समरकंद में भारतीय कूटनीति ने जमाया रंग

शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन

समरकंद में भारतीय कूटनीति ने जमाया रंग

वैश्विक मंच पर एक बार फिर भारत की संयमित, संतुलित तटस्थ कूटनीति ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से पूर्व निर्धारित समय से अधिक लंबी वार्ता हुई।

बीते सप्ताह उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक नगर समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन को लेकर पूरे विश्व की नजरें टिकी हुई थीं। खासकर अमेरिका और उसके नेतृत्व वाले नाटो संगठन के देशों की। इसमें लिए गए फैसले और विभिन्न देशों के शीर्षस्थ नेताओं के बीच कई अहम मुद्दों पर मंत्रणाएं हुईं। सम्मेलन की खास बात यह रही कि इस वैश्विक मंच पर एक बार फिर भारत की संयमित, संतुलित तटस्थ कूटनीति ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से पूर्व निर्धारित समय से अधिक लंबी वार्ता हुई। जिसमें दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूती देने के साथ, मोदी ने यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में पुतिन को सलाह दी कि मौजूदा समय, युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं है। मैंने आपको पूर्व में भी फोन पर यह सलाह दी थी। 


मोदी की सलाह के जवाब में पुतिन का यह कहना था कि वह भारत की चिंताओं से वाकिफ  है, जहां तक संभव होगा वे युद्ध को शीघ्र समाप्त करने की कोशिश करेंगे। अब यह पुतिन पर निर्भर है कि वे उनकी सलाह पर कब तक और कितना अमल करते हैं? परिणाम यह निकला, दूसरे रोज अमेरिकी मीडिया ने मोदी की तारीफों के पुल बांध दिए। वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में उनकी काफी प्रशंसा की गई है। यही नहीं, व्हाइट हाउस की ओर से और अमेरिका के विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन, राष्ट्रिय सुरक्षा परिषद के समन्वयक जान किर्बी ने प्रतिक्रिया जाहिर की है कि यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने अपनी सोच से रूस को अवगत करा दिया है। चीन भी असहमत है। इससे जाहिर होता है कि पुतिन के फैसले से उसके निकट सहयोगी देश भी सहमत नहीं हैं। वे विश्व बिरादरी से अलग-थलग हो रहे हैं। दूसरी ओर, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ओर से अगले साल भारत की अध्यक्षता में एससीओ की बैठकों के आयोजन के लिए प्रस्ताव लाना और बधाई देना भारत के पक्ष में महत्वपूर्ण रहा। हालांकि मोदी और शी के बीच इस दौरे में कोई वार्ता नहीं हुई। मोदी ने संगठन से जुड़े देशों के बीच बेहतर सम्पर्क सुविधा और परस्पर ट्रांजिट के अधिकारों पर जोर दिया। इसे अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान पर निशाना साधना माना गया। कारण वह अफगानिस्तान को भेजी जाने वाली भारतीय मदद पर रोक लगाता रहा है। 


मोदी ने भारत की विकास दर को साढ़े सात फीसदी से अधिक बताते हुए मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की बात कही। जो भारतीय छवि को उभारने की बात तो है ही, बल्कि अपरोक्ष रूप से चीन के लिए चुनौती से कम भी नहीं। सदैव कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ  खड़े  पाकिस्तान के मित्र तुर्किए के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगन की मोदी से भेंट, दोनों देशों के बीच नए रिश्तों की ओर बढ़ने का संकेत देती है। तुर्किए नाटो संगठन का सदस्य भी है।


ईरान के राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रईसी के साथ हुई बातचीत में चाबहार बंदरगाह के विकास में तेजी लाने, तेल खरीद के संभावित मुद्दों पर चर्चा हुई। उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिरजियोएव से भी बातचीत हुई। लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कोई बातचीत नहीं हुई। मोदी का इस सम्मेलन में सबसे बाद पहुंचना, एक मजबूत तटस्थ कूटनीतिक का भी संदेश दे गया। दो दिवसीय सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग और विश्वास को बढ़ाने पर जहां जोर दिया गया। वहां मोदी ने मौजूदा वैश्विक परिस्थिति में स्टार्ट अप व नवाचार, पारंपरिक चिकित्सा और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में मदद देने का भारत की ओर से प्रस्ताव रखा। 

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सम्मेलन में यूक्रेन युद्ध और ताइवान विवाद पर बंटी दुनिया की छाप भी साफ  दिखाई दी। रूस और चीन ने संगठन को मजबूत बनाने, मध्य एशियाई देशों को अमेरिका से सावधान रहने की सलाह दी है। दोनों ने रणनीतिक स्वायत्ता बरकरार रखने पर जोर दिया। बाहरी ताकतों की ‘रंग आधारित क्रांति’ रोकने की जरूरत बताई। यह इशारा, मध्य एशिया और खाड़ी के देशों की ओर था। रूस ने संगठन के देशों के बीच खेल आयोजन कराने का प्रस्ताव रखा।युद्ध की वजह से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बनी बाधा से अभूतपूर्व ऊर्जा व खाद्य संकट पर चिंता जाहिर की गई। इस क्रम में सदस्य देशों के बीच विश्वस्त व विविध सप्लाई चेन विकसित करने पर जोर दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने स्टार्ट अप और इनोवेशन, पारंपरिक चिकित्सा पर एक कार्य समूह गठित करने की सलाह दी। वहीं, खाद्य सुरक्षा की मिल रही चुनौती से निपटने के लिए मोटे अनाज की खेती और उपभोग के प्रचार, मिलेट फूड के आयोजनों के जरिए हल करने का प्रस्ताव भी रखा। लगे हाथ, आज भारत को यह सोचने की भी जरूरत है कि इस संगठन से जुड़े कुछ देश जो आतंकवाद के पोषक, प्रोत्साहन, संरक्षण देने वाले हैं, ऐसे में इससे जुड़े रहने की क्या सार्थकता है? 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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