तिलहन उत्पादन में  आत्मनिर्भर बनाने में सरसों मॉडेल फार्म प्रोजेक्ट अहम 

दो सौ लाख टन सरसों उत्पादन का लक्ष्य 

तिलहन उत्पादन में  आत्मनिर्भर बनाने में सरसों मॉडेल फार्म प्रोजेक्ट अहम 

द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सॉलिडेरिडाड द्वारा शुरू किए गएसरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट के तहत, सरसो के मॉडल फार्म विकसित किए जाते हैं।

जयपुर। वर्ष 2025 तक सरसों का उत्पादन 200 लाख टन तक बढ़ाने और तिलहन उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से देश के शीर्ष खाद्य तेल उद्योगनिकाय "द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया" एवं सॉलिडेरिडाड संस्था द्वारा "सरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट" का क्रियान्वयन किया जा रहा है। सरसों उत्पादन से संबंधित प्राप्त प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, प्रोजेक्ट क्रियान्वयन क्षेत्र में सरसों के उत्पादन में वृद्धि अनुमानित है।परियोजना के तहत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में अभी तक 2100 से अधिक मॉडल फार्म विकसित किए गए है, जिससे 73500 से अधिक किसान लाभान्वित हुए हैं। प्रोजेक्ट क्रियान्वयन क्षेत्रों मेंकिसानों द्वारा व्यापक रूप में कृषि के वैज्ञानिक तरीके और उन्नत तकनीकों को अपनाया गया है, जिससे उत्पादन में वृद्धि संभव हो सकी है। 

भारत विश्व में खाद्य तेलों के सबसे बड़े आयातकर्ता के रूप में सामने आया है। खाद्य तेलों की घरेलू खपत लगभग 240 लाख टन है। बढ़ती जनसंख्या और प्रति व्यक्ति आय के साथ खाद्य तेलों की खपत और बढ़ने की संभावना है। वर्तमान में,भारत में लगभग 100 लाख टन खाद्य तेल का उत्पादन हो रहा है। खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर लगभग 140 लाख टन है और इस अंतर कोआयात के द्वारा पूरा किया जारहा है। आयात किए जा रहे खाद्य तेल पर देश की निर्भरता चिंता का विषय है और इस चुनौती से निपटने के लिए भारत को तिलहन फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के तरीकों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। भारत में, लगभग एक तिहाई खाद्य तेल की आपूर्ति तोरिया और सरसों से होती है, जो इन्हें देश की प्रमुख खाद्य तिलहन फसल बनाता है। खाद्य तेल के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरसों सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। साथ ही कम लागत और कम सिंचाई में यह फसल अधिक उत्पादन भी देती है।

द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और सॉलिडेरिडाड द्वारा शुरू किए गएसरसो मॉडल फार्म प्रोजेक्ट के तहत, सरसो के मॉडल फार्म विकसित किए जाते हैं, जिसमें खेत की तैयारी, बीज तैयार करने, बुवाई प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन, उर्वरक, पौधों के विकास प्रबंधन, सिंचाई का समय निर्धारण और कटाई आदि में किसानों को सहायता दी जाती है। 

यह परियोजना वर्ष 2020-21 में राजस्थान के 05 जिलों में 400 मॉडल फार्म के साथ प्रारंभ की गई थी। 2021-22 में, परियोजना को 500 अतिरिक्त मॉडल फार्मके साथ राजस्थान और मध्य प्रदेश में विस्तारित किया गया। 2022-23 में, 1234 मॉडल फार्म विकसित किए गए हैं। इस वर्ष राजस्थान और मध्यप्रदेश के साथ ही परियोजना का विस्तार अयोध्या (उत्तर प्रदेश) और संगरूर (पंजाब) में भी किया गया है, जिसमे जे.आर एग्रो इंडस्ट्रीज और रायसीला फाउंडेशन, धुरी का सहयोग प्राप्त हुआ है। इस प्रकार अब तक 2100 से अधिक मॉडल फार्म 04 राज्यों में स्थापित किए गए हैं।

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द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडियाके अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने कहा कि- इस परियोजना के सफल और सकारात्मक परिणाम हमें इस परियोजना को देशव्यापी स्तर पर क्रियान्वित करने की ओर अग्रसर कर रहे हैं ताकि वर्ष 2025 तक सरसों के उत्पादन को 200 लाख टन तक बढ़ाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। 

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विजय डाटा अध्यक्ष एसईए रेप-मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल- “किसानों की आजीविका और आय बढ़ाने के साथ-साथ खाद्य तेल में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरसों सबसे महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। हमें विश्वास है कि सरसों मॉडल फार्म परियोजना सरसों उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाएगी और किसानों की आय और आजीविका में योगदान देगी।

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डॉ. सुरेश मोटवानी, महाप्रबंधक सॉलिडरीडाड एशिया - "तिलहन फसलों की उत्पादकता में सुधार के साथ ही कृषि औरउससे संबद्ध गतिविधियों पर निर्भर किसान परिवार के जीवन में सुधार होता है। हम सरसों मॉडल फार्मों के लिए सरसों अनुसंधान निदेशालयकेंद्र भरतपुर, भारत सरकार द्वारा प्रदान किए गए सहयोग के लिए आभारी हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब के हमारे अनुभव बताते हैं कि आधुनिक तकनीक के सहयोग से सरसों फसल की उत्पादकता में अभूतपूर्व वृद्धि की जा सकती है।

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