सफेद सोने के लिए प्रकोप से कम नहीं सफेद मक्खी
कपास की खेती में बदलते प्रतिमान पर राष्टÑीय संगोष्ठी
उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में कपास की खेती के बदलते प्रतिमान पर जारी राष्टÑीय संगोष्ठी में देशभर से आए वैज्ञानिकों ने बताया कि सफेद मक्खी कपास की फसल (सफेद सोना) के लिए प्रकोप से कम नहीं है। इसके लिए संगोष्ठी में शामिल वैज्ञानिकों ने सफेद मक्खी सहित कीट नियंत्रण के संबंध में शोध पत्र प्रस्तुत किए।
उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में कपास की खेती के बदलते प्रतिमान पर जारी राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर से आए वैज्ञानिकों ने बताया कि सफेद मक्खी कपास की फसल (सफेद सोना) के लिए प्रकोप से कम नहीं है। इसके लिए संगोष्ठी में शामिल वैज्ञानिकों ने सफेद मक्खी सहित कीट नियंत्रण के संबंध में शोध पत्र प्रस्तुत किए। बुधवार को इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन होगा। संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. डीपी सैनी ने बताया कि संगोष्ठी के ब्रेन स्टॉर्मिंग सत्र में गुलाबी सुंडि से कपास की फसल में होने वाले नुकसान पर वैज्ञानिकों एवं प्राइवेट कंपनियों के अधिकारियों की चर्चा हुई। वैज्ञानिकों ने कपास की फसल में कीट व्याधियों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए फसल चक्रिकरण वर्ष में एक ही बार कपास की फसल लेने वैकल्पिक पौषक पौधों का नियंत्रण उचित फसल प्रबंधन एवं फील्ड सेनिटेशन तथा रसायनिक कीट नियंत्रकों के अलावा जैविक कीट नियंत्रक जैसे नीम तेल के प्रयोग का सुझाव दिया। डॉ ऋषि कुमार ने उत्तर भारत में कपास की वर्तमान स्थिति, सफेद मक्खी के बढ़ते प्रकोप के कारण एवं सर्वे का डाटा प्रस्तुत किया। सत्र में मुख्य रूप से बीटी कॉटन की किस्मों पर जोर दिया। तकनीकी सत्र में लीड लेक्चर के दौरान कपास की खेती में यंत्रीकरण पौधों की उचित बढ़वार के लिए वृद्धि नियंत्रकों के प्रयोग, खेती में जुटे किसानों एवं व्यवसायिक श्रमिकों के लिए रक्षात्मक परिधान, कपास की संकर किस्मों की वर्षा आधारित खेती के परिदृश्य, ड्रिप सिंचाई द्वारा उर्वरकों के प्रयोग इत्यादि पर 10 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
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