बजट में निर्मला सीतारमण कर चुकी है उद्योगपतियों की बात, अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई पर उनके इरादे स्पष्ट नहीं : कांग्रेस

चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार फिलहाल कदम उठाते नजर नहीं आ रही है

बजट में निर्मला सीतारमण कर चुकी है उद्योगपतियों की बात, अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई पर उनके इरादे स्पष्ट नहीं : कांग्रेस

संविदा नौकरियों की दर दोगुनी से ज्यादा हो गई है और महंगाई आसान छू रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार फिलहाल कदम उठाते नजर नहीं आ रही है।

नई दिल्ली। कांग्रेस ने कहा कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण अपना 7वां बजट पेश करेंगी और इसको लेकर वह उद्योगपतियों, बैंकर्स, किसान संगठनों से बात कर चुकी है, लेकिन देश में सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी, महंगाई और अमीर गरीब के बीच बढ़ती खाई है, जिसे कम करने के लिए उनके इरादे स्पष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने यहां पार्टी मुख्यालय में कहा कि बड़ा संकट यह है कि देश की एक फीसदी आबादी के पास लगभग आधा संपत्ति है जिसके कारण गरीबी और अमीरी के बीच की खाई बढ़ रही है और बेरोजगारी का हल नहीं निकल रहा है। हालात यह है कि नौकरियां नहीं हैं और देश में नौकरियां सिर्फ संविदा पर आधारित हो गई हैं। संविदा नौकरियों की दर दोगुनी से ज्यादा हो गई है और महंगाई आसान छू रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार फिलहाल कदम उठाते नजर नहीं आ रही है।

देश में आर्थिक असमानता की दर ब्रिटिश राज से भी बदतर है। इस देश की एक प्रतिशत आबादी का देश की 40 प्रतिशत संपत्ति पर नियंत्रण है। जिसके कारण अमीर और अमीर, गरीब और ज्यादा गरीब हो रहा है। क्या यह बजट इस खाई को पाटने के लिए कुछ करेगा। देश के 48 प्रतिशत परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। लोगों की आय कम  हुई है और वे बचत का सहारा लिए रह रहे हैं। देश की हालत - आमदनी  अठन्नी और खर्चा रुपया हो गया है। प्रवक्ता ने कहा कि वित्तमंत्री निर्मला सीतरमण अपना सातवां बजट पेश करेंगी। इस बजट को बनाने से पहले उन्होंने कुछ उद्योगपतियों, बैंकर्स, किसान संगठनों से मुलाकात कर विचार-विमर्श किया है, लेकिन क्या वे उन परिवारों से मिली हैं, जो दिन में तीन वक्त की रोटी नहीं खा पा रहे हैं। क्या वे उन महिलाओं से मिली हैं, जो महंगाई से जूझ रही हैं। क्या वे उन किसानों से मिली हैं, जो फसल का सही दाम पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्या वे उन युवाओं से मिली हैं, जो पेपर लीक से प्रताड़ति हैं। क्या वे असल हिंदुस्तान से मिली हैं। ये स्पष्ट है कि वे उनसे नहीं मिली हैं। ये बजट चंद पूंजिपतियों को और अमीर बनाने के लिए बनाया जा रहा है।

उन्होंने किसानों की हालत का उदाहरण देते हुए कहा ''मार्च, 2024 में उत्तर प्रदेश के झांसी के रहने वाले किसान पुष्पेंद्र अपनी थोड़ी सी जमीन पर मटर और गेहूं लगाते थे। हर किसान की तरह वह भी लगातार नुकसान झेल रहे थे, आमदनी लगातार घट रही थी और खर्चा बढ़ता जा रहा था। जिसके कारण उनके ऊपर करीब एक लाख चार हजार रुपए का कर्ज हो गया। वह इस कर्ज को चुका नहीं पाए और अंत में आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर ली, लेकिन इनके बारे में वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री को कुछ नहीं पता, इसलिए बजट इनके लिए नहीं बनाया गया है। लोकल सर्कल की रिपोर्ट बताती है- बजट आने से पहले अर्थव्यवस्था का हाल देख लीजिए,-गुजरात की टूटती रेङ्क्षलग और मुंबई में एविएशन क्षेत्र की नौकरियों के लिए लाखों की भीड़, इस सरकार की झूठी दलीलों का पर्दाफाश करती हैं आर्थिक कुप्रबंधन, नोटबंदी, आधी-अधूरी जीएसटी और अकुशल कोविड प्रबंधन जैसी नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था को 11.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।  देश में 1.5 करोड़ से ज्यादा नौकरियां खत्म हो गईं। ठेका और संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों की हिस्सेदारी 2013 में 19 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 43 प्रतिशत हो गई लेकिन नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि उन्होंने आठ करोड़ रोजगार दे दिए। आखिर कहां है ये नौकरियां।

प्रवक्ता ने कहा कि देश में महंगाई की मार से हर कोई परेशान है। महंगाई लगातार नौ प्रतिशत के ऊपर बना हुआ है और सब्जियों की कीमतों में 30 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़त हुई है। अमीर को फर्क न पड़ता हो, लेकिन गरीब की थाली से आपने सब्जी भी गायब करने का काम किया है। ये महंगाई हर तरफ है, जैसे- ट्रांसपोर्ट, स्कूल फीस, कपड़ा आदि इसलिए सवाल है- क्या ये बजट महंगाई को रोक पाएगा। खपत हमारी इकॉनमी का 60 प्रतिशत हिस्सा है। आंकड़े दिखाते हैं कि कीमत घटाने के बाद भी अप्रैल और मई में एमफसीजी की सेल आधी हो गई है। 60 हजार करोड़ रुपए की गाड़यिां बिना बिके पड़ी हुई हैं। महंगाई का आलम ये है कि कार खरीदने वाले भी कार नहीं खरीद पा रहे हैं।

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