सीएए को संयुक्त राष्ट्र-अमेरिका ने भेदभावपूर्ण बताकर किया विरोध

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का अनुपालन करते हैं

सीएए को संयुक्त राष्ट्र-अमेरिका ने भेदभावपूर्ण बताकर किया विरोध

आगे कहा कि कार्यालय अध्ययन कर रहा है कि क्या कानून को लागू करने वाले नियम अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का अनुपालन करते हैं।

वाशिंगटन। भारत में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) 2019 को लागू किए जाने पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने चिंता जताई है।  संयुक्त राष्ट्र ने कानून को मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण बताया जबकि अमेरिका ने कहा है कि वह इसकी देखरेख कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त कार्यालय के प्रवक्ता ने रायटर्स से बताया कि जैसा कि हमने 2019 में कहा था, हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सीएए अपने मूल रूप में भेदभावपूर्ण है और भारत के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन है। उन्होंने आगे कहा कि कार्यालय अध्ययन कर रहा है कि क्या कानून को लागू करने वाले नियम अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का अनुपालन करते हैं।

अमेरिकी सरकार ने क्या कहा
अधिसूचना जारी होने के बाद अमेरिकी सरकार ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि हम 11 मार्च को सीएए के बारे में जारी अधिसूचना को लेकर चिंतित हैं। हम गहनता से इस बात पर नजर बनाए हुए हैं कि अधिनियम को कैसे लागू किया जाएगा। प्रवक्ता ने आगे कहा कि धार्मिक आजादी को सम्मान और सभी समुदायों के लिए कानून के तहत समान व्यवहार मूलभूत लोकतांत्रित सिद्धांत हैं। मोदी सरकार ने साल 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम को भारतीय संसद में पेश किया था, जिसे दोनों सदनों ने पारित किया था। कानून पारित होने के बाद इसे लेकर कई जगहों पर प्रदर्शन भी हुए थे। बीती 11 मार्च को केंद्र सरकार ने इस कानून को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी है। कानून के तहत पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू और सिखों भारत की नागरिकता दी जा सकेगी।

मानवाधिकार समूहों ने की आलोचना
मोदी सरकार के द्वारा लाए गए सीएए कानून की मानवाधिकार कार्यकतार्ओं और संस्थाओं ने आलोचना की है। ह्यूमन राइट वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करने वाला बताया है। मानवाधिकार समूहों का कहना है कि नागरिकता का ये कानून इन पड़ोसी देशों के शिया मुसलमानों जैसे मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों को बाहर कर देता है। साथ ही म्यांमार जैसे पड़ोसी देश भी बाहर हैं, जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं। वहीं, वाशिंगटन में भारतीय दूतावास ने अमेरिकी विदेश विभाग और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की प्रतिक्रियाओं पर टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया। भारत सरकार इस कानून को मुस्लिम विरोधी होने से इनकार करती है और कहती है कि पड़ोसी मुस्लिम-बहुल देशों में उत्पीड़न का सामना कर रहे अल्पसंख्यकों की मदद के लिए इसकी आवश्यकता थी। उसने पहले के विरोध प्रदर्शनों को राजनीति से प्रेरित बताया है।

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