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वे मांएं जिन्होंने गढ़ी वीर संतानें: मुझे कोख पर गर्व, एक और भगत सिंह को जन्म दे पाती तो उसे भी देश पर कुर्बान कर देती...
संसार में ‘मां’ की अपनी महिमा है।
च्चे का पहला गुरु ‘मां’ को माना गया है, मां के संघर्ष, त्याग और बलिदान की अनेक कहानियां हैं।
जयपुर। संसार में ‘मां’ की अपनी महिमा है। बच्चे का पहला गुरु ‘मां’ को माना गया है, मां के संघर्ष, त्याग और बलिदान की अनेक कहानियां हैं। माना जाता है कि बच्चा जब जन्म लेता है तो वह पहला शब्द ही ‘मां’ बोलता है। भारतीय इतिहास में ऐसी अनेक माताएं हुई हैं, जिन्होंने अपने पुत्र के निर्माण में अपना पूरा जीवन खपा दिया। पुत्र को इस तरह तैयार किया कि उसने मुगलों की दास्ता स्वीकार नहीं की। अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भगतसिंह की मां विदयावती कौर का जीवन भी प्रेरणा देता है। बहरहाल, मशहूर शायर ताबिश ने लिखा है- ‘एक मुद्दत से मेरी मां सोई नहीं ताबिश, मैंने एक कहा था कि मुझे अंधेरे से डर लगता है।’ इन शब्दों में मां की ममता के आंचल की गहराई का पला चलता है।
भगत सिंह की मां विद्यावती
शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी देने का दिन 23 मार्च, 1931 तय हुआ तो अपने लाल को एक नजर भर देखने के लिए मां विदयावती जेल में मिलने गर्इंं। बेटे से मिलकर वापस जाने लगी तो आंखों के कोर में काफी समय से कैद मोती झलक गए। यह देखकर पास खड़े जेल के सिपाही ने कहा कि शहीद की मां होकर रोती है? इस पर विदयावती ने कहा कि ‘मैं अपने बेटे की शहीदी पर नहीं रो रही हूं, यदि इस कोख ने एक और भगतसिंह दिया होता तो उसे भी देश पर कुर्बान कर देती।’ धन्य हैं ऐसी माताएं, जिन्होंने ऐसे पुत्र को जन्म दिया।
शिवा को गढ़ा मां जीजाबाई ने
छत्रपति शिवा ने 1674 में जब स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की नींव रखी तो उसके पीछे उनकी मां जीजाबाई की प्रेरणा और उनके संस्कार ही थे। जीजाबाई को देश में तेजी से बढ़ते मुगल सामाज्य का शासन उनके सीने में कील की तरह चुभता था। उन्होंने अपने पुत्र शिवा का पुणे में इस कदर सैन्य, राजनीति, कूटनीति के सबक सिखाए, जो आगे चलकर दिल्ली दरबार के लिए नासूर बन गए।
प्रताप को तराशा मां जयवंता बाई ने
दिल्ली मुगल दरबार की दासता स्वीकार नहीं करने वाले महाराणा प्रताप के खून में वीरता और स्वतंत्र रहने के संस्कार उनकी मां जयवंता बाई ने ही दिए थे। अकबर ने अपनी दासता स्वीकार कराने के लिए प्रताप पर हर तरीके आजमाए, लेकिन प्रताप ने अधिनता स्वीकार नहीं की। घनघोर विपरीत परिस्थितियों में जंगल-जंगल भटकते रहे, लेकिन मां के दूध पर आंच नहीं आने दी। चाहते तो आमेर के राजा मानसिंह की तरह दिल्ली दरबार में उच्च पद पा सकते थे, लेकिन 1576 में हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा, जिसमें सामना आमेर के राजा मानसिंह से हुआ। राजस्थान के इतिहासकार श्रीकृष्ण जुगनू बताते हैं कि उनके पिता महाराणा उदयसिंह के व्यस्त होने से उनकी मां जयवंता बाई ने ही उन्हें वीरता और महिलाओं के प्रति आदर के संस्कार दिए थे।
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