अमेरिका: चुनावी अखाड़े में फिर दो बुजुर्ग

अमेरिका: चुनावी अखाड़े में फिर दो बुजुर्ग

आगामी 5 नवंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका में 60वां राष्ट्रपति-2024 चुनाव होने जा रहा है। इस चतुवर्षीय चुनाव पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं।

आगामी 5 नवंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका में 60वां राष्ट्रपति-2024 चुनाव होने जा रहा है। इस चतुवर्षीय चुनाव पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। सुपर ट्यूजडे के नतीजों के बाद लगभग यह तस्वीर साफ  हो गई है कि चुनावी मुकाबला अब पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच होने जा रहा है। यानि डेमोक्रेट पार्टी की ओर से राष्ट्रपति जो बाइडन और रिपब्लिकन पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बीच। वर्ष 1965 के बाद अमेरिका के इतिहास में यह दूसरा ऐसा अवसर होगा जब दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच फिर से मुकाबला होने जा रहा है। बाइडन 81 वर्ष के हैं, तो ट्रंप 77 वर्ष के। यह भी रोचक तथ्य है कि बाइडन का नाम देश के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति के रूप में दर्ज है। उम्र को लेकर जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि इससे क्या फर्क पड़ता है? युवा हो या वयोवृद्ध, समस्याओं से दोनों को समान रूप से ही जूझना पड़ता है।

सुपर ट्यूजडे के नतीजों में इन दोनों प्रतिद्वंद्वियों ने राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनने के लिए, अपने-अपने राजनीतिक दलों के प्राइमरी दौर के चुनावों में प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त बनाई। जहां तक सवाल है रिपब्लिकन पार्टी में डोनाल्ड ट्रंप का रास्ता तब साफ हुआ जब दूसरे रोज भारतवंशी अमेरिकी निक्की हैली ने प्रतिस्पर्धा से बाहर होने की घोषणा की। दिलचस्प पहलू यह भी है कि आम अमेरिकी इन वयोवृद्धों के बीच होने वाले मुकाबले को लेकर ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रहा है। इसका अहसास प्राइमरी चुनाव दौरान भी नजर आया। बता दें कि फरवरी माह में हुए एक सर्वे में शामिल दो-तिहाई नागरिकों का कहना था कि बाइडन की उम्र सरकार में काम करने की नहीं रह गई है। ट्रंप के बारे में भी करीब आधे लोगों ने यही बात दोहराई।  लेकिन इन दिनों देश में रॉबर्ट कैनेडी जूनियर के तीसरे स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरने की भी चर्चाएं काफी गरमा रही हैं। ऐसे में उदासीन मतदाताओं का रुख उनकी ओर मुड़ सकता है। जो दोनों प्रमुख दलों के बुजुर्ग प्रत्याशियों के लिए एकबारगी सिरदर्द साबित हो सकता है।  इसके पीछे एक मुख्य वजह यह बताई जा रही है कि मतदाता दोनों प्रमुख दल के प्रत्याशियों की कार्यशैली और दलों की पारंपरिक नीतियों से भली भांति परिचित हैं।     

सुपर ट्यूजडे के नतीजों के बाद अब दोनों प्रमुख दल चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं। जहां तक सवाल है घरेलू राजनीति को चुनावी मुद्दा बनाने का, तो इस मोर्चे पर बाइडन के खिलाफ  कहने को कुछ नहीं है। लेकिन यह भी माना जा रहा है कि वर्ष 2020 दौरान देश में कोरोना महामारी दौरान चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं एवं प्रभावित हुए आर्थिक हालात और नस्लभेदी दंगों से बने माहौल ने बाइडन की जीत को आसान बनाया था। लेकिन इस बार घरेलू मोर्चे पर ऐसे हालात नहीं है। इसकी वजह से मुकाबला कड़ा हो सकता है। हां, विदेश नीति को लेकर बाइडन कई सवालों के घेरे में आ सकते हैं। फिलहाल लगता है कि बाइडन देश में लोकतंत्र के मुद्दे को अपने चुनावी अभियान का आधार बना सकते हैं। इसकी साफ  झलक, हाल ही उन्होंने अपने अंतिम स्टेट आॅफ  यूनियन संबोधन के दौरान ट्रंप का नाम लिए बगैर धावा बोला कि वे देश में ही नहीं, वैश्विक लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए भी खतरा हैं। क्या आपको पता है ट्रंप आज अपने मॉर-ए-लागो निवास में किससे मिले? हंगरी के ओर्बन से। साफ है उन्हें नहीं लग रहा है लोकतंत्र कार्य कर रहा है। बाइडन यह खुला आरोप भी लगा रहे हैं कि ट्रंप लोकतंत्र को धमकी देते हैं। रूस के सामने झुकते हैं। मैक्सिको के सीमा पर प्रतिबंधों को कड़ा करने वाले विधेयक को रोकते हैं। इस पर पलट वार करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने बाइडन के बयान को भयानक बताया और कहा कि वे गुस्से में हैं और मानसिक रूप से परेशान हैं। जॉर्जिया में आयोजित अपनी-अपनी जनसभाओं को संबोधित करते हुए दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों ने एक दूसरे को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। इसके बावजूद ट्रंप पर लगे गंभीर आरोप भी खास मुद्दा बन सकते हैं। इन आरोपों पर अदालत का फैसला कब आएगा इसे लेकर भी आम चर्चा है। यदि चुनाव से पहले उनके खिलाफ  फैसला आया तो फिर क्या होगा? इस पर भी सबकी नजरें टिकी हुई हैं। जहां तक सवाल है देश की आर्थिक स्थिति का तो इसमें काफी सुधार आया है। यह पक्ष बाइडन की स्थिति को मजबूत करता है। इसके बावजूद उनकी नीतियों का ट्रंप खुलकर विरोध कर रहे हैं। साथ ही  अपने पक्ष में माहौल बनाने में काफी हद तक कामयाब भी हो रहे हैं। लेकिन विदेश नीति का सवाल उठता है तो बाइडन प्रशासन का अफगानिस्तान से सेना की वापसी, ईरान से तनाव,  यूक्रेन-रूस और हमास-इस्राइल युद्ध को लेकर अपनाई गई नीति को लेकर ट्रंप बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं।

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