चुनावी दल बदल
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा होने के साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं में दल-बदल का सिलसिला शुरू हो जाता है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा होने के साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं में दल-बदल का सिलसिला शुरू हो जाता है। पिछले एक-डेढ़ दशक से ऐसा ही चला आ रहा है। इन पांच राज्यों में से उत्तर प्रदेश सर्वाधिक विधानसभा की सीटों वाला राज्य है और इसी राज्य से दिल्ली की सत्ता का फैसला होता है। अब इसी राज्य में चुनाव की सरगर्मियां काफी बढ़ गई है और इसके बीच ही दल-बदल का खेल भी शुरू हो गया है। 2017 में भाजपा का पलड़ा भारी समझ कर सपा, बसपा व कांग्र्रेस से कई नेता अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए थे। सपा बसपा से भाजपा में आए नेता अब सपा का पलड़ा भारी मानकर अब सपा में लौट रहे हैं और सपा बड़े उत्साह से उन्हें गले लगा रही है और इसे अपनी जीत का संकेत भी मान रही है। मंगलवार को दिल्ली में उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं की बैठक चल रही थी। इसी बीच योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंत्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिया। उनके साथ भाजपा विधायक बृजेश प्रजापति, भगवती प्रसाद सागर और रोशन लाल वर्मा ने भी इस्तीफा दे दिया। बसपा से भाजपा में आए ये सभी नेता अति पिछड़ा वर्ग के हैं और ये यथासंभव सपा में शामिल होंगे। मौर्य सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से भेंट कर चुके हैं और उनका दावा है कि अभी 10-12 विधायक भाजपा से इस्तीफा देंगे। इससे पहले भाजपा विधायक राकेश राठौर माधुरी वर्मा, राधाकृष्ण शर्मा और दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी भाजपा छोड़ चुके हैं। वैसे मौर्य की बेटी संघप्रिया अभी बदायुं से भाजपा की सांसद हैं और मौर्य अपने बेटे को भी टिकट दिलाना चाहते हैं। संभवत: भाजपा के इंकार के बाद उन्होंने भाजपा छोड़ने का कदम उठाया है। वैसे भाजपा सूत्रों का कहना है कि भाजपा छोड़कर गए विधायकों को टिकट मिलने की संभावना न के बराबर थी और इसी वजह से उन्होंने पाला बदल से यूपी में चुनावी गणित में हेरफेर की संभावना है। इस तरह नेताओं के पाला बदल से स्पष्ट हो गया है कि राजनीति में सिद्धांतों का कोई मतलब नहीं रह गया है। नेता जैसे-तैसे भी सत्ता में बने रहना चाहते हैं। इस दल-बदल को बढ़ावा देने में राजनीतिक दलों का ही बड़ा हाथ है और यह किसी भी रूप में स्वच्छ लोकतांत्रिक तरीका नहीं माना जा सकता।
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