कोटा तो क्लीन हुआ नहीं, हजारों के डस्टबीन होने लगे गायब

35 हजार के डस्टबीन की हो रही दुर्दशा, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बजट से खरीदे थे डस्टबीन

कोटा तो क्लीन हुआ नहीं, हजारों के डस्टबीन होने लगे गायब

शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी निभाने वाला नगर निगम अपनी उस जिम्मेदारी में तो अभी तक पूरी तरह से सफल नहीं हो सका है। लेकिन उनके द्वारा शहर में लगाए गए हजारों रुपए के डस्टबीन जरूर दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं।

कोटा । शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी निभाने वाला नगर निगम अपनी उस जिम्मेदारी में तो अभी तक पूरी तरह से सफल नहीं हो सका है। लेकिन उनके द्वारा शहर में लगाए गए हजारों रुपए के डस्टबीन जरूर दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं। नगर निगम कोटा दक्षिण द्वारा झालावाड़ रोड पर बैंकों के सामने समेत कई जगह पर स्मार्ट डस्टबीन लगाए थे। जिससे वे सुंदर भी दिखें और उनमें हल्का कचरा डाला जा सके। साथ ही उन्हें रोजाना खाली करना भी सुविधाजनक रहे। इस सोच के साथ लगाए गए डस्टबीन की देखभाल नहीं होने से उनकी दुर्दशा हो रही है।

ऐसा ही एक मामला है झालावाड़ रोड पर बैंक के सामने का है। निगम द्वारा छावनी चौराहे से लेकर कोटड़ी चौराहे के पास स्थित बैंक के सामने तक तीन स्थानों  पर स्मार्ट डस्टबीन लगाए गए हैं। जिनमें से अधिकतर की तो अभी तक प्लास्टिक की थैली तक नहीं हटी है। उससे पहले ही वे कबाड़ होने लगे हैं। बैंक आॅफ बड़ौदा के सामने लगे डस्टबीन में से एक डिब्बा ही गायब हो गया है। उसे कौन लेकर गया इसकी जानकारी तक किसी को नहीं है। मेन रोड पर होने के बावजूद उसे स्मैकची ले गए या चोर या फिर निगम के ही किसी कर्मचारी ने सफाई के लिए खोला किसी को पता नहीं है। उस डस्टबीन के ऊपर लिखा है क्लीन कोटा। लेकिन वह मकसद पूरा नहीं हो रहा है। 35 हजार रुपए के डस्टबीन का न तो उपयोग हुआ और न ही वह देखने में सुंदर लग रहा है। वरन् निगम द्वारा जनता के धन की बर्बादी की दास्ता बयां कर रहा है। जबकि अंदरूनी गलियों व इलाकों में लगे डस्टबीन की हालत का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। नगर निगम कोटा दक्षिण द्वारा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिले बजट में से 100 स्मार्ट डस्टबीन बनवाए थे। प्रत्येक डस्टबीन की कीमत करीब 35 हजार रुपए है।

इनका कहना है
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से मिले बजट से स्मार्ट डस्टबीन बनवाए थे। जिन्हें शहर में चुनिंदा स्थानों पर लगाना था। लेकिन निगम की तत्कालीन आयुक्त ने न तो मुझसे पूछा और न ही पार्षदों से। अपनी मर्जी से मेन रोड पर दिखावे के लिए उन डस्टबीन को लगा दिया। जिनकी सही ढंग से मॉनिटरिंग नहीं होने से उनकी दुर्दशा हो रही है। यदि सभी पार्षदों को एक-एक दो-दो डस्टबीन देते तो पूरे शहर में लगते और वे उनकी देखभाल भी करते।
-राजीव अग्रवाल, महापौर नगर निगम कोटा दक्षिण

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