जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

धमकी तो धमकी होती है, कोई असरदार होती है, तो कोई बेअसरदार।

असर धमकी का
धमकी तो धमकी होती है, कोई असरदार होती है, तो कोई बेअसरदार। अब देखो ना, सूबे में भगवा वाले प्रभारी ने गोरखपुरी अंदाज में जो कुछ धमकी दी, उसका असर राज पर पड़े या नहीं पड़े लेकिन राज की कुर्सी का सपना देखने वालों का माथा जरूर खराब कर गया। उन्होंने कई वैद्यों को अपनी नब्ज भी दिखाई, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अब भाई लोगों को कौन समझाए कि सातवें दशक की ओर कदम बढ़ा रहे राधा और मोहन के दास ने वो ही बोला है, जो उनको दिल्ली वालों ने रटाया है। अब उनकी धमकी का असर किस पाले पर दिखेगा, वो तो समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

चर्चा में पॉलिटिक्स
सूबे में इन दिनों पॉलिटिक्स की चर्चा जोरों पर है। पॉलिटिक्स भी ऐसी कि जिसके फेर में फंस जाए उसको खुद को भी समझ में नहीं आ रहा। हाथ वाले भाई लोगों के बजाय राज करने वाली भगवा पार्टी में अंदरखाने पॉलिटिक्स कुछ ज्यादा ही है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि गुजरे जमाने में एक-दूसरे की शक्ल तक नहीं देखने वाले उप चुनावों की आड़ में अटारी वाले पंडितजी को फेल करने के लिए अब गुप्त बैठकें करने में व्यस्त हैं। और तो और पॉलिटिक्स के फेर में फंसे राज के एक रत्न खुद हैसियत भूल चुके हैं। आवेश में आकर कुर्सी छोड़ने का ऐलान कर चुके मीनेश वंशज डॉक्टर साहब के पास भी पछतावे के सिवाय कुछ नहीं है। अब भाई लोगों को कौन समझाए कि ये पॉलिटिक्स है, इसमें जो होता है, वो दिखता नहीं है, और जो दिखता है, वो होता नहींं है।

नजरिया अपना-अपना
हर आदमी का देखने का नजरिया अलग-अलग होता है। अगर किसी की भैंगी नजरें हो तो वह तिरछी नजर से देखता है, तो कोई गंदी नजर से देखकर आहें भरता है। कोई अपने बचाव के लिए बंद नजरों से देखता है। अब देखो ना हमारे खाकी वाले साहब लोगों की नजरें ऐसी भैंगी है कि उनको छोरा और छोरी में कोई फर्क ही नजर नहीं आता है। पिछले दिनों छोरियों पर लाठियां भांजने के बाद खाकी वाले साहब का नजरिया भी सामने आ गया। ऊपर वालों ने पूछताछ की तो साहब ने भी बिना सोचे समझे रटा रटाया जवाब दे दिया कि पेंट और बुशर्ट में पहचानने में नहीं आते हैं कि यह छोरा है या छोरी।

बुझे कारतूसों पर भरोसा नहीं
इन दिनों भगवा वाले बड़े नेताओं की कार्य शैली को लेकर वर्किंग कमेटी के पांच दर्जन लोगों का दिन का चैन और रातों की नींद उड़ी हुई है। उनके साढ़े साती लगी हुई है, जब से सुमेरपुर वाले राठौड़ साहब ने कुर्सी संभाली है, तभी से भाई लोग एपीओ हैं।  पिछले साढ़े पांच सालों में कइयों का वजन घट गया और चेहरों पर झुर्रियां तक साफ दिखाई देने लगी हैं। बिना काम-धाम के हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मीडिया वाले भी उनकी पीड़ा को समझकर भी अंजान बने हुए हैं, सो ठिकाने के बाहर मामा की दुकान पर सिगरेट का कश लगाते हुए एक-दूसरे की पीड़ा बखान कर अपना टाइम पास करते हैं। अब देखो ना सिस्टम तो पुरानी टीम के लोगों के हाथों में है, मगर कप्तान उन बुझे कारतूसों पर भरोसा नहीं करते। इसलिए तो सूबे की छह सीटों के उप चुनावों में युवा मोर्चा वालों को ही एक-एक क्षेत्र सौंपने के मूड में है। 

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सेर को सवा सेर
कभी सेर को सवा सेर मिल जाता है, तो उसके सारे तेवर ही बदले-बदले से नजर आने लगते हैं। अब देखा ना खुद को किसान पुत्र का दावा करने वाले राज का काज करने वाले एक साहब पर असली धरती पुत्र के व्यंग्य बाण इतने भारी पड़े कि बगलें झांकने के सिवाय उनको कोई चारा ही दिखा। खेती बाड़ी महकमे को संभालने वाले साहब को जब पता चला कि किसान भी ऐरी गैरी जगह का नहीं बल्कि चौमूं का है, तो और भी चिंता में डूब गए। दांई बगल में बैठे दूसरे छोटे साहब ने मामले को संभालने की कोशिश भी की, मगर किसान पुत्र के आगे पार नहीं पड़ी। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि पिछले दिनों बीजों को लेकर बुलाई मीटिंग में चौमूं से आए एक किसान ने निगम की पोल खोली तो साहब भी समझ नहीं पाए कि आखिर माजरा क्या है। जब उनको बताया गया कि कमीशन के खेल में इस बार बाजरे के बीज में सिट्टा ही नहीं निकला, तब जाकर सांस में सांस आया।
   

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-एल एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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