विदेशी किशोरों ने अपनाया सनातन धर्म, सीख रहे हिन्दू साधना पद्धति
जापान और नेपाल के बालक और किशोर संन्यासी के अंश में ध्यान-साधना में रम गए
सनातन धर्म का डंका दुनिया भर में बज रहा है। विदेशी किशोरों पर संन्यास का क्रेज छाया है। वे माथे पर तिलक, सिर पर मोटी चोटी और मोती-रामनामी ओढ़कर प्रभु श्रीराम, भगवान शिव और श्रीकृष्ण को समझने का प्रयास कर रहे हैं
प्रयागराज। सनातन धर्म का डंका दुनिया भर में बज रहा है। विदेशी किशोरों पर संन्यास का क्रेज छाया है। वे माथे पर तिलक, सिर पर मोटी चोटी और मोती-रामनामी ओढ़कर प्रभु श्रीराम, भगवान शिव और श्रीकृष्ण को समझने का प्रयास कर रहे हैं। विदेशी किशोरों ने सनातन धर्म से प्रभावित होकर संस्कृति और संस्कार बदल लिया है। सनातन धर्म का डंका सात समंदर पार तक बज रहा है, इसका विश्व समुदाय के सामने जीता-जागता उदाहरण महाकुंभ में आए बाल और किशोर संन्यासी हैं। संगम की रेती पर अमेरिका, रूस और जर्मनी के कई बालकों और किशोरों ने सनातन धर्म से प्रभावित होकर अपनी संस्कृति और संस्कार दोनों बदल दिए हैं। रूस की राजधानी मास्को से आए दिमित्रो और डेनियल संन्यास धारण कर संगम में डुबकी लगाकर वेद की ऋचाओं का पाठ कर रहे हैं। वह संतों के सानिध्य में देव भाषा संस्कृत भी सीख रहे हैं, ताकि वेद के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण कर सकें। 11 वर्षीय दिमित्रों और 13 वर्षीय डेनियल ही नहीं ऐसे 50 से अधिक विदेशी बालक और किशोर महाकुंभ के दो स्नान पर्व बीतने तक सनातन संस्कृति को पूरी तरह अपना कर संन्यासी बन चुके हैं।
यह विदेशी किशोर संन्यासी बनकर कल्पवासियों के बीच की कठिन जीवन शैली से लेकर नागाओं के धूना रमाने की साधना तक को करीब से जानने का प्रयास कर रहे हैं। सेक्टर-19 के अपने शिविर में दिमित्रो चार बजे भोर में ही उठ जाते हैं। यह रिक्शे से हर रोज प्रात: संगम स्नान के बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर पूजा करते हैं। वह बताते हैं कि कल्पवास कर रहे देवरिया निवासी रामायण तिवारी से वह पूजा पद्धति सीख रहे हैं। इसी अमेरिका के न्यूयार्क निवासी उद्यमी एडम्मा के पुत्र 15 वर्षीय पुत्र लियाम ने भी महाकुंभ में हिन्दू धर्म अपना लिया है। जींस, कोट-पैंट में न्यूयार्क से आए लियाम ने अब सफेद धोती पहनने, लपेटने के साथ ही रामनामी ओढ़कर ध्यान और प्रभु का नाम जप शुरू कर दिया है। लियाम ने संगम पर केश मुंडन कराकर मोटी चोटी रख ली है। वह भी रोज रिक्शे से संगम में डुबकी लगाने जाते हैं। वह दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा के साथ ही वेद पाठ का अभ्यास कर रहे हैं। इसी तरह जापान की महामंडलेश्वर केको आईकाव्य उर्फ कैला माता के शिविर में रूस, जापान और नेपाल के बालक और किशोर संन्यासी के अंश में ध्यान-साधना में रम गए हैं।
जूना अखाड़े के महंतों, महामंडलेश्वरों के शिविरों में 50 से अधिक विदेशी बालक और किशोर संन्यासी बनकर ध्यान-साधना कर रहे हैं। ऐसे कई किशोर संन्यासी बनने के बाद तीन पहर गंगा स्नान भी कर रहे हैं। महाकुंभ क्षेत्र में बने 12 राज्यों के पवेलियन भारत की एकता का संदेश दे रहे हैं। यहां दादरानागर हवेली, नागालैंड, लेह, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की संस्कृति का संगम हो रहा है। प्रदेश सरकार देश-विदेश के लोगों को महाकुंभ का आमंत्रण भेजा गया है। राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को आमंत्रण दिए गए। इसका असर दिखने लगा है। सेक्टर सात में 12 राज्यों के पवेलियन बनाए गए हैं। इन राज्यों की खूबियों को प्रदर्शित किया गया। नागालैंड का चांगलो, लेह का शोंडोल लोक नृत्य समेत दादरानगर हवेली, छत्तीसगढ़, गुजरात, एमपी, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान की संस्कृति का संगम देखने को मिल रहा है।
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