दोपहिया से चार गुना चौपहिया के बन रहे प्रदूषण सर्टिफिकेट

आॅटो, ट्रैक्टर, ट्रक और अन्य वाहनों के न के बराबर

दोपहिया से चार गुना चौपहिया के बन रहे प्रदूषण सर्टिफिकेट

शहर में 25 से 30 फीसदी चौपहिया वाहन और 65 से 70 फीसदी दौपहिया वाहन हैं।

कोटा। शहर में वायू प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है प्रदूषण के बढ़ते स्तर में जितना योगदान फैक्ट्रियों और निर्माण कार्यों का है उतना ही योगदान शहर में दौड़ने वाले वाहनों का है। शहर की सड़कों पर 6 लाख से अधिक वाहन चलते हैं। जिनमें कई वाहन सालों पुराने हैं ऐसे में उनसे होने वाले प्रदूषण की जांच करना भी आवश्यक हो जाता है क्योंकि एक समय के बाद कोई भी वाहन तय मानकों से अधिक प्रदूषण का उत्सर्जन करने लग जाता है, जो वातावरण को प्रदूषित करने के अलावा हमें भी बीमार कर रहा है। इसी क्रम में शहर में मौजूद 20 पीयूसी केंद्रों पर हर साल 1 लाख से ज्यादा पीयूसी सर्टिफिकेट बनाए जाते हैं जिनमें से 65 से 70 फीसदी सर्टिफिकेट केवल चौपहिया वाहनों के ही होते हैं। जारी होने वाले पीयूसी सर्टिफिकेट में दौपहिया वाहनों की संख्या मात्र 25 से 28 फीसदी होती है। जबकि शहर में वाहनों की संख्या इसके उलट है जहां 25 से 30 फीसदी वाहन चौपहिया और 65 से 70 फीसदी वाहन दौपहिया हैं।

हर महीने 8 से 10 हजार वाहनों के बन रहे सर्टिफिकेट
शहर में वाहनों के प्रदूषण सर्टिफिकेट बनाने के लिए परिवहन विभाग की ओर से 20 केंद्र स्थापित किए गए हैं जहां वाहनों के प्रदूषण को जांचने के बाद ही सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं। इन केंद्रों पर हर माह 8 से 10 हजार वाहनों का सर्टिफिकेट बनाया जाता है। जिनमें से 5 हजार से 7 हजार वाहन चौपहिया और 2.5 से 3 हजार वाहन दोपहिया होते हैं। शहर में दिसंबर माह में कुल 8 हजार 663 वाहनों ने प्रदूषण सर्टिफिकेट बनवाया जिसमें से 5 हजार 282 वाहन चौपहिया और 2 हजार 666 वाहन दोपहिया थे। वहीं जनवरी माह में कुल 10 हजार 500 वाहनों के सर्टिफिकेट जारी हुए उसमें 7 हजार 36 वाहन चौपहिया और 2 हजार 951 दोपहिया वाहन थे। इसी तरह पिछले महीने में 9 हजार 931 वाहनों ने प्रदूषण जांच कराई जिसमें 6 हजार 834 चौपहिया वाहन थे। वहीं 2 हजार 590 वाहन दोपहिया थे। 

हर 6 महीने में करवानी होती है प्रदूषण के स्तर की जांच
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और परिवहन विभाग की गाइडलाइन के अनुसार केवल बीएस 6 सीरीज के मॉडल वाले वाहनों को छोड़कर प्रत्येक वाहन के प्रदूषण सर्टिफिकेट की वैधता 6 माह की होती है जिसे वाहन मालिक को हर 6 माह केबाद वाहन से होने वाले प्रदूषण के स्तर की जांच करानी होती है। वहीं शहर में 70 फीसदी वाहनों के मॉडल बीएस 6 से पूर्व की सीरीज के हैं। जिनकी नियमित प्रदूषण के स्तर की जांच होना आवश्यक है लेकिन शहर में जागरूकता की कमी और विभाग की ओर से प्रयासों की कमी के चलते गिने चुके लोग ही प्रदूषण सर्टिफिकेट बनवाते हैं। ऐसे में वाहनों से लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। जो कई जानलेवा बीमारियों का भी कारण बन रहा है।

आॅटो और अन्य वाहनों की संख्या न के बराबर
शहर में दोपहिया और चौपहिया वाहनों के अलावा तिपहिया वाहनों में आॅटो ट्रैक्टरों और पिकअप ट्रकों की संख्या भी अच्छी खासी है। लेकिन परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार शहर में मौजूद इन वाहनों की संख्या के मुताबिक प्रदूषण सर्टिफिकेट न के बराबर बनाए जा रहे हैं। विभाग के आंकड़ों के अनुसार करीब 150 आॅटो का ही प्रदूषण सर्टिफिकेट जारी किया गया और मात्र 78 पिकअप ट्रकों का इसके अलावा ट्रैक्टरों के भी संख्या के अनुपात में बहुत कम प्रदूषण सर्टिफिकेट जारी किए गए। ऐसे में सिर्फ चौपहिया वाहनों के ही प्रदूषण सर्टिफिकेट पर्याप्त मात्रा में बन रहे हैं। बाकी वाहनों के प्रदूषण स्तर की जांच नहीं होने से वो बेधड़क सड़कों पर धुआं उड़ाते हुए दौड़ते हैं जिन पर न तो कोई कारवाई की जाती है ना ही उनकी जोच की जाती है।

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लोगों का कहना है
प्रदूषण सर्टिफिकेट सभी वाहन मालिकों को बनवाना चाहिए क्योंकि इससे वाहन के प्रदूषण के स्तर के बारे में जानकारी होने के साथ ही वाहन से संबंधित कई कामों में परेशानी नहीं होती है।
- राकेश सुमन, बोरखेड़ा

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वाहन इतना पूराना नहीं है और सर्विस समय पर करवते रहते हैं तो धुआं नहीं छोड़ती है। प्रदूषण सर्टिफिकेट वाहन लिया उसके बाद एक बार ही बनवाया है उसके बाद कभी नहीं क्योंकि आवश्यकता नहीं होती। अगर बनाना जरूरी है तो बनवा लेंगे। मुझे इस नियम की जानकारी नहीं थी। वैसे कोटा में लोग दो पहिया के वाहन का कभी कभार ही सर्टिफिकेट बनवाते हैं।
- मंयक राठौर, छावनी

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इनका कहना है
प्रदूषण जांचने के लिए विभाग द्वारा 20 पीयूसी जांच केंद्र स्थापित किए हुए हैं। जहां कोई भी व्यक्ति अपने वाहन का सर्टिफिकेट बनवा सकता है। वहीं जिन वाहनों का प्रदूषण स्तर तय सीमा से अधिक है उन्हें चिन्हित करके उनका चालान बनाया जाता है। लोगों को प्रदूषण सर्टिफिकेट हमेशा बनवा के रखना चाहिए क्योंकि इससे इंश्योरेंस नवीनीकरण या क्लेम करने, वाहन खरीदने बेचते समय परेशानी होती है।
- दिनेश सिंह सागर, प्रादेशिक परिवहन अधिकारी, कोटा

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