वैश्विक बाजार में भी बढ़ रही श्रीअन्न की उपयोगिता

वैश्विक बाजार में भी बढ़ रही श्रीअन्न की उपयोगिता

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की माने तो भारत ने वर्ष 2021-2022 के दौरान 642.8 करोड़ रुपये और 2020-2021 के दौरान 597.5 करोड़ रुपये कीमत के श्रीअन्न का निर्यात विदेशों को किया था। 

श्रीअन्न के मामले में दुनिया में भारत दिनोंदिन अपना प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। वर्ष 2022-2023 ने इस तथ्य को प्रमाणित भी कर दिया है। बीते वर्ष के अप्रैल से नवम्बर 2022 के बीच के केवल आठ महीने में देश ने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अमेरिका, जापान, जर्मनी, नेपाल, बांग्लादेश, मिस्र, ईरान और ओमान को 365.85 करोड़ रुपये की कीमत का कुल एक लाख चार हजार एक सौ छियालीस टन श्रीअन्न का निर्यात इस बात का साक्षी है कि दुनिया के विकासशील देशों के साथ  सम्पन्न देशों को भी श्रीअन्न रास आने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की माने तो भारत ने वर्ष 2021-2022 के दौरान 642.8 करोड़ रुपये और 2020-2021 के दौरान 597.5 करोड़ रुपये कीमत के श्रीअन्न का निर्यात विदेशों को किया था। 

दरअसल, हमारा देश श्रीअन्न यानी मोटे अनाजों के उत्पादन और खपत के मामले में अपनी पुरानी स्थिति को दुबारा हासिल करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। भारत दुनिया में मोटे अनाज यानी श्रीअन्न के उत्पादन में शीर्ष पर है और जहां तक एशिया का सवाल है, भारत की श्रीअन्न के उत्पादन में हिस्सेदारी तकरीबन 80 फीसदी से भी ज्यादा है। यदि हम बीते पांच सालों के ही आंकड़ों पर नजर डाले तो इस बीच भारत ने 137.10 लाख टन से लेकर 180.20 लाख टन मोटे अनाज यानी श्रीअन्न का उत्पादन किया है। यदि वैज्ञानिक दृष्टि से और मौसम विज्ञानियों की माने तो हमारे देश का मौसम मोटे अनाज की खेती के लिए सर्वथा अनुकूल है। इसका सबसे बड़ा कारण गेहूं व धान की फसलों की अपेक्षा इसके उत्पादन में कम पानी की जरूरत पड़ती है। जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की उर्वरा शक्ति निरंतर क्षीण होते जाने की स्थिति में श्रीअन्न यानी कम पानी में पैदा होने वाले मोटे अनाज के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। असलियत यह है कि बाजरा,कुटकी,कंगनी,जौ,लाल धान, दलहन,कुलथी,अरहर,मसूर,मलकोनी,अलसी,तिल, मडुआ,कोटो,सांवा,कोइनी की फसलों के लिए खास मेहनत नहीं करनी पड़ती। इस के लिए राज्यों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। इसके लिए बीते पांच सालों से बड़े पैमाने पर प्रयास भी किए जा रहे हैं। इस बाबत कृषि कल्याण विभाग खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत साल 2018 से ही देश के 14 राज्यों के कुल मिलाकर 214 जिलों में पोषक अनाज यानी श्रीअन्न उप अभियान जारी है। हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम, महाराष्ट् और राजस्थान जैसे राज्य भी श्रीअन्न का उत्पादन बढ़ाने के लिए अभियान चलाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यही नहीं इस मिलेट वर्ष में तो इस अभियान के चलते श्रीअन्न के उत्पादन और खपत में तो वृद्धि की उम्मीद है ही, विदेशी बाजार की मांग में बढ़ोतरी को देखते इसके निर्यात में भी बढ़ोतरी होगी, ऐसी आशा-आकांक्षा की जा रही है। 

श्रीअन्न के प्रति बड़े देशों की बढ़ती मांग और उनकी जरूरतों को पूरा करने की खातिर ही देश के प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी भारत को श्रीलंका का हब बनाना चाहते हैं। 2023 के अंतरराष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष घोषित होते ही निर्यात की संभावनाएं तलाशने के अभियान में सरकारी तंत्र जोर-शोर से जुट गया है, वहीं  देश के 21 राज्यों में श्रीअन्न के उत्पादन और खपत बढ़ाने की कार्य योजना बनाने में द्रुति गति से प्रयास किए जा रहे हैं। फिर इस वर्ष के बजट में भी श्रीअन्न के उत्पादन को प्रोत्साहन सरकार की इसको बढ़ावा देने की मंशा ही दर्शाती है। यही वह अहम कारण है कि इसके शोध और संवर्धन का दायित्व इंडियन इंस्टीयूट आफ मिले रिसर्चर, कृषि विश्वविद्यालय और यस बैंक को सौंपा गया है। एपीडा ने तो इसकी खपत व कारोबार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से श्रीअन्न ब्रांड का निर्माण किया है व रंडी टू ईट और रेडी टू सर्व के अनुकूल श्रीअन्न पर आधारित सैंडल और स्टार्ट अप की शुरूआत की जा रही है। इसके पीछे ज्वार-बाजरा, रागी और दूसरे मोटे अनाजों से बिस्कुट, नूडल्स, पास्ता, कुकीज,स्रैक्स, मिठाइयां, नाश्ता व सीरियल मिक्स आदि बनाकर वैश्विक बाजार में स्थापित होने में आसानी हो सके। गौरतलब यह है कि देश के मोटे अनाज के उत्पादक किसानों और व्यापारियों के लिए यह वर्ष खासकर अंतरराष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष घोषित होने से अति महत्वपूर्ण है।  इसका एक और कारण यह भी है कि दूसरे देशों के साथ देश के अंदर भी मोटे अनाज के प्रति आम आदमी की रुचि और इसकी लोकप्रियता भी बढ़ रही है। दूसरे देशों के साथ हमारे देश के जनमानस में प्रधानमंत्री के कथन से मोटे अनाज का महत्व बढाÞ है। जाहिर है जब मांग बढ़ी तो उस हालत में उसकी आपूर्ति की जिम्मेवारी भी भारत की ही होगी, क्योंकि मोटे अनाज के उत्पादन में हमारा देश दूसरे देशों की तुलना में सबसे आगे है और मोटे अनाज के उत्पादन में शीर्ष पर है। व्यापार और कारोबार के क्षेत्र में भी श्रीअन्न ने अपनी भूमिका बढाÞने में कामयाबी पाई है। इस मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। इतिहास के पन्नों को पीटने पर पता चलता है कि श्रीअन्न का इतिहास लगभग 4500 ईसा पूर्व से भी पुराना है।

 

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