वर्ल्ड ब्रेन स्ट्रोक डे : राजस्थान में हर साल 6 से 7 हजार नए केस, 700 से अधिक मौतें

एसएमएस अस्पताल की इमरजेंसी में आ रहे ब्रेन स्ट्रोक के रोजाना 20 से 30 मरीज 

वर्ल्ड ब्रेन स्ट्रोक डे : राजस्थान में हर साल 6 से 7 हजार नए केस, 700 से अधिक मौतें

ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों को लेकर जागरूकता की कमी और स्ट्रोक आने के साढ़े चार घंटे के दरमियान जिसे गोल्डन ऑवर कहा जाता है, में अस्पताल नहीं पहुंच पाने के कारण जिंदगी भर के लकवे और मौतों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश में ऐसे मरीजों की संख्या 70 प्रतिशत से ज्यादा है। ऐसे में उन्हें ठीक करना मुश्किल हो जाता है।

जयपुर। ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों को लेकर जागरूकता की कमी और स्ट्रोक आने के साढ़े चार घंटे के दरमियान जिसे गोल्डन ऑवर कहा जाता है, में अस्पताल नहीं पहुंच पाने के कारण जिंदगी भर के लकवे और मौतों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश में ऐसे मरीजों की संख्या 70 प्रतिशत से ज्यादा है। ऐसे में उन्हें ठीक करना मुश्किल हो जाता है। इस देरी से मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को स्थायी क्षति पहुंचती है और मरीजों में जीवनभर की अपंगता या मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

एसएमएस में तीन से चार मरीज ही गोल्डन ऑवर में पहुंच रहे: एसएमएस मेडिकल कॉलेज में न्यूरोलॉजी के सीनियर प्रोफेसर डॉ. दिनेश खंडेलवाल ने बताया कि एसएमएस अस्पताल की इमरजेंसी में ब्रेन स्ट्रोक के रोजाना 20 से 30 मरीज पहुंचते हैं, लेकिन इनमें से महज तीन से चार मरीज ही गोल्डन ऑवर यानी स्ट्रोक आने के साढ़े चार घंटे के भीतर अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे में इन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है। इसके पीछे बड़ी वजह है ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों के प्रति जागरुकता की कमी और स्ट्रोक आने के बाद ब्रेन स्ट्रोक डेडिकेटेड अस्पताल में नहीं पहुंच पाना। डॉ. खंडेलवाल ने बताया कि अगर मरीज गोल्डन ऑवर में पहुंच जाता है तो क्लॉट बस्टिंग इंजेक्शन से उसे बचाना आसान हो जाता है। गोल्डन ऑवर निकलने के बाद थ्रोम्बोक्टॉमी प्रक्रिया की जाती है जिसमें क्लॉट निकाला जाता है। 

राजस्थान में हर साल 700 से ज्यादा मौतें
सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र सुरेका ने बताया कि राजस्थान में हर साल 6 से 7 हजार नए ब्रेन स्ट्रोक केस दर्ज किए जाते हैं। इनमें से लगभग 700 से 900 मरीजों की मौत हो जाती है। राज्य में स्ट्रोक की वार्षिक दर 125 प्रति लाख और मृत्यु दर 15 प्रति लाख जनसंख्या पाई गई है। यानी स्ट्रोक से पीड़ित हर 100 में से 12 से 15 मरीजों की मौत 28 दिन के भीतर हो जाती है। उन्होंने बताया कि देरी से इलाज शुरू करना, ब्लड प्रेशर और शुगर का असंतुलन और री-स्ट्रोक की घटनाएं प्रमुख कारण हैं। सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एसपी पाटीदार ने बताया कि हर 6 सेकंड में एक स्ट्रोक, हर 4 मिनट में एक मौत हो रही है। भारत में हर 6 सेकंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार होता है और हर 4 मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। 

12 फीसदी मरीजों को मिल पा रहा थ्रॉम्बोलाइसिस इलाज
सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुरेश गुप्ता ने बताया कि स्ट्रोक आने पर सबसे जरूरी इलाज थ्रॉम्बोलाइसिस है जो मस्तिष्क की अवरुद्ध नसों में रक्त का प्रवाह फिर शुरू करता है। यह इलाज सिर्फ  साढ़े चार घंटे के भीतर ही प्रभावी होता है लेकिन देश में मात्र 12 प्रतिशत मरीजों को ही यह उपचार समय पर मिल पाता है। 

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