बड़े शहरों में बढ़ता ध्वनि प्रदूषण चिंताजनक

बड़े शहरों में बढ़ता ध्वनि प्रदूषण चिंताजनक

80 डेसीबल से ऊपर की आवाज को खतरनाक ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में माना जाता है। 

शोर प्रदूषण आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है। और आजकल हमारे देश के बड़े शहरों में बहुत अधिक शोर प्रदूषण हो रहा है। यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर शोर प्रदूषण है क्या? और इसके दुष्प्रभाव क्या हैं? वास्तव में शोर प्रदूषण अनुपयोगी ध्वनि होती है, जिससे मानव तो मानव यहां तक कि जीव-जंतुओं तक को भी परेशानी होती है। वास्तव में जब शोर की तीव्रता पर्यावरण में अत्यधिक हो जाती है तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। आज हमारे देश की लगातार जनसंख्या बढ़ रही है और जनसंख्या वृद्धि के साथ ही यातायात के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। विकास के साथ ही विभिन्न औधोगिक कलकारखानों में भी अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है और यही कारण भी है कि शोर (ध्वनि) प्रदूषण में भी इजाफा हुआ है। इसके अलावा बिजली कड़कना, बिजली गिरना आदि जैसी कई प्राकृतिक घटनाएं, जो शोर उत्पन्न करतीं हैं, मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। 

यहां बताना चाहूंगा कि ध्वनि प्रदूषण देश में लाखों लोगों के जीवन पर बहुत ही प्रतिकूल व नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि शोर और स्वास्थ्य के बीच सीधा संबंध पाया जाता है। शोर से संबंधित समस्याओं में तनाव से संबंधित बीमारियां, उच्च रक्तचाप, चिड़चिड़ापन, श्रवण हानि, नींद में व्यवधान, सिरदर्द, एकाग्रता में कमी आदि को शामिल किया जा सकता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार निंद्रावस्था में आसपास के वातावरण में 35 डेसीबल से ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए और दिन का शोर भी 45 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। जानकारी मिलती है कि 80 डेसीबल से ऊपर की आवाज को खतरनाक ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में माना जाता है। 

यहां यह भी गौरतलब है कि शोर की वजह से मेटाबॉलिज्म से जुड़े रोग, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज तक का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि बस बहुत बार तेज शोर से हार्ट अटैक तक का भी खतरा रहता है। वास्तव में, शोर की अधिक तीव्रता हृदय की धड़कन को बहुत प्रभावित करती है एवं उसमें अनियमितता अर्थात तेज या धीमे ह्रदय स्पंदन जैसी समस्याएं उत्पन्न कर देती है। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण के कारण अकेले यूरोप में हर साल 16,600 से अधिक लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है और 72,000 से अधिक को अस्पताल में भर्ती  होने की जरूरत पड़ती है। एक अन्य आंकड़ें के अनुसार आज तेज और लगातार होने वाले शोर की वजह से यूरोप में हर साल 48,000 लोग दिल की बीमारी से प्रभावित हो रहे हैं और करीब 12,000 लोगों की असमय मौत हो रही है। 

यदि हम यहां ध्वनि प्रदूषण के विभिन्न स्त्रोतों की बात करें तो इसमें क्रमश- टीवी, रेडियो, कूलर, स्कूटर, कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रेन, जहाज, रॉकेट, घरेलू उपकरण, वाशिंग मशीन, लाउड स्पीकर, स्टीरियो, टैंक, तोप, फैक्ट्री, विभिन्न मशीनरी, औधोगिक व आवासीय इमारतों का निर्माण, कार्यालय के विभिन्न उपकरण, आडियो मनोरंजन सिस्टम, आतिशबाजी, सैन्य उपकरण तथा दूसरे सुरक्षात्मक उपकरणों के अलावा सभी प्रकार की आवाज करने वाले साधन उपकरणों या कारकों को ध्वनि प्रदूषण का स्त्रोत माना जा सकता है।  वैसे ध्वनि प्रदूषण के अन्य कारणों में धरने प्रदर्शन, रैलियां, नारेबाजी, राजनीतिक और गैर-राजनीतिक रैलियों में उमड़ने वाली अनियंत्रित भीड़, कार्यक्रम में एकत्रित जनसमूहों का एक साथ वार्तालाप करना शामिल है। उपर्युक्त सभी कारणों से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। वास्तव में आज के समय में शोर नियंत्रण के आदेश महज खानापूर्ति बनकर रह गए हैं। आज बाजार में लाउड स्पीकरों पर, डीजे पर कानफोडू शोर सुनने को मिल जाएगा। विभिन्न मैरिज पैलेसों में भी डीजे पर शोर को सुना जा सकता हैं, जिसकी आवाज बहुत ही तेज होती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि इस कानफोडू शोर पर रोक की आवश्यकता है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि ध्वनि प्रदूषण जंगली और मानव जीवन के साथ पेड़-पौधों तक को भी प्रभावित करता है। तेज ध्वनि से पशुओं का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। इसके कारण वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं और हिंसक हो जाते हैं। हमारे कान एक निश्चित ध्वनि की तीव्रता को ही सुन सकते हैं। ऐसे में तेज ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। नियमित रूप से तेज ध्वनि से सुनने से कान के पर्दे फट सकते हैं। इसके अलावा तेज ध्वनि हमारे स्थायी या अस्थायी रुप से बहरेपन का कारण बन सकती है।  ध्वनि प्रदूषण से सबसे ज्यादा परेशानी अस्पतालों में मरीजों, विद्यालयों, घरों में विद्यार्थियों, शिक्षकों को होती है। जानकारी देना चाहूंगा कि ध्वनि का स्तर 80 डीबी से 100 डीबी होने पर यह हमें बहरा बना सकता है। यह बहुत ही संवेदनशील है कि आज शहरों में आबादी वाले स्थानों में, अस्पतालों व विद्यालयों के पास तेज प्रेशर हार्न, लाउडस्पीकर बजाए जाते हैं। इन्हें रोकने की जरूरत है। हालांकि समय-समय पर हमारे देश की विभिन्न राज्य सरकारें, प्रशासन वाहनों पर लगे डीजे पर सख्ती से रोक लगाते हैं, लेकिन कुछ दिनों के बाद स्थिति डाक के तीन पात वाली हो जाती है।                          

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