शिंदे और अजीत पवार की बढ़ती हैसियत से भाजपा कार्यकर्ता हताश
आज तो भाजपा एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री एवं अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बनाकर भी मराठा आरक्षण आंदोलन से उपजी मराठों की नाराजगी दूर नहीं कर सकी। जबकि ये दोनों प्रमुख मराठा चेहरों में से एक हैं।
शिवसेना के साथ गठबंधन में भाजपा की जीत का स्ट्राइक रेट हमेशा शिवसेना से बेहतर रहता आया था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का स्ट्राइक रेट शिवसेना (यूबीटी) शिवसेना राकांपा, और कांग्रेस से भी खराब रहा है।
मुंबई। महाराष्ट्र में एनडीए की हार का बड़ा कारण राज्य में बढ़ा असंतोष माना जा रहा है। लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में भाजपानीत गठबंधन को अपेक्षित सफलता न मिल पाने में कई अन्य कारणों के अलावा सांगठनिक असंतोष ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। यदि समय रहते भाजपा ये असंतोष दूर न कर सकी तो कुछ ही महीनों बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों में उसे और तगड़ा झटका लग सकता है।
भारतीय जनता पार्टी अपनी स्थापना के बाद से ही महाराष्ट्र में सांगठनिक दृष्टि से एक मजबूत और जुझारू पार्टी बन कर उभरी। संयोग से जनसंघ काल के बाद भाजपा की स्थापना भी मुंबई में ही हुई थी। स्थापना के बाद से ही भाजपा को राज्य में प्रमोद महाजन एवं गोपीनाथ मुंडे जैसे दो युवा चेहरे मिले। महाजन की पहल पर ही यहां के उभरते क्षेत्रीय दल शिवसेना से गठबंधन की शुरुआत हुई। दोनों दलों ने मिलकर यहां की मजबूत जनाधार वाली कांग्रेस से टक्कर लेकर 1995 में पहली बार अपनी सरकार बनाई।
मराठा आंदोलन का असर
आज तो भाजपा एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री एवं अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बनाकर भी मराठा आरक्षण आंदोलन से उपजी मराठों की नाराजगी दूर नहीं कर सकी। जबकि ये दोनों प्रमुख मराठा चेहरों में से एक हैं। उलटे इन दोनों को इनके वृहद कुनबे के साथ अपने साथ लाने से भाजपा के ही विधायकों में असंतोष पैदा हुआ है। क्योंकि इन दोनों के साथ आने से मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा विधायकों का ही हक मारा गया है।
विधायकों से नीचे के स्तर पर भी असंतोष पनप रहा
विधायकों से नीचे के स्तर पर भी असंतोष पनप रहा है। महाराष्ट्र की 27 महानगरपालिकाओं एवं 300 से अधिक नगरपालिकाओं का कार्यकाल काफी पहले समाप्त हो चुका है। इन स्थानीय निकायों के चुनाव लंबित हैं। युवा नेताओं की नई पौध स्थानीय निकायों से ही तैयार होती है।
पिछले दो साल से ये चुनाव भले कुछ न्यायिक कारणों से नहीं हो पा रहे हैं। लेकिन केंद्र एवं पिछले दो साल से ही राज्य में भी भाजपा के गठबंधन वाली सरकार होने से स्थानीय निकायों के चुनाव न होने का ठीकरा भी उसी पर फूट रहा है।
कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता
शिवसेना के साथ गठबंधन में भाजपा की जीत का स्ट्राइक रेट हमेशा शिवसेना से बेहतर रहता आया था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का स्ट्राइक रेट शिवसेना (यूबीटी) शिवसेना राकांपा, और कांग्रेस से भी खराब रहा है।
इसका एक बड़ा कारण संगठन में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं का निष्क्रिय होना माना जा रहा है। चुनाव से पहले पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व जहां बूथ प्रमुख एवं पन्ना प्रमुख के जरिए घर-घर पहुंचने का दावा कर रहा था। वहीं चुनाव परिणाम आने के बाद खुद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस मान रहे हैं कि वह सोयाबीन एवं कपास उत्पादक किसानों तक पहुंच बना पाने में नाकाम रहे। प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले हार का ठीकरा जातिवाद की राजनीति को दे रहे हैं। जबकि इसी महाराष्ट्र में भाजपा नेता माली, धनगर एवं वंजारी (माधव समीकरण) जैसे अन्य पिछड़ा वर्गों को साथ लेकर मजबूत मराठा नेताओं को चुनौती देते रहे थे।
निचले स्तर के संगठन की उपेक्षा
दूसरी ओर नई पीढ़ी के नेता और कार्यकर्ताओं के उससे न जुड़ पाने के कारण निचले स्तर पर संगठन कमजोर होता जा रहा है। दो साल से राज्य में साझे की सरकार होने के बावजूद निगमों एवं महामंडलों में नियुक्तियां न होना एवं मंत्रिमंडल का विस्तार न होना भी सांगठनिक असंतोष का कारण बन रहा है। भाजपा के सांगठनिक ढांचे में प्रदेश स्तर से लेकर केंद्रीय इकाई तक संगठन महासचिव की बड़ी भूमिका होती है। इस पद पर बैठा व्यक्ति सामान्यत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिनिधि होता है। जो निरपेक्ष भाव से संगठन एवं सरकार के बीच की कड़ी बनकर काम करता है और सभी की बात सुनकर सामंजस्य बैठाता है। करीब तीन साल से महाराष्ट्र की प्रदेश इकाई में कोई पूर्णकालिक संगठन महासचिव का न होना भी प्रादेशिक संगठन की एक बड़ी कमजोरी माना जा रहा है।
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