दुनिया के 16 देशों से कोटा पहुंचे वल्चर, मुकुंदरा को बनाया आशियाना
विश्व के कई देशों से प्रवास पर कोटा आते हैं तीन प्रजातियों के वल्चर्स
यह अपने घौंसले चट्टानों के बीच दरारों व पेड़ों पर बनाते हैं। एक महीने बाद अंडों से चूजे बाहर आएंगे। ऐसे में इनकी संख्या बढ़ना प्रकृति के जीवन चक्र के लिए अच्छे संकेत माने जाते हैं।
कोटा। दुनिया में वल्चर भले ही संकटग्रस्त श्रेणी में हो, लेकिन चंबल की कराइयों में इनकी आबादी फल-फूल रही है। साउथ ईस्ट एशिया की सबसे बड़ी ब्रिडिंग कॉलोनी के रूप में पहचान बना चुका मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में इनकी 7 प्रजातियां आबाद हो रही है। कोटा से रावतभाटा के जंगलों व चंबल की कराइयों में विभिन्न प्रजातियों के करीब 1500 से ज्यादा वल्चर नजर आ रहे हैं। वहीं, हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस वल्चर विश्व के 16 देशों से मुकुंदरा में प्रवास पर आए हैं। पक्षी विशेषज्ञ देवकीनंदन का कहना है, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के जवाहर सागर से गांधी सागर तक के इलाके में वल्चर की 7 प्रजातियां पाई जाती है। इनमें 4 प्रजातियों के लोंग बिल्ड वल्चर, वाइट रुम्पर्ड वल्चर, किंग व इजिप्सीयन वल्चर शामिल हैं। यह बारह महीने यहीं रहते हैं। जबकि, तीन प्रजाति के हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस ग्रिफॉन वल्चर यूरोपियन देशों से प्रवास पर आए हैं, जो मार्च माह तक रहते हैं। स्थानीय वल्चर की संख्या में अपेक्षाकृत इजाफा हुआ है।
दो दर्जन से ज्यादा नजर आए अंडे
नेचर प्रमोटर एएच जैदी के अनुसार, गरडिया महादेव, गेपरनाथ, भैंसरोडगढ़, जवाहर सागर व राणा प्रताप सागर के आईलैंड, गिरधरपुरा व बोराबांस के जंगलों में लोंग बिल्ड वल्चर अधिक संख्या में नजर आने लगे हैं। आॅक्टूबर माह से नेस्टिंग शुरू हो जाती है। इन जगहों पर दो दर्जन से अधिक गिद्दों के अंडे नजर आने लगे हैं। यह अपने घौंसले चट्टानों के बीच दरारों व पेड़ों पर बनाते हैं। एक महीने बाद अंडों से चूजे बाहर आएंगे। ऐसे में इनकी संख्या बढ़ना प्रकृति के जीवन चक्र के लिए अच्छे संकेत माने जाते हैं।
मुकुंदरा में 1500 से ज्यादा संख्या
बर्ड्स रिसचर हर्षित शर्मा ने बताया कि यहां सबसे ज्यादा संख्या इजिप्सीयन वल्चर की है। वल्चर प्रजातियों में सबसे छोटे कद का होता है। यह अनंतपुरा व अभेड़ा डम्पयार्ड और बोराबांस के इलाकों में ज्यादा नजर आते हैं। इनका झुंड मृत जानवर के शरीर को 15 से 20 मिनट में खा जाते हैं। कोटा से रावतभाटा तक इनकी संख्या करीब 1000 है। वहीं, लोंग बिल्ड वल्चर 400 से 500 तथा वाइट रेम्पर्ड 100 से 150 की संख्या में है। वहीं, किंग वल्चर सबसे कम देखने को मिलते हैं।
इन देशों से कोटा आए यह वल्चर
जैदी बताते हैं, विश्व के 16 देशों से तीन प्रजातियों के वल्चर मुकुंदरा में प्रवास पर आए हैं। जिनमें हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस शामिल हैं। यह वल्चर चीन, साइबेरिया, उत्तरी अमेरिका, यूरोप, इटली, मंगोल, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, आस्ट्रिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, स्वट्जरलैंड व ग्रीस सहित अन्य साउथ ईस्ट एशिया व यूरोपियन देशों से आए हैं। इन देशों में बर्फबारी के कारण सर्दी तेज से खुद को बचाने व भोजन की तलाश में प्रवास पर आते हैं।
इंसानों को हैजा व ऐंथ्रेक्स जीवाणु से बचाता है गिद्द
पक्षी विशेषज्ञ डॉ. अंशु शर्मा ने बताया कि गिद्दोें को प्राकृतिक सफाईकर्मी कहा जाता है। इनके पेट में शक्तिशाली एसिड होता है, जो हड्डियों के साथ हैजे और ऐंथ्रैक्स जैसे जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। ये जीवाणु इंसानों समेत कई प्रजातियों के लिए जानलेवा होता है। एक गिद्ध सालभर में करीब 120 किलो मांस खा सकता है। उनके झुंड को मृत जानवर के एक शव को निपटाने में महज 15 से 20 मिनट लगते हैं। उनका पाचन तंत्र मांस को पचाकर अच्छी खाद बनाता है, यानी वे मिट्टी में पोषक तत्व भी छोड़ते हैं।
बीमारियां फैलने से रोकता है वल्चर
पक्षी प्रेमी शेख जुनैद ने बताया कि गेपरनाथ में वल्चर्स के घौंसलों में अंडे नजर आए हैं, जिनमें से एक माह बाद चुजे निकल आएंगे। यह पक्षी ईको सिस्टम का महत्वपूर्ण अंग है। इसका शरीर 60 से 70 सेंमी व दो किलो वजनी होता है। यह मृत जानवरों के शव को खाकर प्रकृति की सफाई करता है। जानवरोें के शवों से निकलने वाले बैक्टेरिया कई तरह की बीमारियों का कारण बनते हैं। ऐसे में मृत शरीर खाकर कई तरह की बीमारियां फैलने से रोकते हैं।
दो सौ से ज्यादा पक्षियों का गूंजता कलरव
पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, मुकुन्दरा हिल्स में पक्षी की दौ सौ से ज्यादा प्रजातियां है। इनमें क्रेसअेड सरपेंट, ईगल, शॉर्ट टोड,पैराडाइज फ्लाई केचर, सारस क्रेन, स्टोक बिल किंग फिशर, कलर्ड स्कोप्स आउलग्रीन पीजन, गोल्एन ओरिओल, बैबलर, गागरोनी तोता, टुईंया तोता, एलेक जेन्डेरियन पैराकीट, रूडी शेल्डक, वाइट पैलिकन, ग्रेट फलेमिंगो, नोर्दन शावलर, नोर्दन पिंटटेल, बार एडेड गूज, ग्रेलेक गूज, गारगेनी टील समेत कई प्रजातियों के पक्षियों का कलरव गूंजता है। मुकुंदरा, जैव विविधता से भरपूर होने के साथ बायोडायवरसिटी पक्षियों के अनुकूल है।
Comment List