मॉडर्ना की वैक्सीन बनाने में भारतीय मूल के वैज्ञानिक का अहम योगदान
कंपनी ने मेतकर को ‘फर्स्ट नेम्ड इनवेंटर’ बताया
नई दिल्ली। दुनिया भर में कोरोना वायरस से बचाव के लिए दवा कंपनियां वैक्सीन बना रही हैं। इनमें मॉडर्ना कंपनी भी शामिल है। उसकी बनाई वैक्सीन भी लोगों को लगाई जा रही है। मॉडर्ना इस वैक्सीन को बनाने में भारतीय मूल के वैज्ञानिक का भी अहम योगदान है। इनका नाम मिहिर मेतकर है। आरएनए तकनीक का उपयोग करके कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए अपने पेटेंट के लिए दिए आवेदन में कंपनी ने पुणे से पढ़ाई कर चुके बायोइंफॉर्मेटिक मिहिर मेतकर को ‘फर्स्ट नेम्ड इनवेंटर’ के रूप में बताया गया है। ‘फर्स्ट नेम्ड इनवेंटर’ को प्राथमिक योगदान देने के रूप में जाना जाता है। मिहिर मेतकर को मॉडर्ना की ओर से अमेरिकी पेटेंट ऑफिस में दिए गए दो अन्य आवेदनों में भी नामित किया गया है। मॉडर्ना की कोरोना वैक्सीन नए तरीके की है जो मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) का उपयोग करती है। यही मैसेंजर आरएनए शरीर को कोविड-19 वायरस के जैसे ही प्रोटीन बनाने के लिए प्रेरित करता है ताकि शरीर का इम्यून सिस्टम बेहतर हो और कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन सकें। पारंपरिक वैक्सीन में या तो मृत वायरस या उनके कुछ हिस्सों या एक अलग वायरस के जीन के संशोधित रूप का उपयोग किया जाता है।
अमेरिकी दावे के खिलाफ
‘फर्स्ट नेम्ड इनवेंटर’ के रूप में मिहिर मेतकर का नाम मॉडर्ना द्वारा अमेरिकी सरकार के राष्टÑीय स्वास्थ्य संस्थान (एनआईएच) के इस उस दावे के खिलाफ दायर किए गए दस्तावेज में है, जिसमें उसने कहा है कि उसके वैज्ञानिकों को टीके के आविष्कारक के रूप में भी श्रेय दिया जाना चाहिए। जिसे इसके सहयोग से विकसित किया गया था और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा अभियान के तहत वैक्सीन का तुरंत उत्पादन करने के लिए 1.53 अरब डॉलर की राशि उपलब्ध कराई गई थी। पेटेंट के लिए मूल आवेदन में उनके बाद व्लादिमीर प्रेस्रायक और गिलाउम स्टीवर्ट-जोन्स का नाम है।
मेतकर ने पुणे से की मास्टर्स डिग्री
मेतकर ने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ बायोइंफॉमेटिक्स एंड बायोटेक्नोलॉजी से मास्टर्स किया है। उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक वह अमेरिका जाने से पहले पुणे में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान में एक परियोजना सहायक के रूप में काम कर चुके हैं।
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