चूरू जिला: चार पर भाजपा-कांग्रेस में सीधा मुकाबला

चूरू जिला: चार पर भाजपा-कांग्रेस में सीधा मुकाबला

विधानसभा आम चुनाव के लिए 25 नवंबर को होने वाले मतदान को लेकर पूरे राज्य की तरह चूरू में भी चुनावी माहौल गर्म है और जिले की तारानगर सीट सूबे की हॉट सीट बनी हुई है।

चूरू। विधानसभा आम चुनाव के लिए 25 नवंबर को होने वाले मतदान को लेकर पूरे राज्य की तरह चूरू में भी चुनावी माहौल गर्म है और जिले की तारानगर सीट सूबे की हॉट सीट बनी हुई है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी यहां अपनी सभाएं कर चुके हैं। चूरू जिले की सभी सीटों की बात करें तो जाट मतदाता सभी सीटों को प्रभावित करते हैं और अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सुजानगढ़ को छोड़कर सभी जगह पर प्रमुख उम्मीदवारी में भी हैं। जिले की चार सीटों पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला है, वहीं राजगढ़ और सरदारशहर में त्रिकोणीय मुकाबला रहेगा। कांग्रेस समर्थक यहां तक दावा करते हैं कि इस बार जिले से भाजपा का सूपड़ा साफ हो सकता हैए वहीं राजनीतिक विश्लेषक जिले में कांग्रेस की चार सीट आने तक की बात कह रहे हैं। उधर भाजपा समर्थक भी जिले में चार सीट भाजपा की मानकर चल रहे हैं लेकिन यदि यहां दोनों पार्टियों तीन-तीन सीट प्राप्त कर लेती हैं तो वर्तमान समीकरणों के हिसाब से यह भाजपा के लिए अच्छी ही उपलब्धि कही जाएगी।

चूरू सीट पर बहुत कम रहेगा मार्जिन
चूरू जिला मुख्यालय की सीट पर बात करें तो एक अजीब.सा विरोधाभास सामने आता है कि यह परंपरागत रूप से कांग्रेस विचारधारा से जुड़े मतदाताओं की सीट है लेकिन लंबे समय से यहां पर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ का वर्चस्व रहा है। राठौड़ अपने सात विधायक कार्यकालों में से 6 बार चूरू सीट विधायक रहे हैं। इस बार उनके सीट बदलकर तारानगर से चुनाव लड़ने के कारण उनके विश्वस्त और पार्टी के जिलाध्यक्ष हरलाल सहारण को टिकट दिया गया है। हालांकि खुद राजेंद्र राठौड़ के यहां से चुनाव नहीं लड़ने के कारण भाजपा के प्रमुख कार्यकर्ताओं में उतना उत्साह नजर नहीं आ रहा है लेकिन हरलाल सहारण की विनम्रता उन्हें चुनाव में बनाए हुए है। इसके अलावा भाजपा की चिर-परिचित बूथ लेवल मॉनिटरिंग शैली से भी हरलाल सहारण के पक्ष में माहौल बन रहा है, लेकिन उनका मुकाबला कांग्रेस के रफीक मंडेलिया से है, जिनके पिता मकबूल मंडेलिया पार्टी के जिलाध्यक्ष एवं विधायक रहे हैं। खुद रफीक के पास भी कई चुनाव लड़ने का अनुभव है। अल्पसंख्यक मतदाता बाहुल्य वाली इस सीट पर रफीक मंडेलिया को अल्पसंख्यक वोटों के अलावाए कांग्रेस के परंपरागत वोट और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से उत्पन्न हुए सकारात्मक माहौल का सहारा है। चूरू के लोगों के लिए मंडेलिया के उपलब्ध नहीं रहने की छवि उनकी दुश्मन बनी हुई है और चूरू कांग्रेस के प्रमुख जाट नेताओं की दूरी भी उनके परिणाम को कड़वा कर सकती है। इधर, हरलाल सहारण का राजेंद्र राठौड़ के एकदम करीब होना उनकी जाति के कट्टर जातिवादी लोगों को नहीं सुहा रहा है। इसके अलावा जातिगत कारणों से भाजपा का परंपरागत वोट भी उनसे खिसक सकता है। ऐसे में दोनों ही प्रत्याशियों के बीच कड़ा मुकाबला है और आने वाले दिनों में जो प्रत्याशी अधिक मेहनत कर मतदाताओं का दिल जीत पाएगा, वही इस चुनाव में चूरू का विधायक बनेगा। 

राजनीति के खेल में फंसी इंटरनेशनल खिलाड़ी
सादुलपुर सीट पर कांग्रेस  उम्मीदवार अंतरराष्टÑीय खिलाड़ी डॉ.कृष्णा पूनिया त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी हुई नजर आ रही हैं। पूनिया को कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक और अपने जातिगत आधार का भरोसा है। वहीं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आई पूर्व विधायक नंदलाल पूनिया की पुत्रवधू सुमित्रा पूनिया बतौर बीजेपी उम्मीदवार क्षेत्र के पूनिया वोटरों में सेंध लगा रही हैं। दिग्गज बीजेपी नेता राम सिंह कस्वां और सांसद राहुल कस्वां का साथ उन्हें मजबूत बना रहा है। बीजेपी के परंपरागत वोटों का लाभ उन्हें मिल सकता है। सुमित्रा के ससुर नंदलाल का सहज-सरल व्यवहार तथा लोगों की सहानुभूति भी सुमित्रा के लिए काफी सपोर्ट का काम कर रही है। बसपा के मनोज न्यांगली भी यहां प्रमुख उम्मीदवारी में हैं और अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और शहरी मतदाताओं में उनके प्रति एक सहानुभूति है। कुछ स्तर तक जाट वोटरों को भी आकर्षित करने का काम किया है जो यहां पहली बार दिखाई दे रहा है।


महर्षि को चुनौती दे रहे पूसाराम
रतनगढ़ सीट से वर्तमान विधायक अभिनेश महर्षि भाजपा के उम्मीदवार हैं, वहीं पिछले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारी के बावजूद   पूसाराम गोदारा को डोटासरा की महरबानी पर कांग्रेस ने अपना टिकट दिया है जिन्होंने भाजपा प्रत्याशी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। रतनगढ़ ब्राह्मण सीट रही है और पिछले अधिकतर विधायक ब्राह्मण ही रहे हैं। लेकिन वर्तमान विधायक की कार्यशैली और व्यवहार से कुछ लोग असंतुष्ट हैं, लेकिन भाजपा की चुनाव लड़ने की शैली, बूथ प्रबंधन और जातिगत वोटों का प्रभाव यहां अभिनेश महर्षि के पक्ष में जा सकता है। जाट वोटों का धुवीकरण, अल्पसंख्यक वोटों का जुड़ाव और कांग्रेस सरकार की योजनाएं पूसाराम गोदारा को मजबूत बना रही हैं। महर्षि हमेशा सक्रिय रहने वाले एक राजनीतिक व्यक्ति हैं। वहीं गोदारा के पास भी लंबा राजनीतिक अनुभव है । कहा जा सकता है कि यहां भी चुनाव नजदीकी मुकाबले में है।

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सुजानगढ़ में कांग्रेस-बीजेपी आमने-सामने
अनुसूचित जाति रिजर्व सुजानगढ़ सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. मास्टर भंवरलाल मेघवाल के बेटे मनोज मेघवाल कांग्रेस प्रत्याशी हैं। वहीं बीदासर प्रधान संतोष मेघवाल ने उनके सामने इस बार बीजेपी से ताल ठोकी है, जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी जोरदार उपस्थिति पिछले चुनाव में दर्ज करवा चुकी है। सुजानगढ़ को जिला बनाने की घोषणा विधानसभा क्षेत्र में मास्टर का प्रभाव, मनोज मेघवाल और उनके समर्थकों को आश्वस्त किए हुए हैं। संतोष मेघवाल को अपनी बेदाग छवि, भाजपा के परंपरागत वोटर और बूथ मैनेजमेंट का भरोसा है।  कांग्रेस खेमे से अलग हुए बाबूलाल कुलदीप भी कितने वोट खींच पाए हैं, यह भी थोड़ा बहुत चुनाव को प्रभावित करेगा।

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तारानगर में राठौड़-बुडानिया में सीधी टक्कर 
राज्य की सबसे हॉट सीट बनी तारानगर की बात करें तो पिछले 5 साल में नरेंद्र बुडानिया ने यहां काफी विकास कार्य करवाए हैं और अपनी जाति के मतदाताओं का बाहुल्य भी उनके पक्ष में है। इसके अलावा कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक उन्हें मजबूत बनाता है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज राजेंद्र राठौड़ ने उनके सामने आकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। राजेंद्र राठौड़ की इतने बड़े कद के बावजूद एक सर्व सुलभ व्यक्तित्व की पहचान रही है और मतदाताओं में उनके प्रति एक आकर्षण है। पिछले दिनों यहां राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की सभाएं यहां हो चुकी हैं और चुनावी माहौल गर्म है। राजेंद्र राठौड़ ऐसे नेता हैं जो सभी जाति समूहों के वोटरों में सैंध लगाने में और प्रत्येक मतदाता को किसी ने किसी तरीके से टच करने में माहिर हैंए वहीं उनके राजनीतिक जीवन में किसी न किसी प्रकार से विरोधी रहे उनकी पार्टी और दूसरी पार्टियों के नेता भी उन्हें चुनाव हराने के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक विषलेश्कों की मानें तो यहां मुकाबला बहुत ही नजदीकी है और किसी भी उम्मीदवार के लिए विधानसभा की राह आसान नहीं कहीं जा सकती है। सीपीआईएम के निर्मल कुमार यहां एक 
बेहतरीन संघर्षशील एवं जुझारू छवि वाले उम्मीदवार हैं लेकिन बड़े दिग्गजों के हाईटेक चुनाव के बीच वह बहुत ज्यादा मतदाताओं को प्रभावित कर पाएंगे, ऐसा लग नहीं रहा। फिर भी उनके वोट किस धड़े और किस जातीय समूह से टूटकर आएंगे, यह भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने वाला एक पक्ष रहेगा।

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सरदारशहर सीट पर त्रिकोणीय टक्कर
सरदारशहर सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित भंवरलाल के नाम से जानी जाती है और सहानुभूति लहर में विधायक बन चुके उनके पुत्र अनिल शर्मा कांग्रेस से यहां उम्मीदवार हैं। उनके सामने अंतिम समय में रतनगढ़ से लाए गए भाजपा के उम्मीदवार राजकुमार रिणवां और निर्दलीय प्रत्याशी राजकरण चौधरी के आने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के भरोसे जहां अनिल शर्मा मजबूत दिखाई दे रहे हैं, वहीं पं. भंवरलाल शर्मा के साथी रहे सभापति राजकरण चौधरी का कांग्रेस से टूट कर निर्दलीय चुनाव लड़ना अनिल शर्मा के लिए चुनौती बन गया है। चुनावी मुकाबला कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी राजकरण के बीच ही माना जा रहा है। राजकुमार रिणवां काफी वोट लेंगे लेकिन वे वोट किस पक्ष को प्रभावित करेंगे, इस बात से सरदारशहर के राजनीतिक भविष्य का फैसला होगा।

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