बेसाल्टिक चट्टानें होंगी जियो साइट के रूप में विकसित

मिश्रोली गांव स्थित साढ़े छह करोड साल पुरानी चट्टानें

बेसाल्टिक चट्टानें होंगी जियो साइट के रूप में विकसित

इंटेक ने देशभर की 150 भू विरासत सूची में किया शामिल ।

मिश्रौली। झालावाड़ के मिश्रोली गांव स्थित साढ़े छह करोड साल पुरानी राजस्थान की एक मात्र स्तंभाकार ज्वालामुखीय बेसाल्टिक चट्टानों को अब जियो साइट के रूप में विकसित किया जाएगा। बेसाल्टिक चट्टानों को जिओ साइट में बदलने के प्रारंभिक प्रयास शुरू हो गए हैं। यहां की बेहद खास बात यह है कि यह चट्टानें लगभग साढ़े छह करोड़ वर्ष पुरानी है तथा तीन चरणों में इनका निर्माण हुआ है। ऐसे में यहां पर शोध के लिए आने वाले शोधार्थी इस एक ही साइट पर साढ़े 6 करोड़ साल का भूगर्भीय इतिहास पढ़ पाएंगे। झालावाड़ जिले के मिश्रौली और उसके आसपास के क्षेत्र में कुदरत का एक अनमोल खजाना छुपा हुआ है। एक ऐसा खजाना जो पूरे राजस्थान में सिर्फ यहीं पर पाया जाता है। हम बात कर रहे हैं बैसाल्टिक रॉक्स यानी की बैसाल्ट की चट्टानों की, जो अपने आप में प्रकृति की एक अनूठी संरचना है। हाल ही में इसे इंटेक की 150 भू विरासत सूची में शामिल किया है। अब जियो साइट के रूप में विकसित होने के बाद यहां पर भू वैज्ञानिकों के साथ पर्यटक भी आएंगे। साथ ही यहां शोधार्थियों के लिए भी बड़े पैमाने पर सामग्री मिलेगी। इससे क्षेत्र में ग्राम पर्यटन के द्वार भी खुल सकेंगे। यह बड़ी उपलब्धि है कि इस क्षेत्र को इंटेक ने देशभर की 150 भू विरासत सूची में शामिल किया है। इससे क्षेत्र अब जल्द पर्यटन क्षेत्र के रूप में उभर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि क्षेत्र में लोगों को भू विरासत तो देखने को मिलेगी। एग्रो टूरिज्म, ग्रामीण पर्यटन के दर्शन भी हो सकेंगे। यहां से कुछ ही दूरी पर कोल्वी, विनायका, हत्यागौड में बौद्धकालीन गुफाएं हैं , वहां तक भी पर्यटकों की पहुंच आसान हो सकती है। वैसे देश भर में मुंबई की गिलबर्ट हिल और कर्नाटक के सेंट मैरी आईलैंड बैसाल्ट की चट्टानों और उनसे जुड़े पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है किंतु मुंबई के गिलबर्ट हिल अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया, जिसके चलते वहां अब पर्यटक नहीं जाते, किंतु कर्नाटक के सेंट मेरी द्वीप में इस प्राकृतिक विरासत को सहेजा और संभाल गया है जहां वर्ष भर पर्यटकों की चहल पहल रहती है। पर्यटक दूर-दूर से इन चट्टानों को देखने पहुंचते हैं। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में भी कुछ स्थानों पर बेसाल्ट की चट्टानें पाई गई हैं जिन्हें भी लगातार पर्यटन से जोड़ने का प्रयास जारी है। झालावाड़ जिले के मिश्रौली गांव के चारों तरफ यही बेसाल्ट की चट्टानें बिखरी पड़ी है यहां पर बैसाल्ट का उत्खनन भी किया जाता है। वैज्ञानिक तथ्यों पर यदि बात करें तो बेसाल्ट की चट्टानें दरअसल ज्वालामुखीय चट्टानें हैं इनका निर्माण ज्वालामुखियों से निकलने वाले लावा के कारण हुआ है। बताया जाता है कि ज्वालामुखी के फटने के बाद जब उनका लावा तेजी से धरती की सतह पर फैला और धरती के संपर्क में आने के बाद वह जब तेजी से ठंडा हुआ तो इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप जमे हुए लावा में दरारें पड़ गई, जिनके के परिणाम स्वरुप यह चट्टानें इन अद्भुत आकृतियों में दिखाई देती हैं। कहीं यह स्तंभाकार संरचनाएं नजर आती है तो कहीं शतकोणीय संरचनाएं दिखती हैं। 

ऐसी है चट्टानें
झालावाड़ का मिश्रोली प्रदेश में स्तंभाकार बेसाल्टिक चट्टानों वाली यह एकमात्र माइंस है और इसके आसपास क्षेत्र में लघु पहाड़ियों और पठार के क्षेत्र में स्तंभाकार बेसाल्टिक पत्थर की खदानें हैं। ये स्तम्भ सघन ज्वाइंट में महीन, दानेदार, गहरे काले रंग और ग्रे रंग के पत्थर से लावा के शीतलन और फ्रेक्चरिंग प्रक्रिया से बने हुए हैं। इन आग्नेय पत्थर की खदानों की ऊपरी परत गहरी और पिछली काली मिट्टी की बनी है।  मिश्रोली में मिलने वाले पत्थरों की खासियत यह है कि यहां पर खड़े और आड़े दोनों ही प्रकार के पत्थर मिलते हैं। इनका आकार 15 फीट लंबाई तक है जो देश में चुनिंदा स्थानों पर ही देखने को मिलता है। इतने बड़े आकर के पत्थर देश में चुनिंदा जगहों पर ही मिले हैं। 

पर्यटन सर्किट से जोड़ा जाएगा
इंटेक सह संयोजक मधुसूदन आचार्य ने बताया कि इतनी लंबाई की चट्टानें और पत्थर देश में अंधेरी मुंबई, आदिलाबाद, कोल्हापुर, पर्वतमाला क्षेत्र और मध्यप्रदेश के देवास के बंगार में ही मिलते हैं। विश्व में यह अमेरिका, इजराइल, हांगकांग, आस्ट्रेलिया, जापान में देखने को मिले हैं। पत्थरों को खनिज विभाग भवन निर्माण स्टोन की श्रेणी में मानता है। इनका निर्माण 6.5 करोड़ साल पहले माना जा रहा है।  विरासत को बचाने और पर्यटन के क्षेत्र में काम करने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था इंटक के कोआॅर्डिनेटर डॉक्टर मधुसूदन आचार्य कहते हैं कि अब बेसाल्ट माइंस साइट को पर्यटन से जोड़ने का बीड़ा इंटेक उठाया है। उन्होंने बताया कि यह बड़ी ही यूनिक साइट है तथा इसको पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए प्रशासन और सरकार से लगातार समन्वय स्थापित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बेसाल्ट माइंस और उसके आसपास के इलाके को जिओ साइट्स के रूप में डेवलप करने के प्रयास किया जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस इलाके को पर्यटन सर्किट से जोड़ा जाएगा तथा यहां पर्यटकों के आने की व्यवस्था हो पाएगी। साथ ही उन्होंने कहा कि कई विश्वविद्यालयों से बात चल रही है जो अपने शोधार्थी यहां पर भेजेंगे। उन्होंने बताया कि प्रशासन और सरकार के सहयोग से यहां एक इंटरप्रिटेशन सेंटर भी स्थापित किया जाएगा ताकि यहां आने वाले पर्यटकों और शोधाथीर्यों को संपूर्ण जानकारी है मौके पर ही मिल सके। झालावाड़ जिले के मिश्रौली में यह अदभुत तरह के बेसाल्टिक पत्थर निकलते हैं जो लंबाई में काफी अधिक हैं । प्रदेश में यह पहली माइंस है, जबकि देश और विदेशों में भी चुनिंदा स्थानों पर ऐसे पत्थर देखने को मिलते हैं। इस माइंस को यूनेस्को की साइट में शामिल करने की मांग की जा रही है। जियो साइट के रूप में भी इसे विकसित करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।

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