में हो तो क्या बुराई?

तैयारी का आलम!
कर्नाटक के बाद साल के अंत तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम। हालात ठीक रहे तो इसमें जम्मू-कश्मीर की भी चुनावी संभावना। हां, तीन राज्यों के चुनाव हाल में संपन्न हुए। जिसमें विपक्ष को निराशा ही मिली। लेकिन इसके विपरित भाजपा साल 2024 के आम चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई। भाजपा नेतृत्व की नजर खासकर उन करीब 160 सीटों पर जिन पर पार्टी कभी जीती नहीं। दूसरी ओर, विपक्ष अभी तीन राज्यों की हार पर विचार ही कर रहा। प्रमुख विपक्षी कांग्रेस इसे हल्के में ले रही। उसकी भारत जोड़ो यात्रा खत्म ही हुई। जबकि अगली की तैयारी। इसके अलावा विपक्षी एकता का संकेत दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा। क्षेत्रीय दल एक सीमा से आगे सोच नहीं पा रहे। लेकिन भाजपा की तैयारी दो कदम आगे। सो, परिणाम की क्या संभावना। इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता।

अगला कदम!
राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे के अगले कदम का इंतजार हो रहा। हालांकि सालासर धाम के संबोधन में उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया। जिससे पार्टी असहज हो। लेकिन वहां जुटे समर्थकों में उन्होंने जोश भरने की कोशिश की। कार्यक्रम में उपस्थित सांसदों एवं विधायकों की सूची और फोटो की बात चर्चा में। वहीं, जयपुर में युवा मोर्चा की आक्रोश रैली को लेकर भी यही चर्चा। लेकिन दावा दोनों ओर से। खैर, यह सब बातें! लेकिन यह चर्चा आम। राजे शांत बैठ जाएंगी। यह उनका स्वभाव नहीं। लेकिन भाजपा नेतृत्व भी ऐन चुनाव के मौके पर चुप बैठा रहेगा। यह भी संभावना नहीं। सो, यही द्वंद्व चल रहा। हां, कर्नाटक चुनाव बिल्कुल सामने। जहां पीएम मोदी और पूर्व सीएम येद्दियुरप्पा की बॉडिंग चर्चा में। उसके अर्थ भी लगाए जा रहे। लेकिन ऐसा राजे के साथ नहीं। यह हर कोई जानता। फिर भाजपा की रणनीति अभी सामने आना बाकी।

इंसाफ के सिपाही...
कपिल सिब्बल ने ‘इंसाफ के सिपाही’ नामक एक नई दुकान खोलने का ऐलान कर दिया। वह आगे क्या करेंगे यह फिलहाल स्पष्ट नहीं किया। लेकिन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए उनका मतव्य समझा जा सकता। असल में, सिब्बल अब कांग्रेस में नहीं। उन्होंने कांग्रेस को अलविदा क्यों कहा, यह बताने की जरुरत नहीं। लेकिन आजकल सपा के समर्थन से निर्दलीय सदस्य के रूप में उच्च सदन की शोभा बढ़ा रहे। सिब्बल देश के नामी वकील। केन्द्र सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय भी संभाल चुके। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व से क्या बिगाड़ा हुआ। सारा मामला पटरी से उतर गया। लेकिन चुप बैठे रहना शायद उनकी फितरत में नहीं। इसीलिए आम चुनाव से पहले सक्रियता की तैयारी। कई नेताओं एवं दलों ने उनको समर्थन में जता दिया। लेकिन सवाल वही। कितने सफल होंगे? फिर सामना केन्द्र की ताकतवर भाजपा सरकार और उसके मंजे हुए मजबूत नेता से।

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एक कदम बढ़े!
केन्द्र सरकार ने बिहार में जदयू से बगावत करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाह को वाय श्रेणी का सुरक्षा कवच दे दिया। यह बिहार में भाजपा की रणनीति का एक कदम आगे बढ़ना माना जा रहा। फिर एक साथ 45 जिला अध्यक्षों की घोषणा। अब सीधे नजर लोकसभा चुनाव पर। उसके पहले राज्य की राजद-जदयू की गठबंधन सरकार और सीएम नीतीश कुमार को कमजोर करने की कवायद। इसी बीच, लालू परिवार पर एजेंसिंयों का शिकंजा लगातार बढ़ रहा। इसी बीच, नागालैंड में भाजपा की गठबंधन सरकार को जदयू का समर्थन। इसे राजनीति की उलटबांसी कहा जाए तो हर्ज क्या? उधर, शरद पवार की एनसीपी ने भी यही किया। मतलब आम जनता इसे समझ रही होगी। आखिर ऐसी क्या राजनीतिक मजबूरी। फिर विपक्षी एकता का राग क्यों? बिहार में इस बार भाजपा महाराष्टÑ दोहराने की फिराक में। राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठ रहे।

छुपे रूस्तम पाटिल!
जयंत पाटिल एनसीपी की राजनीति में महत्वपूर्ण किरदार। महाराष्टÑ की कांग्रेस-एनसीपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके। एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। लेकिन पाटिल राजनीत में कछुए की चाल से चलने वाले। खूब पढ़े लिखे एवं जमीनी राजनीति को ठीक से समझते। एनसीपी में जब से अजित पवार एवं सुप्रिया सुले के बीच वर्चस्व की जंग की आहट। तभी से पाटिल केन्द्र में। लेकिन अपनी सीमा एवं दायरा भी अच्छी तरह से समझते। असल में, जहां सुप्रिया सुले केन्द्र की राजनीति करने की इच्छुक। तो अजित पवार का मन महारष्टÑ में ही रमता। गठबंधन सरकार में वह लगातार तीन बार डिप्टी सीएम रहे। वह सत्ता के जरिए अपने लोगों को उपक्रत करने में भी माहिर। ऐसे में जब सवाल शरद पवार के बाद पार्टी संभालने का। तो कहीं अजित पवार एवं सुप्रिया सुले के झगड़े में पाटिल बाजी न मार ले जाएं! मतलब वह छुपे रूस्तम! 
-दिल्ली डेस्क 

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