प्रचार पर प्रतिबंध

प्रचार पर प्रतिबंध

चुनाव आयोग ने एक बार फिर चुनाव प्रचार संबंधी प्रतिबंधों की अवधि अब 11 फरवरी तक बढ़ा दी है।

चुनाव आयोग ने एक बार फिर चुनाव प्रचार संबंधी प्रतिबंधों की अवधि अब 11 फरवरी तक बढ़ा दी है। इस बार प्रत्याशियों व नेताओं को प्रचार के लिए लागू कुछ शर्तों में ढील भी दी है। घर-घर प्रचार करने के लिए लोगों की संख्या अब दस से बढ़ाकर बीस कर दी गई है, साथ ही जनसभाओं में लोगों की संख्या अधिकतम एक हजार कर दी गई है। कोविड महामारी की ताजा हालत के मद्देनजर आयोग ने यह फैसला लिया है, जो जरूरी भी है। 11 फरवरी तक किसी भी दल को पदयात्रा, रैली, जुलूस आदि निकालने की अनुमति नहीं होगी। उत्तर प्रदेश में तो 11 फरवरी तक मतदान का पहला चरण ही समाप्त हो जाएगा। दूसरा चरण 14 फरवरी से है, जिसके लिए वैसे ही दो दिन बाद केवल घर-घर जनसम्पर्क की छूट रह जाएगी। 14 तारीख को तो उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी मतदान होगा। आयोग प्रतिबंधों की तारीखें बार-बार बढ़ा तो रहा है, लेकिन उन प्रतिबंधों की पूरी तरह पालना नहीं हो रही है। राजनीतिक दल चुनाव आयोग के प्रतिबंधों की अनदेखी करते दिखाई दे रहे हैं। चुनाव आयोग के ताजा फैसले की पालना होगी, ऐसा कहा नहीं जा सकता। हालांकि ताजा आदेश में आयोग ने कुछ छूटों को बढ़ाया है, लेकिन राजनीतिक दलों से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे अक्षरश: आदेशों की पालना करेंगे। एक हजार की संख्या वाली सभा में एक-एक आदमी की गिनती कौन करेगा? भीड़ दो से पांच हजार से भी अधिक हो सकती है। प्रचार के लिए प्रत्याशी और नेता जब घर-घर प्रचार को निकलते हैं तो उनके हजारों समर्थक उनके पीछे निकल पड़ते हैं और कहीं-कहीं तो उनकी तादाद पांच-पांच हजार तक पहुंच जाती है। राजनेता समर्थकों को मना भी नहीं करते, क्योंकि उनको तो समर्थकों की भीड़ काफी प्रिय होती है। भीड़ भी ऐसी जो बिना मास्क और उचित दूरी की पालना नहीं करती। पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में गृह मंत्री अमित शाह घर-घर प्रचार को निकले तो हजारों समर्थकों ने उन्हें घेर लिया और उनके पीछे हो गए। इस पर लोगों ने सवाल उठाया तो शाह प्रचार अभियान से अलग हट गए। लेकिन मुस्लिम नेता ओवैसी जब प्रचार को निकले तो हजारों लोग उनके काफिले में शामिल हो गए और ओवैसी ने उनको संबोधित भी किया। चुनाव आयोग प्रतिबंध तो लगा रहा है, लेकिन जब उनकी पालना ही नहीं हो रही है तो उनका औचित्य भी क्या रह जाता है? आयोग ने कुछ नियम बनाए हैं तो उनकी पालना कराने का भी कर्तव्य बनता है। कोरोना के बीच ऐसी ढिलाई उचित नहीं है।

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