सतरंगी सियासत
जानें इंडिया गेट में आज है खास...
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रिवर्स तो नहीं...
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ईडी के फेर में। पहले ही खान आवंटन के एक मामले में फंसे हुए। चुनाव आयोग में शिकायत अलग से। ऐसे में उनकी कुर्सी ही नहीं विधायकी को भी खतरा। ऊपर से हेमंत सरकार में कांग्रेस की साझीदारी। इधर,राज्य सरकार ने रांची में योगी स्टाइल में दंगाईयों के फोटो, पोस्टर क्या चस्पा किए। कांग्रेस ने घुड़की दे डाली। क्योंकि जिनके फोटो सार्वजनिक रुप से पिचकाए गए। वह कांग्रेस ही नहीं जेएमएम का भी वोट बैंक। सो, अब पोस्टर जरुरी संशोधन के नाम पर वापस हो गए। लेकिन अब कहीं मामला रिवर्स तो नहीं जाएगा? असल में, हेमंत दो तरफा दबाव में। फिलहाल तो कांग्रेस का दबाव काम कर गया। लेकिन यह कहीं यह उल्टा हो गया तो? क्योंकि अब वहां भाजपा के मुख्य लीडर बाबूलाल मरांडी। जो खुद खांटी नेता ही नहीं। आदिवासी समुदाय से भी। ऐसे में मरांडी का दांव सही लगा तो। वह नेता विपक्ष के नाते अगुवाई के प्रबल दावेदार। भाजपा टकटकी लगाए हुए!
राहुल गांधी से पूछताछ...
क्या मोदी सरकार जाने अनजाने में ही कांग्रेस में जान फूंकने का काम कर रही। राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ को कांग्रेस आंदोलन का रुप दे रही। उसने देशभर में गवर्नर हाउस और जिला स्तर पर केन्द्रीय एजेंसियों के दफ्तरों के बाहर धरना, प्रदर्शन करके इसकी झलक भी दे दी। इधर राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी। वहीं, साल के आखिर में गुजरात, हिमाचल प्रदेश के बाद अगले साल कर्नाटक के विधानसभा चुनाव। कब महाराष्ट्र और झारखंड में कुछ हो जाए, पता नहीं। मतलब राहुल गांधी की ईडी द्वारा की जा रही ‘ग्रीलिंग’ के बहाने कांग्रेस एकसूत्र में बंधी जा रही? आखिर चार दिन तक अशोक गहलोत और भूपेश बघेल यूं ही तो नहीं दिल्ली में नहीं टिके होंगे? सीएम गहलोत तो विरोध की रणनीति बनाने में भी अगुवा रहे। हां, यह सवाल जरुर उठ रहा। राहुल गांधी के लिए तो कांग्रेस सड़क पर आ गई। कभी जनता हित के लिए भी ऐसा हो तो कहना ही क्या!
अग्निवीर बनाम कृषि कानून...
मोदी सरकार अध्यादेश के जरिए तीन कृषि कानून लेकर आई थी। लेकिन किसानों का विरोध इतना आगे चला गया कि इन्हें वापस लेना पड़ा। अब फिर से मोदी सरकार देश के युवाओं के रोजगार के लिहाज से अग्निपथ योजना लेकर आई है। इसमें शामिल होने वालों को अग्निवीर कहा जाएगा। लेकिन घोषणा के बाद ही जिस प्रकार से हिंसक घटनाएं हुईं। उससे लग रहा कि यह माजरा विरोध से आगे का। बिहार समेत देश के कई राज्यों में उग्र प्रदर्शन एवं हिंसक वारदातें हुईं। सरकार उनको लगातार भरोसा एवं आश्वासन दे रही। लेकिन विरोध करने वाले न मानने को राजी और न सुनने, समझने को। सरकार ने कुछ ढील भी दी। लेकिन बात बन नहीं रही। ऐसे में विरोधियों का इरादा क्या? सरकर ने आगे के विकल्प भी बता दिए। उसके बावजूद विरोध जारी। फिर कोई आश्चर्य नहीं जब खबर आए कि विरोध की साजिश सीमा पार रची गई और युवा सिर्फ टूल बने! क्योंकि ज्यों-ज्यों जांच आगे बढ़ेगी, परतें खुलेंगी!
अगुवा गहलोत?
अशोक गहलोत ने दिल्ली में भी बाजी मार ली। उन्होंने सरकार को छकाने की योजना में बढ़ बढ़कर हिस्सा लिया। जैसा कि सीएम गहलोत ने आरोप जड़ा। सरकार ने बदला लेने के लिए उनके भाई के घर सीबीआई की रेड करवा दी। उन्होंने टाइमिंग का भी जिक्र किया। चर्चा यहां तक। गहलोत ने राहुल गांधी और ईडी प्रकरण के जरिए अपने विरोधियों को भी ताकत का अंदाजा करवा दिया। गहलोत रणनीति बनाने में बाकी से इक्कीस। शुक्रवार को जयपुर रवाना होने से पहले उन्होंने राहुल गांधी से उनके आवास पर जाकर मंत्रणा की। मंगलवार को राहुल गांधी के साथ कांग्रेस मुख्यालय में मंच भी साझा किया। जहां प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं। मतलब राहुल गांधी से नजदीकी को और पुख्ता कर लिया। अब सोमवार को गहलोत फिर से दिल्ली में सरकार के खिलाफ मोर्चा संभालेंगे। राज्यसभा में तो वह भाजपा में ही सेंध लगाकर मात दे चुके। मतलब अब और बड़े ओहदे या जिम्मेदारी की तैयारी तो नहीं! कयास तो यही लग रहे।
कहां रुकेगी रस्साकशी?
राज्यसभा चुनाव में भाजपा अपनों की ही भीतरघात से मात खा गई। ऐसा पहले भी हो चुका। जब विधानसभा में ऐन मौके पर कांग्रेस सरकार के खिलाफ भाजपा को अविश्वासमत वापस लेना पड़ा। अब राज्यसभा चुनाव में भी क्रॉस वोटिंग हो गई। रही सही कसर प्रदेश कार्यसमिति की बैठक ने पूरी कर दी। घर की बात बाहर आ गई। वैसे भाजपा में कार्यकतार्ओं के बीच ऐसी अनुशासनहीनता कम ही पाई जाती। न ही गाली गलौच या धक्कामुक्की की नौबत होती। लेकिन कोटा में ऐसे वाकिए सुनाई दिए। कुछ ही माह बाद। पार्टी को विधानसभा चुनाव में उतरना होगा। शीर्ष स्तर से कहा जा चुका। भाजपा पीएम मोदी के चेहरे और कमल के निशान के साथ जनता के बीच जाएगी। और विवाद की असल वजह भी यही। भाजपा का एक वर्ग सीएम चेहरे के साथ जाने की बात पर अड़ा हुआ। तो दूसरा धड़ा कह रहा। जो शीर्ष नेतृत्व चाहेगा। उसी के अनुसार पार्टी आगे बढ़ेगी। तो फिर यह रस्साकशी कहां जाकर रुकेगी?
खेल बाकी?
महाराष्ट्र में देवेन्द्र फड़नवीस का डंका बज गया। सीएम ठाकरे सदमे में। फड़नवीस का लौहा शरद पवार भी मान चुके। एमवीए गठबंधन सरकार में रहते हुए भी उतने विधायकों को नहीं जुटा पाई। जितना भाजपा विपक्ष में रहते हुए कर गई। अब सोमवार को विधान परिषद की दस सीटों पर चुनाव। भाजपा यहां भी खेल करने की तैयारी में। जबकि शिवसेना तमाम कोशिशों के बावजूद भी कांग्रेस को दूसरा प्रत्याशी उतारने से रोक नहीं सकी। जिससे मतदान की नौबत। अब कांग्रेस तो घाटे में रहने से रही। फजीहत की नौबत शिवसेना की। बात यहां तक आ गई कि कोई भी एक दूसरे से मदद की उम्मीद नहीं करे। वहीं, जल्द ही मुंबई नगर निगम के चुनाव। जिसमें सबसे ज्यादा शिवसेना की प्रतिष्ठा दांव पर। एनसीपी और कांग्रेस दूर से देखेगी। वहीं, भाजपा पूरी तरह से बाजी पलटने के फिराक में। जिसका अंदाजा शिवसेना को भी। मतलब असली खेल बाकी! क्योंकि सीएम ठाकरे राज्यसभा चुनाव में वह एमआईएम के ओवैसी की मदद ले चुके।
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