मतदान जरूर करे, एक वोट भी करता है जीत-हार का फैसला
केआर ध्रुवनारायण से सिर्फ एक वोट से हार गए
मिजोरम विधानसभा चुनाव में तुइवावल (एसटी) सीट पर मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के लालछंदमा राल्ते ने कांग्रेस विधायक आरएल पियानमाविया को सिर्फ तीन वोटों से हराया।
जयपुर। आप वोट जरूर डालें, क्योंकि एक वोट भी चुनाव में जीत-हार का फैसला करता है। कुछ जगहों पर आठ, नौ या दस वोट से भी जीत-हार हुई। साल 2004 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जनता दल (सेक्युलर) के एआर कृष्णमूर्ति कांग्रेस केआर ध्रुवनारायण से सिर्फ एक वोट से हार गए। यह सांथेमरहल्ली (एससी)सीट पर हुआ। कृष्णमूर्ति को 40,751 वोट मिले जबकि ध्रुवनारायण 40,752 वोट। राजस्थान में 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान नाथद्वारा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के सीपी जोशी भाजपा के कल्याण सिंह चौहान से महज एक वोट से हार गए थे। चौहान को 62,216 वोट मिले जबकि जोशी को 62,215 वोट। 2018 में हुए मिजोरम विधानसभा चुनाव में तुइवावल (एसटी) सीट पर मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के लालछंदमा राल्ते ने कांग्रेस विधायक आरएल पियानमाविया को सिर्फ तीन वोटों से हराया। राल्ते को 5,207 वोट मिले, जबकि पियानमाविया को 5,204 वोट।
लोकसभा चुनाव में 10 सबसे कम जीत के अंतर के किस्से
1984: पंजाब के लुधियाना से शिरोमणि अकाली दल के मेवा सिंह 140 वोटों से जीते।
1999: यूपी घाटमपुर से बसपा के प्यारेलाल 105 वोटों से जीते।
1980: यूपी देवरिया से कांग्रेस के रामायण राय 77 वोटों से जीते।
2004: लक्षद्वीप से जेडीयू के पी पूकुनहिकोया 71 वोटों से जीते।
1962: मणिपुर के आउटर मणिपुर से सोशलिस्ट पार्टी के रिशांग 42 वोटों से जीते।
2014: लद्दाख से बीजेपी के थुपस्तान छेवांग 36 वोटों से जीते.
1971: तमिलनाडु के त्रिचेंदूर से डीएमके के एमएस शिवसामी 26 वोटों से जीते।
1996: गुजरात के बड़ौदा से कांग्रेस के गायकवाड़ सत्यजीतसिंह 17 वोटों से जीते।
1989: आंध्र प्रदेश के अनाकापल्ली से कांग्रेस के कोनाथला रामकृष्ण 9 वोटों से जीते।
1998: बिहार के राजमहल से बीजेपी के सोम मरांडी 9 वोटों से जीते।
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