मौत की नींद सो रही मानव को जगाने वाली गौरैया

विश्व गौरैया दिवस की स्थापना द नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने की थी

मौत की नींद सो रही मानव को जगाने वाली गौरैया

सर्व विदित है कि पक्षियों की अधिकांश प्रजातियां प्रकृति और उसमें पलने वाले मानव की सबसे श्रेष्ठ मित्र हैं। ज्यादातर पक्षियों का आहार वे तमाम कीट हैं, जो धरती की कोख से उपजने वाली पैदावार को क्षति पहुंचाते हैं।

ची चीं करती चिड़िया आई, बच्चों को वो खाना लाई। .. कविता में गुथी इन पंक्तियों में हम बचपन से सुनते आए हैं। पक्षियों में गौरैया कहलाने वाली इसी प्रजाति की चिड़ियाओं के चहकने, चहकते हुए इस डाली से उस डाली और इस मुंडेर से उस मुंडेर तक फर्र-फर्र फुदकने का वह दृश्य बचपन से लेकर आज तक हमारे मन और मस्तिष्क में सुरक्षित है, जो हमें आह्लादित करता था। सच बात तो यह है कि बचपन में रात को मां की लोरियां हमें सुखद नींद सुलाती थीं तो अलसुबह जगाने का काम गौरैया समूह का चींचीं चींचीं की धुन वाला सामूहिक गान करता था। पक्षियों की चहचहाहट से जागने का यह क्रम किशोरावस्था तक बरकरार रहा। कालांतर में न सिर्फ कंधों पर आ पडे पारिवारिक दायित्वों ने हम जैसे स्वार्थी मनुष्यों को इस मनभावन चहचहाहट से दूर कर दिया, बल्कि प्रकृति के हुई इंसानी छेड़छाड़ भी इस सर्वप्रिय चहचहाहट के मानव से विलगाव की एक प्रमुख वजह रही है।

सर्व विदित है कि पक्षियों की अधिकांश प्रजातियां प्रकृति और उसमें पलने वाले मानव की सबसे श्रेष्ठ मित्र हैं। ज्यादातर पक्षियों का आहार वे तमाम कीट हैं, जो धरती की कोख से उपजने वाली पैदावार को क्षति पहुंचाते हैं। यह बात अलग है कि मानव से मित्रता का यही भाव गौरैया जैसे पक्षियों को काल के मुंह में धकेल रहा है। पहले हजारों के झुण्ड में दिखाई देने वाली गौरैया अब सैकड़ों के समूह में भी दिखाई नहीं देती है। उसका सबसे बड़ा कारण है- मानव द्वारा फसलों पर किया जाने वाला कीटनाशकों का अंधाधुंध छिड़काव। जहां एक ओर कीटनाशकों के इस बेलगाम छिड़काव से मानव शरीर नाना प्रकार के रोगों का आगार बन रहा है वहीं इससे चिड़िया कहलाने वाला गौरैया पक्षी भी धीरे-धीरे विलुप्तता के कगार पर जा पहुंचा है। प्रकृति और पक्षियों के प्रति इसी चिंता के चलते गौरेया के संरक्षण के उद्देश्य से 13 वर्ष पहले गौरैया दिवस मनाने का फैसला किया गया था। विश्व गौरैया दिवस हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन घरेलू गौरैया और इससे होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए है। विश्व गौरैया दिवस का उद्देश्य पूरी दुनिया में जागरूकता बढ़ाना और पक्षी की रक्षा करना है। कुछ साल पहले आमतौर पर लोगों के घरों में गौरैयों को देखा जाता था। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण यह पक्षी अब विलुप्त होने के कगार पर है। द नेचर फॉरएवर सोसाइटी आॅफ इंडिया एवं फ्रांस के इको-एसआईएस एक्शन फाउंडेशन द्वारा विश्व  गौरैया दिवस मनाने का विचार रखा गया था। इसमें कहा गया था कि घरेलू गौरैया के लिए एक दिन समर्पित किया जाए ताकि उसकी सुरक्षा के बारे में प्रचार किया जा सके। पहला विश्व गौरैया दिवस वर्ष 2010 में मनाया गया था। गौरैया विलुप्त होने की कगार पर है और इसके संरक्षण एवं जागरूकता बढ़ाने के लिए ही विश्व गौरैया दिवस मनाना आरम्भ किया गया था है। हालांकि पहले हमारे घरों के आसपास गौरैया का दिखना एक आम बात थी तथा उन्हें आसानी से देखा जा सकता था, लेकिन वर्तमान में प्रकृति और जैव विविधता के नुकसान के कारण शहरों में गौरैया को देखना काफी मुश्किल हो गया है। गौरैया के संरक्षण और शहरी जैव विविधता के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे एक मंच के रूप में उपयोग करने पर विचार किया गया। घरेलू गौरैया दुनिया की सबसे आम और व्यापक प्रजातियों में से एक है। घरेलू गौरैयों के अलावा गौरैया की 26 अन्य विशिष्ट प्रजातियां हैं। ये सभी प्रजातियां तीन महाद्वीपों अर्थात एशिया, अफ्रीका और यूरोप में पाई जाती हैं। बढ़ता प्रदूषण, शहरीकरण, ग्लोबल वार्मिंग और लुप्त हो रहे पारिस्थितिक संसाधन। घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) शायद दुनिया में सबसे व्यापक और सामान्य तौर पर देखा जाने वाला जंगली पक्षी है। इसे यूरोपीय लोगों द्वारा दुनियाभर में पहुंचाया गया और अब इसे न्यूजीलैंड, आॅस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, भारत और यूरोप सहित दुनिया के दो-तिहाई भूभाग पर देखा जा सकता है। यह केवल चीन, इंडो-चीन, जापान एवं साइबेरिया और पूर्वी व उष्णकटिबंधीय अफ्र ीका आदि क्षेत्रों में अनुपस्थित है।

विश्व गौरैया दिवस की स्थापना द नेचर फॉरएवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने की थी। उन्होंने जैव विविधता फोटो प्रतियोगिता, वार्षिक स्पैरो अवार्ड्स, प्रोजेक्ट सेव अवर स्पैरो और कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग आॅफ इंडिया कार्यक्रम सहित कई परियोजनाएं शुरू कीं। पहला विश्व गौरैया दिवस वर्ष 2010 में आयोजित किया गया था। 2011 में, वर्ल्ड स्पैरो अवार्ड्स की स्थापना की गई थी। यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को मान्यता देता है, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सामान्य प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्वभर में पिछले बारह वर्षों से गौरेया दिवस मनाया जा रहा है। आज गौरेया सिर्फ  पुस्तकों, कविताओं में ही हैं। गांव में यदि कभी-कभार कोई गौरेया दिख जाए तो बच्चे, बड़े-बूढ़े और सभी लोग झूम उठते हैं लेकिन समस्त मानव समाज के लिए यह शर्म की बात है कि गौरेया अब विलुप्ति के कगार पर है।

-प्रकाश चंद्र शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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