अमेरिका महान, खुद को शांतिदूत बनाएंगे ट्रंप

सुनहरे दौर में ले जाने का संकल्प दोहराया 

अमेरिका महान, खुद को शांतिदूत बनाएंगे ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप अब अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति बन गए हैं।

डोनाल्ड ट्रंप अब अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति बन गए हैं। पद की शपथ लेने के बाद दिए पहले भाषण में उन्होंने अपनी अमेरिका फर्स्ट की नीति के साथ अमेरिका को फिर से महान और सुनहरे दौर में ले जाने का संकल्प दोहराया। दूसरी ओर तीसरे विश्व युद्ध को ना होने देने के संकल्प के साथ खुद की छवि को शांतिदूत के रूप में स्थापित करने की इच्छा जाहिर की है। पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के बाहर होने के ऐलान से दुनिया को झटका भी लगा है। विभिन्न भाव-भंगिमाओं के साथ दिए अपने भाषण में उन्होंने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया उससे साफ  जाहिर होता है कि वे अपने मजबूत इरादों के साथ अपनी राजनीतिक परिपक्वता की ऐसी छाप छोड़ना चाहते हैं जो भावी अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए एक मिसाल बने। भाषण से यह अहसास भी हुआ कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में हुई कुछ भूलों से सबक भी लिया है। उनका भाषण पहले कार्यकाल की तुलना में अधिक व्यक्तिगत और आक्रामक रहा। अपने कानूनी मामलों और उन पर हुए जानलेवा हमलों को केंद्रबिंदु बनाकर उन्होंने बाइडन प्रशासन की नीतियों की कड़ी आलोचना की। वहीं दूसरी ओर वही प्रमुख मुद्दे रहे जो उन्होंने अपने चुनाव प्रचार दौरान और राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद जिनका जिक्र करते आए हैं। विस्तारवादी सोच के साथ उन्होंने मार्टिन लूथर किंग के सपनों को साकार करने के लिए अश्वेतों, हिस्पेनिक और एशियाई मूल के लोगों को साथ लेकर चलने का संकल्प दोहराया। इस बात पर भी जोर दिया कि दुनिया में कोई भी कार्य असंभव नहीं है, सब कुछ संभव है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद को बताया। उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उन्होंने अमेरिका को महान बनाने के लिए इसे दुबारा बचाया है। 

ओबामा प्रशासन के अच्छे फैसलों को वे लागू करेंगे। उनके शपथ ग्रहण समारोह और पहले संबोधन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई थीं। ट्रंप के भाषण में उनके आगामी कार्यकाल की दिशा और नीतियों से स्पष्ट संकेत तो मिले ही, यह भी अहसास हुआ कि वे एक ओर अपने देश में राष्ट्रवाद की भावनाओं का संचार कर रहे हैं, तो दूसरी ओर पूरी दुनिया को यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी विदेश नीति आक्रामक होगी। जो भी नीतियां और फैसले होंगे, वह अमेरिकी हितों पर आधारित होंगे। उन्होंने ऐलान किया कि वे पनामा नहर वापस लेंगे। गल्फ ऑफ मैक्सिको का नाम बदलकर गल्फ ऑफ अमेरिका करेंगे। पनामा नहर को लेकर कहा कि इसके संचालन में चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। आज इसे चीन संचालित कर रहा है। वहां के पांच में से दो बंदरगाहों का वह निर्माण कर रहा है। अमेरिकी जहाजों पर ज्यादा शुल्क लगाया जा रहा है। यहां वे चीन की वर्चस्व और विस्तारवादी नीति को सीधी चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं। वे सख्त आव्रजन नीतियों के पक्षधर हैं। लिहाजा मैक्सिको बॉर्डर पर नेशनल इंमरजेंसी लगाने का ऐलान किया। यानी वे अप्रवासियों की अवैध घुसपैठ रोकेंगे। घुसपैठियों को पकड़कर छोड़ना बंद करेंगे। उनके साथ सख्ती से पेश आएंगे। 

नशे के कारोबारियों को आतंकी घोषित करेंगे। अमेरिका के शहरों को अपराध और अपराधियों से मुक्त करेंगे। अलक्सा माउंट डेनाली का असली नाम माउंट मेकेनली रखा जाएगा। ट्रंप ने एक ओर नेशनल एनर्जी इंमरजेंसी घोषित कर अमेरिका को तेल और गैस उत्पादन का प्रमुख केंद्र बनाने का ऐलान किया। जो अमेरिकी ऊर्जा स्वतंत्रता की द्योतक है। मंगल ग्रह पर झंडा फहराने जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों का उल्लेख किया। प्रेस पर तत्काल सेंसरशिप समाप्त करने का ऐलान किया। अमेरिका को बड़ी सैन्य शक्ति बनाएंगे। दूसरों की जंग में अमेरिकी सेना नहीं भेजेंगे। देश में सभी के लिए निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित किए जाने की बात कही। अमेरिका को समृद्ध बनाने के लिए दूसरे देशों पर कर और शुल्क लगाने तथा बाहरी राजस्व सेवा प्रणाली लागू करने की घोषणा की। जो सभी शुल्क, कर और राजस्व वसूल करेंगे। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की अनिवार्यता खत्म करेंगे। पूर्व में उन्होंने चीन और ब्रिक्स देशों पर सौ फीसदी टैरिफ लगाने की बात कही थी। यह भारत के लिए चिंता का कारण है। लेकिन उम्मीद है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की अहम भूमिका, क्वाड, आई2यू2 जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जुड़े होने की वजह से अमेरिका-भारत के संबंध और अधिक मजबूत होने की गुंजाइश लिए हुए हैं। 

इसके पीछे ट्रंप प्रशासन में मार्को रुबियो को विदेश मंत्री और माइकल वाल्टस को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाए जाने से जो दोनों चीन विरोधी और भारत समर्थक हैं, ट्रंप की भावी नीतियों को समझने के लिए काफी है। उनकी सरकार केवल दो जैंडरों-पुरूष और महिला को मान्यता देगी। बता दें ट्रंप देश के 131 साल बाद व्हाइट हाउस में कम बैक करने वाले पहले राष्ट्रपति होंगे। अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत ट्रंप चीन के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने का फैसला करते हैं तो इससे भारत को फायदा मिलने वाला है। सप्लाई चेन में भारत की भूमिका अहम रहने वाली है। अमेरिकी कंपनियां निश्चित तौर पर भारत की ओर आ सकती है। अमेरिकी वीसा के क्रम में आशंका के बावजूद भारतीयों के लिए एच1बी वीजा में कमी नहीं आने वाली है। रक्षा और सामरिक दृष्टि से देखें तो सबसे महत्वपूर्ण भारत के अमेरिका के साथ वे चार फाउंडेशनल एग्रीमेंट्स हैं जो भारत को अमेरिका के मेजर स्ट्रैटेजिक पार्टनर की हैसियत में लाए। इनमें से तीन डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में हुए थे। ये थे-लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम आफ  एग्रीमेंट, कम्युनिकेशंस एंड इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी मेमोरेंडम आॅफ एग्रीमेंट और बेसिक एक्सचेंज एंड कॉपरेशन एग्रीमेंट। अंत में बता दें कि हाल ही गाजा में चल रही जंग को रोकने के लिए इजराइल और हमास के बीच युद्ध विराम कराने में डोनाल्ड ट्रंप की प्रमुख भूमिका रही है। 

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