पैदल चलने के अधिकार के लिए  सक्रिय पंजाब

पैदल चलने के अधिकार के लिए  सक्रिय पंजाब

इस नीति के अंतर्गत शासन- प्रशासन को यह सुनिश्चित करना है कि सड़क मार्ग के किनारे के पैदल पथ केवल पथिकों के प्रयोग- उपयोग में आएं।

पंजाब शासन ने एक नवनीति बनाई है और इसे विधि व्यवस्था के अंतर्गत प्राथमिकता के आधार पर क्रियान्वित करने का आदेश पारित किया है। इस नीति के अंतर्गत शासन- प्रशासन को यह सुनिश्चित करना है कि सड़क मार्ग के किनारे के पैदल पथ केवल पथिकों के प्रयोग- उपयोग में आएं। इस प्रकार पंजाब प्रथम भारतीय प्रांत बन गया है, जिसने पैदल पथों पर जनता को चलने का अधिकार प्रदान कर इसे विधिपूर्ण व्यवस्था का स्वरूप दिया है। इस अधिकार के लागू होने के बाद अब राज्य में सड़क निर्माण में संलग्न सभी अभिकरणों को भविष्य में मार्गों के हर प्रकार के विस्तारीकरण तथा नवमार्गों के निर्माण के साथ पैदल मार्ग (फुटपाथ) तथा साइकिल ट्रैक का निर्माण भी करना होगा। उल्लेखनीय है कि 2017 में प्रसिद्ध सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ नवदीप असिजा ने राज्य में चलने का अधिकार लागू करने के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका प्रस्तुत की थी। यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागरिक के जीवन के अधिकार से संबंधित थी। उक्त याचिका में उक्त अनुच्छेद के तहत तर्क रखा गया था कि नागरिकों का चलने का अधिकार जो है वह नगरीय जीवन में जीवन के अधिकार का ही अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। बढ़ते जनसांख्यिकीय घनत्व और इसी के अनुरूप सड़कों पर बढ़ते मोटर वाहनों के कारण सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर पथिकों का आवागमन अत्यंत असुरक्षित तथा कष्टकारी होता जा रहा है। मानसिक रूप में रोगग्रस्त अधिसंख्य व्यक्तियों की रोग व्याधियों का गुप्त कारण सड़क पर चलते हुए असुरक्षा का भावनात्मक तनाव महसूस करना ही है। ऐसा नहीं है कि संवेदनशील नागरिक को स्वयं के सड़क पर चलने के समय ही तनाव रहता है, बल्कि वह तो अपने संबंधियों, आत्मज और मित्रों के सुरक्षित घर लौटने तक भी तनावग्रस्त रहता है। सड़क पर पैदल चलने से जुड़ी असुरक्षा को लेकर व्यक्ति इतना चिंताग्रस्त और तनावग्रस्त हो जाएगा। यह हमारी संपूर्ण यातायात व्यवस्था, आधुनिक चकाचौंध से युक्त भागमभाग भरी जीवनचर्या और तथाकथित प्रगति का अति विद्रूप स्वरूप है।

नब्बे के दशक में भारत में उदारीकरण के प्रारंभ होने से पूर्व केंद्रीय शासन की पहल पर प्रति वर्ष सड़क सुरक्षा सप्ताह का आयोजन होता था। यह आयोजन बड़े स्तर पर होता था। तब सड़कों पर वाहनों की भीड़ भी नहीं थी। सौ में से केवल 10 लोगों के पास ही चौपहिया वाहन हुआ करता था। उस समय चौपहिया और दोपहिया मोटर वाहनों का प्रयोग संतुलित ढंग से होता था। वाहन चालक परिवहन विभाग के नियमों का अक्षरश: पालन किया करते थे। सड़क दुर्घटनाएं अपवाद थीं। सड़कों के किनारे निर्मित पैदल मार्ग पैदल चलने वालों के लिए हर दृष्टि से सुरक्षित थे। यातायात प्रगति की ऐसी अनुकूलता के बाद भी प्रति वर्ष सड़क सुरक्षा सप्ताह धूमधाम से मनाया जाता था। लोगों को सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों का पालन करने के लिए जागरूक किया जाता था। विशेषकर विद्यार्थियों को इस विषय से जोड़ने के प्रयास होते थे। विद्यालयों में इस संबंध निबंध, आलेख, इत्यादि लिखने की शिक्षण प्रथा थी। केंद्र शासन की ओर से सड़क सुरक्षा सप्ताह के बारे में अखिल भारतीय निबंध प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी। यह लेखक भी उस प्रतियोगिता में भाग लिया करता था। नब्बे के दशक में सड़क सुरक्षा को लेकर जब इतना कर्तव्य बोध शासन- प्रशासन और आम जनता में था, तो इस समय तो सड़क सुरक्षा के संदर्भ में अनेक क्रांतिकारी कार्य किए जाने की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा। प्रगति की अति ने यातायात व्यवस्था को भी विसंगतियों से ग्रस्त कर दिया है। सड़कें मोटर वाहन चलाने एवं उनके आवागमन के लिए बनी हैं, यह देशभर की आज की सड़कों को देखकर स्पष्ट दिखाई देता है, परंतु सड़कों के किनारे स्थित पैदल- मार्ग (फुटपाथ) पैदल आने- जाने वालों के लिए बने हैं। यह भारत भर की अधिसंख्य सड़कों को देखने के बाद असत्य प्रतीत होता है। पैदल-मार्गों पर या तो रेहड़ी- पटरियां चलाने वालों अथवा अवैध रूप में झुग्गी बस्तियां डालकर रहने वालों का अतिक्रमण है। इतना ही नहीं, जितनी भी सार्वजनिक असभ्यताएं सड़कों पर व्यवहार में घटती हैं, वे पैदल मार्गों पर ही घटती हैं। जैसे कि पानए,गुटखा खाकर जगह-जगह थूकना, मूत्र विसर्जन करना, खाद्य और पेय पदार्थों के पैकेट खा-पीकर इधर.-उधर फेंक देना, असभय- अराजक लोगों का समूह में स्थान-स्थान पर खड़े होकर तेज कर्कश ध्वनि में बोलना, बोलचाल में अश्लील अपशब्दों का प्रयोग करना इत्यादि। ऐसे असभ्य व्यवहार सड़कों के किनारे स्थित पैदल रास्तों पर प्राय: होते रहते हैं। ऐसे में सभ्य, सुशील, सज्जन और विशेषकर आयकर देने वाले नागरिकों के जीवन अधिकारों में से एक महत्वपूर्ण अधिकार, सड़क के फुटपाथों पर पैदल चलने का अधिकार संकट में है। लेकिन इस दुरावस्था से मुक्ति प्राप्त करने की दिशा में की गई पंजाब शासन की पहल प्रशंसनीय है। यदि पैदल चलने के अधिकार के संबंध में राज्य की यह नवनीति धरातल पर क्रांतिकारी विधि से क्रियान्वित होती है तो निश्चित रूप में इसे सम्पूर्ण भारत में भी लागू किया जाना चाहिए।
           

-विकेश कुमार बडोला

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