जल और स्वच्छता संस्थान की कैग ऑडिट क्यों नहीं?
संस्थान की ओर से करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी खातों का ऑडिट सरकारी संस्था से नहीं कराया जाता। जबकि कैग एक्ट की धारा 14(1) में प्रावधान है कि जिस सरकारी संस्थान को केन्द्र या राज्य सरकार से 25 लाख रुपए से अधिक का फंड मिलता है तो उस संस्थान की कैग ऑडिट जरूरी है।
ब्यूरो/नवज्योति, जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने जल एवं स्वच्छता संस्थान की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से ऑडिट नहीं कराने पर राज्य सरकार, जल एवं स्वच्छता संस्थान और कैग से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। जस्टिस एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस प्रवीर भटनागर की खंडपीठ ने यह आदेश पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में अधिवक्ता पीसी भंडारी और अधिवक्ता टीएन शर्मा ने अदालत को बताया कि पीएचईडी विभाग के अधीन कार्य करने वाले जल एवं स्वच्छता संस्थान को केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से करोड़ों रुपए का बजट मिलता है। संस्थान की ओर से करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी खातों का ऑडिट सरकारी संस्था से नहीं कराया जाता। जबकि कैग एक्ट की धारा 14(1) में प्रावधान है कि जिस सरकारी संस्थान को केन्द्र या राज्य सरकार से 25 लाख रुपए से अधिक का फंड मिलता है तो उस संस्थान की कैग ऑडिट जरूरी है। इसके अलावा राज्य सरकार के सामान्य वित्त एवं लेखा नियम के तहत राज्य सरकार के सभी फंड की ऑडिट राज्य के विभाग से करना जरूरी है। इसके बावजूद भी जल एवं स्व छता संस्थान की सरकारी ऑडिट नहीं कराई जाती। याचिका में आरोप लगाया गया कि जल एवं स्वच्छता संस्थान को करोड़ों रुपए फंड मिलने के बाद भी इसके खातों की जांच कैग से ना करवाकर निजी सीए से करा कर इतिश्री कर ली जाती है, जिसके कारण संस्थान की वित्तीय अनियमितता की जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पाती है। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार को निर्देश दिए जाए कि वह इस संस्थान की कैग से ऑडिट कराए।
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