ऊर्जा संयंत्रों ने रोकी शर्मीले गोडावण की उड़ान

ताजा जानकारी के अनुसार राज्य पक्षी गोडावण विश्व के दुर्लभतम पक्षियों में से एक है जो कि लुप्त होने के कगार पर है।

ऊर्जा संयंत्रों ने रोकी शर्मीले गोडावण की उड़ान

भारत सरकार के वन्यजीव निवास के समन्वित विकास के तहत किए जा रहे प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम के अंतर्गत चयनित 17 प्रजातियों में गोडावण भी सम्मिलित है।

राजस्थान के शुष्कघासीय और मरुस्थलीय जिलों में पाया जाने वाला शर्मीला पक्षी गोडावण सरकारी स्तर पर राज्य पक्षी घोषित होने के बावजूद संकट में है। राजस्थान के पश्चिमी जिलों में विभिन्न कम्पनियों द्वारा लगाए गए पवन और सौर ऊर्जा संयंत्र उड़ने वाले पक्षियों में विश्व में सबसे भारी इस पक्षी की स्वैच्छिक उड़ान में सबसे अधिक बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। पहले यह पक्षी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, ओडिशा आदि कुछ राज्यों के घास के मैदानों में व्यापक रूप से पाया जाता था किंतु अब यह पक्षी बहुत कम जनसंख्या के साथ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और संभवत: मध्यप्रदेश राज्यों में ही पाया जाता है। आईयूसीएन की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली लाल डाटा पुस्तिका में इसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 में रखा गया है। इस विशाल पक्षी को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट का विज्ञापन मेरी उड़ान न रोकें जैसे मार्मिक वाक्यांश से किया गया है। भारत सरकार के वन्यजीव निवास के समन्वित विकास के तहत किए जा रहे प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम के अंतर्गत चयनित 17 प्रजातियों में गोडावण भी सम्मिलित है।
राजस्थान में यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह पक्षी सोन चिरैया, सोहन चिडिया तथा शर्मिला पक्षी के उपनामों से भी प्रसिद्ध है। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इसकी बहुत ही कम संख्या बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। राजस्थान में अवस्थित राष्टूीय मरु उद्यान में गोडावण की घटती संख्या को बढ़ाने के लिए आगामी प्रजनन काल में सुरक्षा के समुचित प्रबंध किए गए हैं। राष्ट्रीय मरु उद्यान (डेजर्ट नेशनल पार्क) 3162 वर्ग कि.मी. में फैले इस पार्क में बाड़मेर जिले के 20 ग्राम पंचायतों में 59 ग्राम और जैसलमेर के 12 ग्राम पंचायतों में 39 ग्राम पूर्ण व आंशिक रूप से सम्मिलित है। उक्त गांवों की कुल जनसंख्या (वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार) 71710 व पशुधन की संख्या लगभग 448000 है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य है। इसकी स्थापना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अर्न्तगत वर्ष 1980.81 में की गई थी। राजस्थान में सर्वाधिक संख्या में गोडावण पक्षी इसी उद्यान में पाए जाते हैं। इसलिए इस अभयारण्य क्षेत्र को गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है।
गोडावण वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 के शिड्यूल-1 का प्राणी है। गोडावण पक्षी प्राकृतिक रूप से धीमी गति के प्रजनन करने वाले पक्षी है जो कि अमूमन साल में मात्र एक अंडा देते हैं। और ये अकाल के समय अंडा नहीं देते हैं। यह पक्षी बिना घोंसला बनाए जमीन पर खुले में अंडा देता है। जिस कारण अंडे को परभक्षियों से अधिक खतरा रहता है। इसके अतिरिक्त हाईटेंशन लाइन से टकराकर मृत्यु होना गोडावण की संख्या कम होने का एक प्रमुख कारण बन कर उभर रहा है। ऐसे में इस पक्षी को बचाने की सख्त जरूरत है। साथ ही सोलर प्लांट लगाने वाली कंपनियों को पाबंद किया जाए कि वे अपने प्लांट परिसर में वन्यजीवों को बचाने के लिए उपाय करें। एक समय थाए जब राजस्थान की पहचान वन क्षेत्र में गोडावण से होती थी लेकिन आज प्रदेश के अधिकांश जिलों में गोडावण की संख्या शून्य हो गई है। अब थोड़े बहुत गोडावण पक्षी बाड़मेरए जैसलमेर के मरुस्थलीय क्षेत्रों में रह रहे हैं। यहां भी सोलर प्लांट और पवन चक्कियों के पंखों की वजह से गोडावण की संख्या लगातार घट रही है।
अभयारण्य में वनस्पतिक विविधता में कुल 245 प्रजाति के पेड़ पौधे, झाड़ी व विविध प्रजातियों की घास शामिल हैं। यहां पर मूलरूप से झरवेरी, खेजड़ी, जाल, केर, बड़बेर, आक, फोग, खींप तथा घास में सेवण व धामन मुख्य रूप से मौजूद हैं। वन्यजीवों में भी रेगिस्तानी प्रजातियों के वन्यप्राणी व पक्षी बहुतायत में पाए जाते हैं। यहां कुल 32 प्रजाति के स्तनधारी जीव, 40 प्रजाति के सरीसृप व 100 से अधिक प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं। मुख्य रूप से चिंकारा, रेगिस्तानी लोमड़ी, सामान्य लोमड़ी, रेगिस्तानी  बिल्ली, लिजार्ड, सांडा, वाइपर सांप, करैत सांप आदि के अलावा पक्षियों में दुर्लभ प्रजाति का पक्षी गोडावण व तिलोर के अतिरिक्त लुप्तप्राय पक्षी जैसे गिद्ध व बाज भी पाए जाते हैं।
रेगिस्तान के विपरीत माहौल में भी रहने वाले वन्य जीवों के बारे में वैसे तो समय-समय पर विभाग द्वारा विस्तृत जानकारी ली जाती है। प्रदेश के वन्य जीव प्रेमियों द्वारा भी कई बार केंद्र व राज्य सरकार को ज्ञापन देकर राज्य पक्षी गोडावण बचाने की अपील भी की गई। स्थानीय लोगों ने बताया कि गोडावण को राज्य सरकार ने राज्य पक्षी घोषित कर रखा है लेकिन उसको बचाने और संरक्षण के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। जैसलमेर, बाड़मेर के मरुस्थलीय इलाकों में बड़ी-बड़ी कंपनियों को सोलर पार्क विकसित करने के लिए रियायती दरों पर भूमि दी जा रही है। इन सोलर प्लांटों की वजह से आए दिन गोडावण दुर्लभ पक्षियों की मृत्यु हो रही है। चूंकि गोडावण अन्य पक्षियों के मुकाबले में आकार में बड़ा होता है इसलिए बिजली के करंट की चपेट में जल्दी आता है। बड़ी कंपनियां लगातार सोलर प्लांट लगा रही हैं लेकिन वन्य पक्षियों के बचाव के लिए कोई उपाय नहीं कर रही है।  ताजा जानकारी के अनुसार राज्य पक्षी गोडावण विश्व के दुर्लभतम पक्षियों में से एक है जो कि लुप्त होने के कगार पर है। भारत में इसकी बची हुई आबादी लगभग 150 पक्षियों में से अधिकतम राजस्थान के थार क्षेत्र में स्थित राष्ट्रीय मरु उद्यान एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में पाए जाते हैं। डेजर्ट नेशनल पार्क और अन्य महत्वपूर्ण गोडावण निवास क्षेत्रों में गोडावण की वैज्ञानिक जनगणना वर्ष 2017 में कि गई थी। और गोडावण की जनसंख्या 128 पाई गई थी। 
-प्रकाश चंद्र शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार है)

 

 

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