एक ऐसा निर्देश जोे बन गया ‘पत्थर की लकीर’

दुकानों का किराया बढ़ाया न पुराना वसूला जा रहा , निर्देश के चलते निगम को हो रहा लाखों का प्रतिवर्ष नुकसान , तत्कालीन आयुक्त के आदेश में अभी तक संशोधन नहीं कर सके निगम अधिकारी

एक ऐसा निर्देश जोे बन गया ‘पत्थर की लकीर’

सरकारी कामों में कागज कैसा खेल करता है इसकी बानगी है 6 साल पहले नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त का एक निर्देश।

कोटा। सरकारी कामों में कागज कैसा खेल करता है इसकी बानगी है 6 साल पहले नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त का एक निर्देश। इस निर्देश की आड़ में निगम 800 दुकानों से छह वर्ष से किराया ही नहीं ले रहा है। इतना ही नहीं इस निर्देश को जैसे पत्थर की लकीर मान लिया गया है। ना कोई इसे परिवर्तित कर रहा है और ना ही इस मामले की समीक्षा कर रहा है। जबकि इस आदेश के चलते निगम को लाखों रुपए का नुकसान प्रतिवर्ष उठाना पड़ रहा है। अब छह वर्ष का किराया निगम एक साथ मांगता भी है तो उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। नगर निगम की कोटा शहर में करीब 800 से अधिक दुकानें व जगह ऐसी हैं, जिन्हें निगम ने किराए पर दिया हुआ है। लेकिन पिछले 6 साल  (वर्ष 2016) से  नगर निगम किराएदार दुकानदारों से किराया तक वसूल नहीं कर पा रहा है। इसका कारण तत्कालीन निगम आयुक्त एन.नकाते द्वारा एक आदेश जारी करना है। जिसमें उन्होंने कहा था कि किराएदार काफी पुराने हैं और दुकानों का किराया बहुत कम है। उस किराए को रिव्यू कर उसे बढ़ाया जाए। जब तक किराया नहीं बढ़ाया जाता है तब तक पुराना किराया भी वसूल नहीं किया जाए। तत्कालीेन आयुक्त  द्वारा यह आदेश जारी किए हुए 6 साल का समय हो चुका है। इस दौरान कई आयुक्त व अधिकारी निगम में आ चुके हैं। लेकिन अभी तक उस आदेश को संशोधित तक नहीं कर सके हैं।

5 रुपए से 100 रुपए तक किराया
नगर निगम सूत्रों के अनुसार नगर निगम की दुकानें काफी पुरानी हैं। इस कारण से उनका किराया भी बहुत कम है। किसी दुकान का किराया 5 रुपए है तो किसी का 7 रुपए, किसी का 10 तो किसी का 25 रुपए है। न्यूनतम 5 रुपए मासिक से लेकर अधिकतम मात्र 100 रुपए ही किराया है। नगर निगम वह किराया भी नहीं वसूल कर पा रहा है।

1982 के बाद से नहीं दी किराए पर
शहर के हर क्षेत्र में नगर निगम की दुकानें हैं। नयापुरा खाई रोड, बस स्टैंड, लाड़पुरा, रामपुरा, पाटनपोल व नए कोटा क्षेत्र में भी दुकानें हैं। नगर निगम सूत्रों के अनुसार वर्ष 1965 से लेकर 1982 तक तो नगर निगम ने दुकानें किराए पर दी। लेकिन उसके बाद कोर्ट की रोक के चलते निगम ने दुकानें किराए पर देना बंद कर दिया। इस कारण से निगम की जो भी दुकानें  किराएदारी पर हैं वे 1982 से पहले की हैं। इस कारण से उनका किराया भी बहुत कम है।

दो निगम बनने से हुआ दुकानों का बंटवारा
कोटा में पहले एक ही नगर निगम था। लेकिन कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण निगम बनने के साथ ही दुकानों का भी बंटवारा हो गया है। निगम सूत्रों के अनुसार कोटा दक्षिण का क्षेत्र नया बसा होने से वहां निगम की दुकानें गिनती की हैं। कोटा दक्षिण में निगम की 100 से भी कम दुकानें हैं जबकि सर्वाधिक 700 से अधिक दुकानें कोटा उत्तर नगर निगम क्षेत्र में हैं।

दुकानों से किराए का हर साल बजट तय
नगर निगम को पिछले करीब 6 साल से दुकानों के किराए से एक रुपए भी आय नहीं हो रही है। उसके बावजूद हर साल बजट में निगम की दुकानों से किराए की आय का बजट तय किया जा रहा है। नगर निगम कोटा उत्तर द्वारा वित्त वर्ष 2021-22 में इस मद में 10 लाख रुपए आय का लक्ष्य रखा था जबकि आय एक रुपए भी नहीं हुई। वहीं आगामी वित्त वर्ष 2022-23 में फिर से इसी मद में आय का लक्ष्य 10 लाख रुपए रखा गया है।वहीं कोटा दक्षिण निगम द्वारा निगम की दुकानों, बैडमिंटन हॉल व चम्बल गार्डन कैंटीन से आय का बजट वित्त वर्ष 2021-22 में 30 लाख रुपए रखा गया था। जबकि निगम को आय मात्र 10 लाख रुपए हुई। वहीं आगामी वित्त वर्ष में भी इस मद में फिर से 30 लाख रुपए आय का लक्ष्य रखा गया है।

इनका कहना है
दुकानें काफी पुरानी हैं और उनका किराया भी बहुत कम है। दुकानों का किराया पिछले कई सालों से जमा नहीं हो रहा है। इसका रिव्यू किया जाएगा।
-वासुदेव मालावत, आयुक्त , नगर निगम कोटा दक्षिण

कोटा दक्षिण निगम क्षेत्र में निगम की बहुत कम दुकानें हैं। उनका किराया जमा हो रहा है या नहीं इसकी अधिक जानकारी नहीं है। इसका पता किया जाएगा।
-कीर्ति राठौड़, आयुक्त ,नगर निगम कोटा दक्षिण

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