स्थानीय नेताओं के बर्ताव से संगठन भी नजर आया लाचार, खींवसर, चौरासी और सलूम्बर जैसी सीटों पर खोखली होती रही कांग्रेस
कई नेता लगाए जाने के बावजूद संगठन में सक्रियता नहीं आ पाई।
खींवसर, चौरासी और सलूम्बर जैसी सीटों पर टिकट से वंचित रहे पुराने दिग्गज नेताओं के आगे प्रदेश संगठन भी लाचार नजर आया। इन सीटों पर मुख्यालय स्तर से कई नेता लगाए जाने के बावजूद संगठन में सक्रियता नहीं आ पाई।
जयपुर। राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में सात सीटों में से कांग्रेस महज एक सीट पर ही जीत दर्ज कर पाई। परिणामों ने कांग्रेस संगठन के अंदर कई सीटों पर खोखलेपन को सामने ला दिया। खींवसर, चौरासी और सलूम्बर जैसी सीटों पर टिकट से वंचित रहे पुराने दिग्गज नेताओं के आगे प्रदेश संगठन भी लाचार नजर आया। इन सीटों पर मुख्यालय स्तर से कई नेता लगाए जाने के बावजूद संगठन में सक्रियता नहीं आ पाई। अब कांग्रेस को कई जिलों में कमजोर हो रहे संगठन को फिर से दुरुस्त करने के लिए कड़े फैसले लेने होंगे और संगठन को पंगु बनाने वाले कई वरिष्ठ नेताओं पर शिकंजा कसना पड़ेगा। खींवसर विधानसभा में तो कांग्रेस प्रत्याशी रतन चौधरी की जमानत ही जब्त हो गई। इस परिणाम ने कांग्रेस की सबसे ज्यादा भद्द पिटी। सूत्रों के अनुसार यहां कांग्रेस प्रत्याशी के चयन को लेकर स्थानीय संगठन में नाराजगी पनपी हुई थी।
इस सीट पर वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सवाई सिंह को 66 हजार से अधिक वोट मिले तो पिछले साल के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तेजपाल मिर्धा को 27 हजार से ज्यादा वोट मिले। नेताओं की खींचतान के बीच कांग्रेस ने यहां संगठन को मजबूत करने के लिए कई सालों से कुछ नहीं किया। चौरासी और सलूम्बर विधानसभा में तो कांग्रेस स्थानीय पुराने दिग्गज नेताओं के आगे इस चुनाव में लाचार नजर आई। सलूम्बर में टिकट वितरण के बाद पूर्व सांसद रघुवीर मीणा और चौरासी में पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा काफी नाराज दिखे। कांग्रेस की फीडबैक रिपोर्ट में सामने आया कि मीणा और भगोरा ने अपने परिवार के अलावा टिकट मांगने वालों को स्थानीय स्तर पर धमकाया और कई बार बेइज्जत भी किया। यहां स्थानीय कांग्रेस संगठन में भी इन नेताओं के समर्थक ही पदों पर बैठे रहने से प्रत्याशियों को पूरा सहयोग नहीं मिलकर भितरघात का सामना करनापड़ा।
उपचुनाव में दौसा हॉट सीट थी। भाजपा के कैबिनेट मंत्री डॉ.किरोडीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा के सामने कांग्रेस ने डीसी बैरवा को उतारा, जो बड़ी पहचान नहीं रखते थे। इस सीट पर नामांकन प्रक्रिया में सभा के दौरान पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने मैच फिक्सिंग वाला बयान देकर संस्पेंस पैदा कर दिया था और मुकाबला रोमांचक माना गया। कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ने इस सीट को गंभीरता से लेकर गांव-गांव में जाकर दौर किए और अपने प्रभाव वाली इस जगह पर कांगे्रस प्रत्याशी को जीत दिलाने में कामयाब रहे। रामगढ़ सीट पर हार की वजह में संगठन की कमजोरी और अन्य दावेदारों की उपेक्षा बड़ा कारण सामने आया। अन्य दावेदारों में हर बार जुबेर खान के परिवार को ही तवज्जो देने को लेकर नाराजगी बनी हुई थी और स्थानीय संगठन के लोगों ने चुनाव में ऊपरी तौर पर ही काम किया। भाजपा यहां कांग्रेस की फूट का माइक्रो मैनेजमेंट करने में सफल हुई।
रूठों को मनाने में सांसदों ने नहीं दिखाई रुचि
देवली-उनियारा सीट पर बागी होकर चुनाव लड़े नरेश मीणा को सांसद हरीशचन्द्र मीणा ने और झुंझुनूं सीट पर पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुुढ़ा को सांसद बृजेन्द्र ओला ने संगठन के कहने पर भी समझाना और बिठाना मुनासिब नहीं समझा। चर्चा यह भी है कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान पीसीसी ने जब बागियों से बातचीत के लिए कहा तो सांसदों ने यह तक कह दिया कि बागियों के नहीं बैठने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा,लिहाजा पार्टी इन नेताओं के भरोसे रहकर कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी।
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