आखिर कब थमेगी रूस और यूक्रेन की जंग

आखिर कब थमेगी रूस और यूक्रेन की जंग

शनिवार को रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को पूरे दो साल हो गए हैं। लेकिन जंग है कि थमने का नाम नहीं ले रही। अभी तक न रूस युद्ध रोकने को तैयार है और ना ही यूक्रेन हार मानने को।

शनिवार को रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को पूरे दो साल हो गए हैं। लेकिन जंग है कि थमने का नाम नहीं ले रही। अभी तक न रूस युद्ध रोकने को तैयार है और ना ही यूक्रेन हार मानने को। यूक्रेन की राजधानी कीव में पश्चिम के कई दिग्गज नेता उसका हौसला बढ़ाने जा पहुंचे। तो उधर, रूस ने रक्षा मंत्री अपने वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ जंग में आगे की रणनीति बनाने में व्यस्त नजर आए। ऐसे हालात में युद्ध समाप्ति की फिलहाल कोई संभावना दूर तक दिखाई नहीं दे रही। उधर, अमेरिकी राष्टÑपति जो बाइडन ने रूसी राष्टÑपति व्लादिमीर पुतिन को फिर आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वे जंग शुरू करके पहले गलती पर थे और आज भी उसे दोहरा  रहे हैं। अमेरिका ने लगे हाथ इस मौके पर रूस की पांच सौ अधिक कंपनियों पर और नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। शुद्ध ग्रस्त यूक्रेन को सैन्य एवं आर्थिक सहायता जुटाने और उसके समर्थन में यूरोपीय संघ की अध्यक्ष ऊर्सला वॉन डेर लियेन, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मैलोनी और  बेल्जियम के प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर डी क्रो राजधानी कीव पहुंचे। बोले-जंग में रूस की ओर से हथियाए गए यूक्रेनी इलाकों को जब तक फिर से हासिल नहीं कर लिया जाता, यह जंग जारी रहेगी। यहां बता दें कि इस जंग में अब तक दोनों पक्ष की ओर से पांच लाख सैनिकों के मरने का अनुमान है। करीब चालीस लाख लोगों को विस्थापित होकर पड़ोसी देशों में शरण लेनी  पड़ी है। अनुमान है कि इस जंग में 70 हजार यूक्रेनी सैनिक और दस हजार नागरिक मारे गए। रूस ने यूक्रेन के अठारह फीसदी भू-भाग पर कब्जा कर लिया है। इनमें प्रमुख डोनेस्क, लोहांसक, मारियोपोल जैसे छह शहर शामिल हैं। 

युद्ध के तीसरे साल में प्रवेश होने के साथ यूक्रेन को भारी ध्वंस के साथ कई तरह की दिक्कतों और आर्थिक संकटों से भी जूझना पड़ रहा है। हालांकि रूस भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। पश्चिम की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों से शुरुआत में उसे कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा है, लेकिन अब उसके आर्थिक हालात में काबू में हैं। 24 फरवरी 2022 को आरंभ हुए इस युद्ध में रूस को उम्मीद थी कि वह यूक्रेन को आसानी से हरा देगा। लेकिन यूक्रेन वासियों और सेना की ओर से मिले कड़े मुकाबले के कारण, उसे वांछित कामयाबी नहीं मिल सकी। उसकी यह सोच रही होगी कि युद्ध के जरिए वह यूक्रेन को काबू कर मौजूदा जेलेंस्की सरकार का तख्ता पलटकर अपनी समर्थक सरकार बना लेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हालांकि उसने यूक्रेन के कुछ पूर्वी इलाके को जरूर जीत लिया है।

यूक्रेन के मुकाबले में बने रहने के पीछे, अमेरिकी नेतृत्व में पश्चिमी यूरोपीय देशों की ओर से मिली आर्थिक और सैन्य साजोसामान की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। यूरोपीय देष भी द्वितीय विश्वयुद्ध (वर्ष 1945) के बाद इस बड़ी जंग की चपेट में आए बिना नहीं रहे। उन्हें ऊर्जा आपूर्ति, महंगाई की समस्याओं से जूझना पड़ा है। सिर्फ यूरोपीय देश ही नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा और खाद्य आपूर्ति व्यवस्था लड़खड़ा गई। इससे पूरी दुनिया को आर्थिक संकट के साथ अनेक समस्याओं से आज तक जूझना पड़ रहा है। सामरिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से पूरा विश्व दो खेमों में बंटा नजर आया। वैश्विक कूटनीति में भी तेजी के साथ बदलाव आया। बहुध्रुवीय संबंधों, ग्लोबल साउथ की नई अवधारणा पनपी है। यदि इस जंग के मूल में जाएं तो जानकारी मिलती है कि वर्ष 1991 में रूसी सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में तेजी से बदलाव आया। जर्मनी का एकीकरण हुआ। यूरोपीय संघ की नींव पड़ी। रूस को अंदाज था कि नाटो का भी अब विस्तार नहीं होगा। लेकिन हुआ उलटा। आज इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 33 तक जा पहुंची। यूक्रेन की सीमाएं चूंकि रूस से मिलती है। उसकी समर्थित सरकार के पतन के बाद यूक्रेन में नई विचारधारा वाली जेलेंस्की सरकार गठित हुई। उसका पश्चिमी रूख (यूरोपीय संघ और नाटो में शामिल होने के प्रयास) से रूस को खतरे का आभास हुआ। रूस चूंकि संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है। उसे वीटो का अधिकार भी है। यह परिषद विश्व में शांति और सुरक्षा कायम करने के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसे में किसी स्थायी सदस्य की ओर से युद्ध की शुरुआत करना, इसे सही कदम नहीं माना जा सकता है। ऐसे में रूस की ओर से विश्व शांति भंग करने वाला कदम उठाना, आश्चर्यजनक है। नाटो और यूरोपीय संघ के सदस्य देश, बेशक रूस से वापस अपनी सीमा में लौट जाने की सार्वजनिक मांग कर रहे हैं। यूक्रेन को रूस से हो रही जंग में मदद कर रहे हैं। लेकिन अब अमेरिका की भी स्थिति पहले जैसी नहीं रही है। यूक्रेन को उसकी ओर से दी जा रही मदद के विरोध में भी तो वहां स्वर उठ रहे हैं। 



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