बजट के बिना काम करवाना अधिकारियों को पड़ेगा भारी

भुगतान नहीं होने पर विधिक कार्यवाही के लिए संबंधित अधिकारी होंगे जिम्मेदार

बजट के बिना काम करवाना अधिकारियों को पड़ेगा भारी

अधिकारियों का कहना है कि डीएलबी द्वारा जारी आदेश व्यवहारिक नहीं है।

कोटा। नगरीय निकायों द्वारा अब उनके पास निर्धारित बजट होने पर भी वे संबंधित विकास व निमाण कार्य करवा सकेंगे। बिना बजट के कार्यादेश जारी नहीं किए जा सकेंगे। काम समाप्ति पर भुगतान नहीं होने की स्थिति में विधिक कार्यवाही होने पर संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होंगे। स्वायत्त शासन विभाग की ओर से सभी नगर निगमों के आयुक्त, नगर परिषदों के अधिशाषी अधिकारियों व नगर पालिकाओं के अधिकारियों को इस संबंध में परिपत्र जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि राज्य की नगरीय निकायों द्वारा निकाय क्षेत्रों में विकास कार्य करवाने, विभिन्न सामग्री की आपूर्ति व उपकरण क्रय करने सबंधी कार्य करवाए जो हैं। इसके लिए निकायों द्वारा  विभिन्न संस्थाओं, संवेदकों व फर्मों को कार्यादेश तो जारी कर दिए जाते हैं। लेकिन कई निकायों की कमजोर आर्थिक स्थिति व बजट की अनुपलब्धता के कारण संवेदक व फर्मों को समय से भुगतान नहीं किया जाता है। जिसके कारण न्यायिक दायित्व उत्पन्न हो रहे हैं। विभाग के ध्यान में इस तरह के कई मामले लाए गए हैं। स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक एवं संयुक्त सचिव द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया कि सभी निगम व निकायों के अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि वे कार्यादेश जारी करने से पहले कार्य पर होने वाले व्यय की राशि निकाय के कोष में उपलब्ध होना सुनिश्ति कर लेें। केन्द्र व राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदान  व सहायता के भरोसे कोई कार्यादेश जारी नहीं किया जाए। निकायों द्वारा कार्य समाप्ति के बाद संबंधित संस्था, फर्म व संवेदक को भुगतान नहीं करने पर विधिक कार्यवाही, पेनल्टी या ब्याज भुगतान की स्थिति में निकाय के कार्यकारी अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी निर्धारित की जाएगी। 

अभी बिना बजट जारी हो रहे कई काम
संवेदकों का कहना है कि अभी नगर निगम हो या नगर विकास न्यास। अधिकतर काम ऐसे हैं जिनके लिए विभागों के पास बजट ही नहीं है। लेकिन बजट आने की आशा में कार्यादेश जारी कर दिया गया। काम भी पूरा हो गया। जब उसके बिल पेश किए जा रहे हैं तो अधिकारियों द्वारा सरकार से बजट नहीं मिलने की बात कहकर भुगतान में देरी की जा रही है। जिससे संवेदकों को समय पर भुगतान नहीं मिलने से वे अन्य काम नहीं कर पाते। जिससे कई कामों में देरी होती है या संवेदक उन कामों को करने में रूचि ही नहीं लेते। 

आय के स्रोत ही नहीं, कैसे करें काम
इधर नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि नगर निगम स्वायत्त शासी संस्था है। निगम को स्वयं अपनी आय के स्रोत बनाने पड़ते हैं। लेकिन  निगमों की आय के स्रोत ही नहीं है। जिससे न तो निगमों की आय हो रही है। अधिकतम निगम व निकाय केन्द्र व रा’य सरकार से मिलने वाले अनुदान पर ही निर्भर हैं। बिना अनुदान व सरकारी सहायता के काम चलाना मुश्किल है। अधिकारियों का कहना है कि डीएलबी द्वारा जारी आदेश व्यवहारिक नहीं है। फिर भी सरकार का आदेश है तो उसकी पालना की जाएगी। ऐसे में बिना बजट के काम शुरु ही नहीं होंगे। 

लाखों-करोड़ों रुपए का भुगतान अटका
इधर नगर निगम व कोटा विकास  प्राधिकरण के संवेदकों का कहना है कि जन प्रतिनिधियों के कहने पर अधिकारी काम करवाने के लिए सहमति तो दे देते हैं। वह काम संवेदकों से करवा भी लिए जाते हैं। लेकिन संवेदकों को समय पर भुगतान नहीं किया जाता है। नगर विकास न्यास व नगर निगमों में कई काम ऐसे हैं जिनके संवेदकों के लाखों करोड़ों रुपए का भुगतान अटका है। उन भुगतान के बारे में अधिकारियों का एक ही जवाब मिलता है कि बजट ही नहीं है। बजट आएगा तब भुगतान होगा। संवेदकों का कहना है कि डीएलबी द्वारा हाल ही में जारी परिपत्र के अनुसार अब अधिकारी यह बहाना नहीं बना सकेंगे कि बजट आएगा तब भूगतान होगा। डीएलबी के परिपत्र के अनुसार पहले बजट की व्यवस्था करनी होगी उसके बाद कार्यादेश जारी होगा। इससे न तो निगम अधिकारियोंं को समस्या होगी और न ही संवेदकों व फर्मों को भुगतान के लिए अधिकारियों व निगम के चक्कर लगाने पड़ेंगे। निगम अधिकारियों का कहना है कि डीएलबी से जो परिपत्र आया है उसकी पालना की जाएगी। 

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