अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व में गहरी छाप छोड़ रहा अपना आरटीयू, राज्यपाल ने होनहार शौधार्थियों को उपाधियों से किया सम्मानित

सौलर एनर्जी से बिजली बनाने की क्षमता बढ़ाने से साइबर क्राइम से बचने तक बढ़ा अनुसंधान

अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व में गहरी छाप छोड़ रहा अपना आरटीयू, राज्यपाल ने होनहार शौधार्थियों को उपाधियों से किया सम्मानित

आरटीयू के 14वें दीक्षांत समारोह में रिसचर्स को मिला सम्मान।

कोटा। राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय क्वालिटी एजुकेशन के दम पर देश-दुनिया में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपना लौहा मनवा रहा है। यहां के विद्यार्थियों ने डेटा मॉडल्स, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, क्रिप्टोग्राफिक तकनीक से लेकर टेक्सटाइल कम्पोजिट्स सहित सॉफ्टवेयर डवलपमेंट के क्षेत्रों में अनुसंधान से नई टेक्नोलॉजी का विकास कर जीवन की चुनौतियों को आसान बना रहे हैं। उनकी रिसर्च, सुनहरा भविष्य की परिकल्पना साकार कर रही है। साथ ही लोगों के रोजमर्रा के काम आसान होंगे। वहीं, बिजनेस को ग्रोथ दिलाने से लेकर आमजन को साइबर फ्रॉड से बचाने के लिए कई अनुसंधान किए जा रहे हैं।  आरटीयू के 14वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल ने ऐसे होनहार शौधार्थियों को उपाधियों से सम्मानित किया है। पेश है खबर के प्रमुख अंश...

मेटल को टेक्सटाइल कम्पोजिट्स से किया रिप्लेस
भीलवाड़ा के एमएलवी टेक्सटाइल इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. अरविंद वशिष्ट ने टेक्सटाइल कम्पोजिट्स पर शोध किया। उन्होंने अपनी रिसर्च से मेटल (धातु) को टेक्सटाइल कम्पोजिट्स से रिप्लेस किया। इसके लिए उन्होंने चार तरह के कम्पोजिट्स ग्लास, ब्लास्ट, जूट, लीनन का उपयोग कर स्ट्रेक्चर कम्पोजिट तैयार किया। यह किसी भी मेटल का रिप्लेसमेंट है। इससे धातु का वजन आधा हो जाएगा और लाइफ भी बढ़ जाएगी।  डॉ. वशिष्ट ने बताया कि इसे यूं समझ सकते हैं, पवन चक्की में तीन ब्लेड लगी होती है, जिसका वजन करीब 2 हजार किलो होता है, प्रत्येक ब्लेड का वजन 600 किलो होता है, क्योंकि वह स्टील की बनी होती है। अब इसे टेक्सटाइल कंपोजिट से बनाया जा सकता है, ऐसे में  एक ब्लेड का वजन 600 से 300 किलो ही रह जाएगा। इसका फायदा यह होगा कि वजन में हल्की होने से पवन चक्की तेज गति से चलेगी, जिससे बिजली का उत्पादन भी ज्यादा होगा और मजबूत होने से लाइफ भी बढ़ेगी। टेक्सटाइल कंपोजिट्स का उपयोग कंट्रक्शन, वाहन, स्पोर्ट्स सहित विभिन्न क्षेत्रों में कर सकते हैं। 

फेक रिव्यू की पहचान कर धोखाधड़ी से बचाएगा बिग डेटा
जोधपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर राजेंद्र पुरोहित ने कम्प्यूटर साइंस में पीएचडी की है। उन्होंने अपनी रिसर्च में ऐसी तकनीक विकसित की है जो लोगों को इंटरनेट पर फेक रिव्यूज के झांसे में आने से बचाएगा। डॉ. पुरोहित ने बताया कि वर्तमान दौर में ऑनलाइन खरीदारी का चलन तेजी से बढ़ रहा है। जिसके चलते इन वेबसाइड्स पर घटिया प्रोडेक्ट का भी अच्छा रिव्यू आने से लोग उस प्रोडेक्ट को खरीदकर अनजाने में धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं। वहीं, दूसरा पहलु भी है, अच्छे प्रोडेक्ट की घटिया रिव्यू पढ़ने से उपभोक्ताओं के मन में उस प्रोडेक्ट के प्रति नाकारात्मकता बढ़ जाती है, जिससे संबंधित कम्पनी को लॉस होता है। ऐसे में बिग डेटा एनालिसिस के जरिए हम फेक रिव्यू को पहचान पाएंगे और साइबर क्राइम का शिकार होने से बच सकेंगे। 

सौलर से बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाई  
निजी कम्पनी में सीनियर मैनेजर भारत दुबे ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में सौलर ऊर्जा में पीएचडी की। शोध का टॉपिक एनालिसिस आॅफ सौलर पीवी सिस्टम फॉर मैक्सिमम पॉवर एक्सट्रैक्शन एंड एफिसिएंट यूटिलाइजेशन रहा। दुबे ने बताया कि सौलर ऊर्जा का किस तरह ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जा सकता है, उसकी क्षमता में और अधिक सुधार कैसे किया जा सकता है, इस पर शौध किया।  उन्होंने बताया कि सौलर के जो मॉड्यूल्स होते हैं वो 25 डिग्री तापमान और 1000 वॉट पर मीटर आॅफ रेडियस के लिए बने होते हैं। जिनके टेम्प्रेचर लगभग टेस्ट लैब में ही होता है। ऐसे में उन मॉड्यूल्स को परीक्षण के बाद फिल्ड में ले जाते हैं तो स्थिति विपरित होती है, जो कि हमारी रेडियस 1000 मीटर से भी ऊपर या नीेचे भी हो सकता है और तापमान भी 40 से 50 डिग्री तक भी हो सकता है। ऐसे में सामने आया कि हमारे जो मॉड्यूल्स हैं वो निर्धारित तापमान पर काम नहीं करता है तो उसकी क्षमता घट जाती है। ऐसे में सौलर प्लांट के मॉड्यूल विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा काम करें और बिजली की उत्पादन क्षमता बढ़े, इसको लेकर रियल टाइम प्रयोग किए और विभिन्न मोडल्स बनाए। हमने डिफरेंट टेक्नोलॉजी के दो मॉड्यूल्स लिए और टेस्ट किए तो क्षमता में काफी अंतर पाया गया। इसके बाद इस उपकरण में कूलिंग सिस्टम लगाया। इसके लिए मॉडल्स में साइंटिफिक अरेंजमेंट कर मॉड्यूल्स में फैन लगाकर सौलर से बिजली उत्पादन की क्षमता का आंकलन किया। जिसका बेहतर रिजल्ट मिला। इसके बाद और सुधार के लिए वाटर सिस्टम का भी प्रयोग किया तो पाया कि मॉड्यूल्स की क्षमता और अधिक बढ़ गई। इन सब के लिए पहले तो मॉडल्स बनाए और फिर प्रयोग किए गए। दुबे ने अपना शोध डॉ. अशोक शर्मा, डॉ. सीमा अग्रवाल व डीन अकेडमिक अफेयर डॉ. डीके पलवलिया के मार्गदर्शन में पूर्ण किया। उनका रिसर्च वर्क नेशनल व इंटरनेशनल जर्नल में भी पब्लिश  हो चुका है। साथ ही एक बुक चेप्टर भी एक्सेप्ट हुआ है।

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क्रिप्टोग्राफिक तकनीक से मल्टीमडिया डेटा किया सुरक्षित
हेमंत साहू ने आरटीयू से कम्प्यूटर साइंस एप्लीकेशन में पीएचडी की। उनका शौध अ नावेल एप्रोच फॉर एम्पलीमेंटेशन ऑफ सिक्योरिटी एंड प्राइवेसी फॉर मल्टीमीडिया थिंग्स पर आधारित था। हेमंत ने अपनी रिसर्च से मल्टीमीडिया डेटा की सुरक्षा, गोपनियता, लीक व चोरी होने से बचाने के लिए तकनीक इजाद की। जिसकी मदद से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाने वाले फोटो, वीडियो, ऑडियो सहित अन्य डेटा को सुरक्षित कर दिया है। हेमंत बताते हैं, वर्तमान में मोबाइल मल्टीमीडिया का चलन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में डेटा लीक होना, गोपनियता  भंग, चोरी होने का खतरा भी बढ़ गया है। ऐसे में अपनी रिसर्च में एन्क्रिप्शन एंड डिक्रिप्शन तकनीक विकसित की है, जिससे जिससे भेजने वाला और प्राप्त करने वाले के बीच डेटा को तीसरा कोई न तो पढ़ पाएगा और न ही देख पाएगा। डाटा भेजते वक्त एन्क्रिप्शन मोड़ पर रहेगा, जिससे डाटा लॉक हो जाता है, प्राप्तकर्ता भी उस डेटा को पढ़ने के लिए सुरक्षा-की से ही लॉक खोल पाएगा। इस तरह से मल्टीमीडिया डेटा की गोपनियता बनी रहेगी और कोई चोरी या लीक नहीं कर पाएगा।  

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सौर ऊर्जा से बिजली बनाने की क्षमता 30 से 95% बढ़ेगी
राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में अस्टिेंट प्रोफेसर सुनीता चाहर ने इाईब्रिड कॉम्बिनेशन ऑफ सौलर एंड विंड एनर्जी पर पीएचडी की। उन्होंने अपनी रिसर्च में ऐसा कंट्रोल सिस्टम डवलप किया है जो सौर ऊर्जा से बिजली बनाने की क्षमता को तीन गुना अधिक बड़ा देगा। डॉ. चाहर कहती हैं, सूर्य से अब तक सौलर धूप से 30% ही एनर्जी जनरेट करता है लेकिन इस रिसच में विकसित की गई तकनीक से बिजली का उत्पादन तीन गुना 95% तक बढ़ जाएगी। वहीं, दो या दो से अधिक सौलर पैनल को एक ही कंट्रोलर से कंट्रोल किया जा सकता है। जबकि, अभी तक हर एक सौलर के लिए एक कंट्रोलर लगाना पड़ता था, जो महंगा होता है। इस तकनीक से उपभोक्ता को आर्थिक भार से निजात मिलेगी। वहीं, सौलर पैनल की लाइफ भी बढ़ जाएगी। यदि, मौसम खराब हो जाए तो भी सौलर के बिजली उत्पादन करने की क्षमता पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि, इसको इसी तरीके से डिजाइन किया है कि यह अपनी क्षमता के अनुसार बिजली उत्पादन करता रहेगा। सुनीता को इस रिसर्च के लिए यंग रिसर्च अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस रिसर्च में प्रोफसर एसडी पुरोहित का विशेष सहयोग रहा। 

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