हादसों ने बदली जिंदगी, जुनून ने जिंदगानी

कमजोरी को बनाया ताकत, खेल में आजमाया भाग्य, खुद के हाथों बदली तकदीर

हादसों ने बदली जिंदगी, जुनून ने जिंदगानी

साथ ही कई ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो भले ही बड़ी प्रतियोगिताओं में अपना हुनर ना दिख सके हों लेकिन अपनी इच्छा शक्ति के दम पर कई पैरा खिलाड़ी तैयार कर राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर तक भेजे हैं।

कोटा। फ्रांस की राजधानी पेरिस में समर ओलंपिक गेम्स के बाद पैरालंपिक गेम्स चल रहे हैं। जहां राजस्थान से भी कई पैरा खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं। हमारे कोटा में भी कई खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने अपनी शरीरिक विसंगतियों को पीछे छोड़ते हुए देश विदेश में नाम कमाया और आज भी जी जान से पैरा ओलंपिक खेलों की तैयारियों में जुटे हुए हैं। साथ ही कई ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो भले ही बड़ी प्रतियोगिताओं में अपना हुनर ना दिख सके हों लेकिन अपनी इच्छा शक्ति के दम पर कई पैरा खिलाड़ी तैयार कर राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर तक भेजे हैं।

हादसे में गंवाया एक हाथ, अब ताइक्वांडो में जीते पदक
इंसान अगर किसी कार्य को करने की ठान ले तो लाख मुसीबत होने के बाद भी उसे पूरा कर ही लेता है। ऐसा ही करके दिखाया हमारे कोटा के लव गोचर ने जिन्होंने महज 12 साल की उम्र में ही अपना हाथ गंवा दिया था। लेकिन लव इसे अपनी कमजोरी जगह अपनी मजबूती बना लिया और खेल ऐसा चुना जिसमें केवल पैरों की ही आवश्यकता होती है और उस खेल में राष्ट्रीय स्तर पर एक सिल्वर सहित दो पदक भी अपने नाम कर लिए। गांधी जी की पुल निवासी लव गोचर साल 2008 में एक चुनावी रैली के दौरान झंडा लगाने के लिए छत पर गए तो संतुलन बिगड़ने से गिरने लगे तो गलती से बिजली का तार पकड़ लिया जिससे लगे करंट के कारण एक हाथ पूरी तरह जल गया। लव के परिजन कोटा से अहमदाबाद तक इलाज कराने के लिए लेकिन कहीं से भी इलाज संभव नहीं होता देख अंतिम में हाथ काटना पड़ा। जिसके बाद जैसे तैसे पढ़ाई पूरी की और अपने परिजन नेमी गुर्जर के बुलावे पर जयुपर जाकर ताइक्वांडो की ट्रेनिंग लेने लगे और साल 2023 में नासिक में हुई नेशनल ताइक्वांडो प्रतियोगिता के अडंर 70 किग्रा में कांस्य पदक अपने नाम किया वहीं इसी साल यूपी के सहारनपुर में आयोजित नेशनल ताइक्वांडो प्रतियोगिता में सिल्वर अपने नाम किया। लव वर्तमान में केरल में स्पोर्ट्स अथॉरिटी आॅफ इंडिया के ट्रेनिंग सेंटर में अंतराष्ट्रीय खेलों के लिए तैयार कर रहे हैं।

अपने दम पर तैयार किए अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी
कोटा के राजेन्द्र सिंह को शुरू से ही क्रिकेट खेलने का जब्जा रहा है। राजेन्द्र बचपन से ही दाएं पैर और बाएं हाथ के चलते दिव्यांग होने के बावजूद भी हमेशा सामान्य खिलाड़ियों के बीच क्रिकेट खेलते रहे हैं। टीम के सदस्यों की ओर से उन्हें कई अलग समझा लेकिन राजेंद्र ने खेलने की जिद के चलते क्रिकेट को नहीं छोड़ा। इसी जिद ने आगे चलकर उन्हें कोटा की पहली दिव्यांग क्रिकेट टीम बनाने का मौका मिला जिसके बाद उन्होंने अपनी टीम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के दर्जनों खिलाड़ी तैयार किए जो आज देश विदेश में कोटा और भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अपने जुनून और जब्जे से भरे कार्य के लिए उन्हें जिला स्तर और राज्य स्तर पर भी कई सम्मानित किया जा चुका है। राजेंद्र ने अपना पहला टूर्नामेंट एमपी के ग्वालियर में खेला था जिसके बाद आर्थिक हालातों के चलते वो आगे नहीं खेल पाए। लेकिन राजेंद्र आज भी अपने दम पर क्रिकेट के खिलाड़ी तैयार कर रहे हैं। राजेंद्र का कहना है कि जैसे सरकार सामान्य खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करती है वैसे ही पैरा खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि पैरा खिलाड़ी एक समय में दो तरह की कठिनाइयों से गुजरता है। साथ ही जो पैरा खिलाड़ी तैयार करते हैं उन्हें भी सहायता मिलनी चाहिए जिससे वो और बेहतर खिलाड़ी देश के लिए तैयार कर सकें।

विस्फोट में हाथ खराब हुए, पिता का देहांत हुआ पर हिम्मत नहीं हारी
किसी के जीवन में एक साथ दुखों और कठिनाइयों का पहाड़ टूट जाए तो इंसान हार कर बैठ जाता है। लेकिन इन परिस्थितियों में जो खुद को साबित कर दिखाता है वहीं योद्धा कहलाता है। एसी ही कहानी है श्रीनाथपुरम निवासी सुनील कुमार साहू की जिनके साथ साल 2013 के बाद हुई घटनाओं ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी। पहले बड़े भाई का देहांत, फिर अपनी ही फैक्ट्री में हुए हादसे में दोनों हाथ गंवा देना उसके बाद पिता का देहांत और बहन के चले जाने से मानो सुनील की दुनिया ही उजड़ गई हो। ऐसे में सुनील की मां हिम्मत न हारते हुए उन्हें पैरा गेम्स के लिए तैयार करना शुरू किया मां ने दिन रात मेहनत मजदूरी कर उन्हें ट्रेनिंग दिलाई तो सुनील भी उम्मीदों पर खरे उतरे और पदकों की तो मानो लाइन लगा दी। सुनील ने साल दर साल मेहनत की और राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक अपने नाम कर लिए। सुनील राज्य स्तर में 8 गोल्ड मेडल, राष्ट्रीय स्तर पर 2 गोल्ड, 2 सिल्वर तथा एक ब्रांज और खेलो इंडिया पैरा गेम्स में सिल्वर पदक जीत चुके हैं। सुनील को कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है, वहीं सुनील अब ओलंपिक खेलों की तैयारी में जुटे हुए हैं।

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गलत इंजेक्शन ने बदली जिंदगी, जुनून ऐसा की जिंदगानी बदल दी
कोटा के नरेंद्र शर्मा को 6 साल की उम्र में गलत इंजेक्शन लगने की वजह से एक पैर में पोलियो हो गया। नरेंद्र बचपन से ही क्रिकेट के प्रति जुनूनी थे तो बहुत समय तक सामान्य क्रिकेटरों के बीच में अपने क्रिकेट कौशल का प्रदर्शन किया और जिला स्तर पर अंडर 19 लीग और क्वालीफाई जैसी प्रतियोगिताओं में अपनी मौजूदगी बनाई रखी। लेकिन सामान्य क्रिकेट में उज्जवल भविष्य न होने पर खुद का क्लब स्थापित किया और क्रिकेट खेलना जारी रखा। नरेंद्र ने 2018 में जब दिव्यांग क्रिकेट के बारे में सुना तो राजस्थान डिसएबल क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा आयोजित ट्रायल में भाग लिया और जिला स्तर खेलने के पश्चात राजस्थान टीम में अपनी जगह बनाई और प्रदर्शन के दम पर साल 2021 में राजस्थान दिव्यांग क्रिकेट टीम के कप्तान बन गए। वहीं उसी साल जयपुर में आयोजित नेशनल टूनार्मेंट में राजस्थान टीम को अपनी कप्तानी कौशल से नेशनल चैंपियन फिर 2022 में भी अपने कप्तानी में टीम को राजस्थान टीम को नेशनल टूनार्मेंट में विजेता बनाया। नरेंद्र साल 2021 में ही बांग्लादेश के खिलाफ औरंगाबाद में खेले गए एकदिवसीय मैच में भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम का हिस्सा बने एक अर्धशतक भी लगाया। नरेंद्र अपने क्रिकेट करियर में 12 अर्ध शतक लगा चुके हैं औश्र 51 विकेट भी हासिल कर चुके हैं। वहीं विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कोटा प्रशासन के द्वारा कोटा यूथ आइकॉन भी बनाया गया। नरेंद्र 6 सितंबर से तमिलनाडु के कोयंबटूर में आईपीएल की तरह दिव्यांग आईपीसीएल प्रतियोगिता में भी रिहानो रैगिंग्स टीम की ओर खेलेंगे।

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