शब्दों को आने देना चाहिए, उनसे सुंदर कुछ नहीं होता : मानव कौल
मुझे मेरे चेहरे के बजाय मेरे लेखन से ज्यादा पहचान सकते हैं
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन की शुरुआत लेखक और अभिनेता मानव कौल के अपनी पहली लेखन यात्रा के बारे में अनुभव साझा करने से हुई।
जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन की शुरुआत लेखक और अभिनेता मानव कौल के अपनी पहली लेखन यात्रा के बारे में अनुभव साझा करने से हुई। फ्रंट लॉन में सुबह 10 बजे हुए सत्र ‘ए बर्ड ऑन माई विंडो सिल’ में उन्होंने कहा कि आप मुझे मेरे चेहरे के बजाय मेरे लेखन से ज्यादा पहचान सकते हैं। उन्होंने किताबों, एकांत और अकेले यात्रा करने के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया। उन्होंने ‘चाय’ से जुड़ी अपनी यादों का भी जिक्र किया और बताया कि यह उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा कैसे बन गई, जो बाद में उनकी लेखनी का भी जरूरी पहलू बन गई।
कौल ने बताया कि असली अनुभवों से मिली प्रेरणा ही उनके लेखन का आधार है। उन्होंने कहा कि शब्दों को आने देना होता है और जब वे आते हैं, तो उससे सुंदर कुछ नहीं होता। उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि मैं और मेरा दोस्त सलीम होशंगाबाद रेलवे स्टेशन पर बैठकर गुजरती ट्रेनों को देखा करते थे। हम हमेशा सोचते थे कि ये तेज रफ्तार ट्रेनें कहां जा रही हैं, कहां समाप्त होती हैं। मैं उन सभी जगहों को देखना चाहता था और आज भी मुझमें वही बच्चा जिंदा है, जो उन जगहों पर जाना और उन लोगों से मिलना चाहता है।
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