जाने राज काज में क्या हैं खास

नजरें गुजराती बंधु पर टिकीं

जाने राज काज में क्या हैं खास

दूत की चिट्ठी पर दिल्ली में बने इस रिपोर्ट कार्ड के फार्मूले को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है। 

रेडी टू डिलिमिटेशन 
आज हम बात करेंगे, रेडी टू डिलिमिटेशन की। अब देखो न, इलेक्शन कमीशन तो पता नहीं अपना काम कब स्टार्ट करेगा, मगर हमारे भारती भवन के भाई लोग हैं कि फितरत के मुताबिक अभी से ही काम में जुट गए हैं। इसके लिए दिन-रात चर्चा, चिंतन और मीटिंग्स होने लग गई है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि भारती भवन वाले बड़े भाई ने गंगा-जमुनी तहजीब के साथ जिला स्तर के भाई साहबों को काम पर लगा दिया है, ताकि 2028 में फिर फतह करने में ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़े। भाई साहबों ने भी अपने हिसाब से डिलिमिटेशन के लिए जोड़-बाकी और गुणा-भाग करने में कोई कंजूसी नहीं बरतने की कसमें खाई हैं।  

नवरत्नों की बढ़ी धड़कनें
इन दिनों राज के कुछ नवरत्नों की अचानक धड़कनें तेज हो गई हैं। धड़कनें बढ़ने की वजह बीपी नहीं, बल्कि अटारी वाले भाई का दिल्ली दौरा है। उनकी धड़कनों का बढ़ना भी लाजिमी है, चूंकि पुरवाई चलने के बीच मलमास के बाद कैबिनेट रिसफलिंग के साथ ही संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट जो चल रही है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर चर्चा है कि उन रत्नों की हालत ज्यादा खराब है, जिनके 365 दिन के रिपोर्ट कार्ड में थर्ड डिवीजन या सप्लीमेंटरी के मार्क्स हैं। दूत की चिट्ठी पर दिल्ली में बने इस रिपोर्ट कार्ड के फार्मूले को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है। 

नजरें गुजराती बंधु पर टिकीं
नजरें भी हर किसी पर नहीं टिकती हैं और जब टिकती हैं, तो बहुत देर तक पलकें भी नहीं झपकतीं। इन दिनों सूबे के भगवा वाले भाई लोगों की नजरें भी एक गुजराती बंधु पर टिकी हैं। गुजराती बंधु और कोई नहीं बल्कि वृषभ वाले भाई साहब है, जो पड़ोसी सूबे के राज की कुर्सी संभाल चुके हैं और अब मरु प्रदेश के इंचार्ज हैं। गले की फांस बने संगठन के इलेक्शन के बीच भाई साहबों को उनसे काफी उम्मीद है। ठिकाने पर खुसरफुसर है कि बंद लिफाफों का तोड़ और कोई नहीं सिर्फ 68 बसंत देख चुके राजकोट की माटी के लाल ही हैं। इस खुसरफुसर के बाद हर किसी भाई की नजरें गुजराती भाई साहब पर टिकी हैं।

मंत्रियों का क्षेत्र मोह
सूबे के राज के आधा दर्जन मंत्रियों का एक साल बाद भी क्षेत्र का मोह नहीं छूटा है। क्षेत्र मोह ने उनकी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा रखा है। किसी न किसी बहाने क्षेत्र में शक्ल दिखाने पहुंच जाते हैं। भाई साहबों के क्षेत्र की दूरियां कई बार उनके कमर में दर्द कर देती हैं। सबसे बुजुर्ग भाई साहब के मोह के बीच उम्र भी बाधक नहीं है। इन मंत्रियों का सरकारी काज निपटाने वाले कारिन्दे भी उनके इस मोह से परेशान हैं। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा कि आखिर कौन सा कारण है कि सचिवालय से इतनी दूरियां बनी हुई हैं। अब राज का काज करने वालों को कौन समझाए कि अगली पीढ़ी के रोजगार के लिए क्षेत्र में हाजिरी लगाए बिना पार पाना बड़ा मुश्किल है।

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अब लड़ाई पतंग-डोर की
राजनीति में कई तरह के दांवपेच होते हैं। सूबे के कई नेता इसमें महारत हासिल किए हुए हैं। कुछ दिनों पहले हाथ वाले गोविन्दजी जी ने अब गांवों की सरकार के चुनावों में हाथ वालों की पतंग काटने का ऐलान किया था। लेकिन अटारी वाले भाई साहब तो एक कदम आगे निकले और मैसेज दे डाला कि जिनके हाथों में डोर ही नहीं है, वे भला पतंग कैसे काटेंगे। पतंग और डोर दोनों कमल वालों के ही हाथों में है।

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एक जुमला यह भी
राज का काज करने वाले कई भाइयों को एक फरवरी का बेसब्री से इंतजार है। उस एक को कईयों को ठाठ की उम्मीद है। पिछले दिनों पदोन्नति पा चुके कई लोगों को मलाईदार कुर्सियां दिखाई देने लगी हैं। इसके लिए जुगाड़ भी बिठाने की पूरी तैयारी कर ली है।

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एल.एल. शर्मा

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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