यूक्रेन पर भारत
यूक्रेन संकट पर चर्चा के लिए बुलाई गई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में हुए मतदान में भारत ने भाग न लेकर अमेरिका सहित दुनिया को अपना स्पष्ट संकेत देते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह यूक्रेन के मामले में तटस्थ रहेगा।
यूक्रेन संकट पर चर्चा के लिए बुलाई गई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में हुए मतदान में भारत ने भाग न लेकर अमेरिका सहित दुनिया को अपना स्पष्ट संकेत देते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह यूक्रेन के मामले में तटस्थ रहेगा। ऐसा करके भारत ने यह भी जता दिया कि वह किसी भी तरीके से अमेरिका के दबाव में नहीं है, बल्कि अपने मित्र देश रूस के साथ है। भारत ने मतदान में हिस्सा न लेते हुए कहा कि यूक्रेन मुद्दे पर इस समय शांत और रचनात्मक कूटनीति की जरूरत है और इसलिए अन्तरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बड़े हित में सभी पक्षों को तनाव बढ़ाने वाले हर कदम से बचना चाहिए। यूक्रेन पर इस समय अमेरिका व रूस के बीच तनातनी चल रही है और विश्व के अनेक नेता तनाव को टालने के लिए अमेरिका व रूस से लगातार संवाद कर रहे हैं। मतदान में रूस और चीन ने यूक्रेन पर चर्चा के खिलाफ मतदान किया, जबकि भारत, केन्या और गैबॉन अनुपस्थित रहे। फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन सहित परिषद के अन्य सभी सदस्यों ने पक्ष में मतदान किया। अब सवाल उठ सकता है कि आखिर भारत ने मतदान में हिस्सा क्यों नहीं लिया, जबकि भारत तो अमेरिका के साथ क्वाड समूह का सदस्य है और दोनों देशों के बीच सामरिक संबंध काफी मजबूत हैं। यह सच है, लेकिन यूक्रेन संकट पर भारत की चिंता भी स्वभाविक है, क्योंकि रूस के साथ भी भारत के घनिष्ठ संबंध हैं और रूस उसका काफी पुराना मित्र देश है। इसलिए भारत ने संतुलित मार्ग को अपनाया। यदि भारत अमेरिका के दबाव में आकर प्रस्ताव का समर्थन करता तो रूस के साथ संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता था। फिर मतदान में हिस्सा लेकर भारत रूस के पक्ष में मतदान करता तो इससे अमेरिका और पश्चिमी देशों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती थी। ऐसे में भारत ने मतदान से अलग रहना ही बेहतर समझा। भारत का यह कदम कूटनीतिक लिहाज से काफी उचित ही है। चीन और रूस के बीच निकट के संबंध हैं और भारत चीन के बीच चल रहे तनाव को साधने के लिए रूस भारत का अच्छा सहयोगी है और एक उचित माध्यम भी। कूटनीतिक क्षेत्रों में इस बात पर हैरानी व्यक्त की जा रही है कि यूक्रेन के मामले में चीन का रूस को समर्थन है तो भारत उस खेमे के साथ कैसे खड़ा हो सकता है जिसमें चीन है। फिर पश्चिमी देशों ने भारत के रूख पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया है कि रूस पूर्वी यूरोप में अस्थिरता फैला रहा है। पश्चिमी देशों की अपनी राय वाजिब हो सकती है, लेकिन भारत ने अपने हितों के तहत यूक्रेन पर एक संतुलित कदम उठाया है और पश्चिमी देशों को भारत की दुविधा समझनी चाहिए।
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