मुकुंदरा ना इंसानों के काम का रहा ना बाघ ही बस पाए
घाटी, मशालपुरा गांव के लोगों का नहीं हुआ विस्थापन, बाघों को नहीं रास आ रहा टाइगर रिजर्व
परियोजना की घोषणा होने के तुरंत बाद आनन फानन में यहां पर सारी तैयारियां की गई, और तीन बाघ यहां पर रणथंभौर से लाकर छोड़े गए ।
झालावाड़। झालावाड़ और कोटा जिले के मध्य फैली सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व, इन दोनों के बदली आंसू बहा रही है। परियोजना में ना तो बाघ रह रहे हैं ना हीं इंसान। परियोजना की घोषणा लगभग 7 साल पहले हुई थी, जब तत्कालीन सीएम द्वारा इस परियोजना में गहरी रुचि दिखते हुए इसको जमीन पर उतारने की तैयारी की गई। परियोजना की घोषणा होने के तुरंत बाद आनन फानन में यहां पर सारी तैयारियां की गई, और तीन बाघ यहां पर रणथंभौर से लाकर छोड़े गए जबकि एक बाघ खुद चलता हुआ यहां आ पहुंचा। कुछ दिनों बाद बाघों के एक जोड़े ने दो शावकों को जन्म दिया, इस प्रकार से देखते ही देखते यहां बाघों का कुनबा बढ़कर की 6 की संख्या तक जा पहुंचा। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकार ने पूरा मामले में जल्दबाजी की और बिना पूरी तैयारी के यहां बाघों को छोड़ दिया। जबकि परियोजना के सबसे संपन्न क्षेत्र दरा के घाटी गांव से लेकर मशालपुरा गांव तक लोगों का विस्थापन नहीं हो पाया था, यहां लोग आज भी रह रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि बाघों की मौजूदगी मनुष्यों को रास नहीं आई तथा दोनों एक दूसरे के लिए खतरा बनते रहे और अंत में चार बाघ मौत के मुंह में समा गए, जबकि दो बाघों का रेस्क्यू करके यहां से ले जाया गया। जिसमें से भी एक बाघिन की बाद में मौत हो गई। अब यहां बार-बार बाघ छोड़े जाने की बात उठती आई है, लेकिन हालात आज भी नहीं बदले हैं। परियोजना क्षेत्र में आज भी काफी लोग निवास कर रहे हैं, जो मुआवजा कम होने की बात कह कर यहां से निकलना नहीं चाहते। अधिकांश लोग इलाका छोड़कर जा चुके हैं लेकिन जो लोग यहां पर रह रहे हैं उनका साफ तौर पर कहना है कि जो मुआवजा सरकार द्वारा उनको दिया जा रहा है वह पर्याप्त नहीं है। लोग कहते हैं कि उनकी जमीनें यहां पर बहुत ज्यादा है, ऐसे में मुआवजा राशि उनके लिए कम पड़ रही है। वह स्पेशल पैकेज की मांग करते हैं या सरकार से मुआवजा बड़ा कर दिए जाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन पूरे मामले के चलते परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है और हालात ऐसे हो गए हैं कि ना तो यह इलाका बाघों के काम आ रहा है ना ही इंसानों के। बस्तियां उजड़ गई है लेकिन बाघ भी नहीं बस पाए हैं।
परियोजना के मशालपुरा गांव में लगभग 7 परिवार इस वक्त रह रहे हैं, जो साफ तौर पर कहते हैं कि उनको मुआवजा पर्याप्त नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि 15 लाख रुपए प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से सरकार ने मुआवजा दिया है, ऐसे में जिन लोगों की यहां जमीन नहीं थी वह 15-15 लाख रुपए लेकर चले गए, लेकिन जो अब यहां बचे हैं उनकी काफी जमीन यहां पर हैं, ऐसे में उनके नुकसान की पूर्ति 15 लाख रुपए से नहीं हो सकती, इसलिए वह यहां से नहीं जाएंगे। लोगों को आरोप है कि वोट डालने के लिए सरकार 18 साल के व्यक्ति को बालिग मानती है जबकि टाइगर रिजर्व में मुआवजे के लिए आयु सीमा 21 वर्ष रखी गई, ऐसे में कई परिवारों को काफी नुकसान हो रहा है और वह यहां से जाना नहीं चाहते। माना जाता है खुद का फैसलाटाइगर रिजर्व परियोजना में सरकार के पास ऐसा कोई नियम नहीं है कि वह वहां रहने वाले लोगों को जबरदस्ती बाहर निकाल सकें। पूरा मामला स्वैच्छिक है यदि व्यक्ति अपनी मर्जी से जाना चाहता है तभी वह यहां से जाएगा और उसको मुआवजा मिलेगा, लेकिन जो व्यक्ति वहां मर्जी से रहना चाहते हैं उनको वहां से निकला नहीं जा सकता, ऐसे में यहां रहने वाले लोगों पर सरकार और प्रशासन का कोई अंकुश नहीं है और वह इनको यहां से नहीं हटा पा रहे हैं, तथा यहां रहने वाले लोगों का साफ कहना है कि उन्हें स्पेशल पैकेज या स्पेशल मुआवजा जब तक नहीं मिलेगा तब तक वह यहां से नहीं जाएंगे, ऐसे में टाइगर रिजर्व परियोजना पर तलवार लटकी हुई है, क्योंकि बाघ और इंसान एक बार यहां पर साथ रहे तो बाघ खत्म हो गए थे,अब दोबारा अगर यहां बाघों को छोड़ा जाता है तो वह एक तरह का जोखिम लेना ही कहलाएगा।
इनका कहना है
परियोजना क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों से कैंप लगाकर बातचीत की गई थी तथा आगे भी कैंप आयोजित करके उनसे समझाइश की जा रही है, कुछ लोग वहां से जाने को राजी हो गए हैं लेकिन कुछ वहां से जाना नहीं चाहते, प्रशासन के स्तर पर लगातार प्रयास कर रहे हैं तथा उनकी मांगों से सरकार को भी अवगत करवाया जा रहा है।
- अजय सिंह राठौड़, जिला कलेक्टर, झालावाड़।
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