'इंडिया गेट'
जानें इंडिया गेट में आज है खास...
पर्दे के पीछे की खबरें जो जानना चाहते है आप....
मैदान में पीके!
तो आखिरकार प्रशांत कुमार यानी पीके ने राजनीति के मैदान में उतरने का संकेत कर ही दिया। शुरूआत बिहार से करेंगे। सो, सभी राजनीतिक दल उन पर पिल पड़े। हालांकि वह जदयू के उपाध्यक्ष रह चुके। उसके बाद उन्होंने बिहार की हर ग्राम पंचायत से युवा नेतृत्व को आगे लाने का मिशन शुरू किया। लेकिन अचानक उस पर विराम लगा दिया। बहाना कोरोना महामारी का। लेकिन जब उनकी कांग्रेस से बात बिगड़ गई। तो हुंकार भर रहे। कहा, दस साल हो गए। अब जमीन पर कुछ नया करना होगा। लेकिन जमीनी राजनीति करना और पार्टियों से ठेका लेकर जितवाने के लिए आइडिया देना अलग बात! यह डगर इतनी आसान नहीं। आज जो राजनीति के शीर्ष पर। उन्होंने दशकों तक जमीन पर आम जनता के बीच काम किया। उसके बाद ही जनता ने उन्हें भरोसा करके आशीर्वाद दिया। अब सवाल पीके का। उन्होंने अब तक जमीन पर लोगों के लिए किया क्या? अलावा कंप्यूटर पर आंकड़ों का विश्लेषण करने के और पैसा भी कमाया।
शह, मात.. कश्मकश!
बिहार में भविष्य की राजनीति के लिहाज से बुहत कुछ घटित हो रहा। सीएम नितिश कुमार संकेत दे रहे। सत्ता में सहयोगी भाजपा समेत विपक्षी राजद को भी। पहले नितिश पूर्व सीएम राबड़ी देवी के आवास पर आयोजित इफ्तार में गए। तो अगले ही दिन प्रोटोकॉल तोड़कर अमित शाह का स्वागत करने एयरपोर्ट पहुंच गए। अब इससे कई तरह के कयास, चचार्एं। उपर से उनके दिल्ली आने की चचार्एं और भाजपा की इच्छा कि उसका सीएम बने। अब बिहर विधानसभा का वर्तमान में समीकरण ऐसा कि जिधर नितिश जाएंगे। सत्ता उधर ही होगी। हां, भाजपा की सहयोगी वीईपी का कुनबा बिखर गया। जबकि चिराग पासवान की लोजपा पहले ही खेत रही। अब डर तो हम के जीतनराम मांझी को भी सता रहा। वहीं, लालूजी के परिवार में भी सब कुछ ठीक ठाक नहीं। उनके बड़े पुत्र तेजप्रताप बगावत के सुर दे रहे। क्योंकि लालूजी की राजनीतिक विरासत उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव के पास जा रही। उम्मीद कि राष्ट्रपति चुनाव तक तस्वीर साफ हो।
राष्ट्रपति चुनाव..
देश के अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सुगबुाहट सुनाई देने लगी। सत्ता पक्ष में नहीं। बल्कि कांग्रेस के अगुवाई वाले विपक्ष में। चर्चा यह कि कांग्रेस समेत वामदल सक्रिय हो रहे। भाजपा विरोधी दल एक साझा प्रत्याशी उतारने के पक्ष में। केसीआर ने वायएसआर के जगनमोहन रेड्डी एवं बीजद के नवीन पटनायक से बात की बताई। लेकिन उन्होंने कांग्रेस के साथ जाने से इनकार किया बताया। असल में, यह दोनों ही दल विरोध के फेर में भाजपा से बैर मोल लेने एवं कांग्रेस के साथ खड़े नहीं होना चाहते। हालांकि मतों का आंकड़ा एनडीए के पक्ष में। सत्ताधारी गठबंधन का प्रत्याशी आराम से जीत जाएगा। लेकिन कांग्रेस एवं वामदलों का रूख हमेशा से विरोध के लिए विरोध करने का। इस बीच, अभी तक यह कोई अनुमान नहीं लगा पा रहा कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा? हां, राष्ट्रपति कोई महिला, अल्पसंख्यक या दक्षिण भारत से होने की संभावना जताई जा रही। लेकिन यह सब केवल पीएम मोदी एवं अमित शाह ही जानते!
झारखंड का झमेला!
कांग्रेस के दिन वाकई में ठीक नहीं चल रहे। हर ओर से परेशानी ही परेशानी। एक तो केवल राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में सरकारें बची हुईं। इसके अलावा कांग्रेस झारखंड एवं महाराष्ट्र में गठबंधन सरकारों में शामिल। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा कोई दिन नहीं बीता। जब कोई खटपट न हुई हो। अब झारखंड में भी बखेड़ा। हालांकि यह खुद कांग्रेस के कारण नहीं। बल्कि सहयोगी जेएमएम के नेता एवं सीएम हेमंत सोरेन एक आॅफिस आॅफ प्रोफिट के मामले में फंस गए। शिकायत हुई। तो चुनाव आयोग ने गंभीरता से लेते हुए नोटिस भी भेज दिया। अब परेशान कांग्रेस। मामला आगे बढ़ा तो कहीं विधायक दल ही न टूट जाए। जबकि पार्टी विधायक कई दिनों से सीएम एवं उनके मंत्रियों की शिकायत पार्टी आलाकमान से करते रहे। अब यदि झारखंड में कुछ हुआ। तो इसकी कोई गारंटी नहीं कि महाराष्ट्र में कुछ नहीं होगा। जहां बीएमसी के चुनाव सामने। जहां अभी तक यह पक्का नहीं कि गठबंधन के सहयोगी शिवसेना एवं एनसीपी साथ चुनाव लड़ेंगे।
दूर की रणनीति!
जम्मू-कश्मीर को लेकर परिसीमन आयोग की सिफारिशें सार्वजनिक। जहां विधानसभा सीटों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव। तो अब जम्मू एवं कश्मीर संभागों में सीटों का अंतर भी नौ से घटकर चार सीट का होगा। एसटी के लिए नौ एवं एससी के लिए सात सीटों पर आरक्षण का भी प्रस्ताव। मतलब अब्दुल्ला एवं मुफ्ती परिवारों के प्रभुत्व के खात्मे का इंतजाम। इसके पहले ग्राम पंचायत एवं बीडीसी के चुनाव हुए। जिसका एनसी एवं पीडीपी ने बायकाट किया। लेकिन जब असली गेम समझ आया। तो मजबूरी में डीडीसी के चुनाव में गुपकार गठबंधन के साथ उतरे। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। अब विधानसभा चुनाव। लेकिन सरकार इससे भी आगे की सोच रही। जम्म-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान हमेशा जनमत संग्रह की मांग करता रहा। अब यदि यूएनओ के प्रस्ताव के मुताबिक कभी जनमत संग्रह हुआ। तो वह पाक अधिकृत कश्मीर में भी होगा। चूंकि असली लोकतांत्रिक प्रक्रिया भारत में अपनाई जा रही। आम जनता को इसमें भागीदारी मिल रही। फिर पीओके की जनता किधर जाएगी?
केन्द्र में मरुधरा!
अपनी मरुधरा इन दिनों राजनीति के लिहाज से खासी चर्चा में। पहले करौली दंगों और बाद में जोधपुर शहर में हुए तनाव ने देशभर का ध्यान खींचा। हालांकि कांग्रेस एवं भाजपा में आंतरिक गुटबाजी भी राजनीति के जानकारों को गौर करने पर मजबूर कर रही। जहां कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत एवं पूर्व पीसीसी सचिन पायलट की राजनीतिक अदावत किसी न किसी बहाने चर्चा में रहती। तो भाजपा में भी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की भी अपने केन्द्रीय नेतृत्व से पटरी नहीं बैठने की खबरें गाहे बगाहें आती रहतीं। अब एक और मुद्दा। जहां कांग्रेस उदयपुर में तीन दिवसीय चिंतन शिविर आयोजित कर रही। तो भाजपा भी 21 एवं 22 को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की जयपुर में बैठक करने जा रही। उसी समय राहुल गांधी का कोटपूतली में दौरा प्रस्तावित। तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा एवं गृहमंत्री अमित शाह भी मरुधरा का दौरा करेंगे। मतलब राजस्थान मानो राजनीतिक गतिविधियों का कुरूक्षेत्र बनने जा रहा। ऐसा क्यों? विधानसभा चुनाव में तो अभी समय। फिर कारण क्या?
-दिल्ली डेस्क
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