जेठ की दोपहरी और 17 घंटे गर्मी में झुलस रहे वन्यजीव

सबसे ज्यादा पैंथरों को हो रही परेशानी, बायोलॉजिकल पार्क में वन्यजीवों को गर्मी से बचाव के नहीं पुख्ता इंतजाम

जेठ की दोपहरी और 17 घंटे गर्मी में झुलस रहे वन्यजीव

पिछले कई दिनों से कोटा जिले के कई इलाके भीषण गर्मी और लू का प्रकोप झेल रहे हैं। प्रचंड गर्मी व गर्म हवाओं के थपेड़ों से जहां इंसान बेहाल हैं वहीं, वन्यजीवों का भी बुरा हाल है। ऐसा ही नजारा इन दिनों कोटा के बायोलॉजिकल पार्क में देखने को मिल रहा है। यहां शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों को लू के प्रकोप से बचाने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।

कोटा। राजस्थान की गर्मी अप्रेल से ही रौद्र रूप दिखा चुकी है। पिछले कई दिनों से कोटा जिले के कई इलाके भीषण गर्मी और लू का प्रकोप झेल रहे हैं। प्रचंड गर्मी व गर्म हवाओं के थपेड़ों से जहां इंसान बेहाल हैं वहीं, वन्यजीवों का भी बुरा हाल है। ऐसा ही नजारा इन दिनों कोटा के बायोलॉजिकल पार्क में देखने को मिल रहा है। यहां शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों को लू के प्रकोप से बचाने के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। हालांकि, मांसाहारी वन्यजीवों के लिए बड़े कूलर (डक्ट) लगे हैं, जो सुबह 11 से शाम 6 बजे तक ही चलते हैं, फिर इसे बंद कर दिया जाता है। इसके बाद यह कूलर अगले दिन सुबह ग्यारह बजे चालू किए जाते हैं। ऐसे में मांसाहारी वन्यजीव पूरे 17 घंटे गर्मी की तपिश व उमस से बेहाल रहते हैं। वहीं, शाकाहारी वन्यजीवों के लिए डक्टिंग तो छोड़िए पानी का छिड़काव तक समय पर नहीं होता। हालांकि, एनक्लोजर में टीनशेड लगे हैं लेकिन धूप की सीधी किरणों से यहां छांव नहीं रहती। ऐसे में ये बेजुबान दिनभर गर्म हवाओं के बीच रहने को मजबूर हैं। हैरानी की बात यह है, जब नवज्योति ने जिम्मेदारों से डक्ट कुलिंग सिस्टम चलने के समय को लेकर बात की तो सभी ने अलग-अलग समय बताया। साथ ही गर्मी से बचाव के इंतजामों को लेकर इनकी बातों में विरोधाभास नजर आया।

17 घंटे गर्मी में रहने को मजबूर मांसाहारी वन्यजीव
बॉयलॉजिकल पार्क में मांसाहारी वन्यजीवों की कुल संख्या 11 हैं। जिन्हें गर्मी से बचाने के लिए एनक्लोर में कमरेनुमा अलग-अलग पिंजरे बने हुए हैं, जो लगभग 6 गुना 8 साइज के हैं। इनमें बड़ा कूलर (डक्ट) लगा हुआ है, जो सुबह 11 से शाम 6 बजे तक चलता है। इसके बाद इसे बंद कर दिया जाता है। अगले दिन फिर से निर्धारित समय पर चलाया जाता है। ऐसे में शाम से सुबह तक 17 घंटे मांसाहारी वन्यजीवों की पूरी रात गर्मी में गुजरती है।

उमस से भभकते कमरेनुमा पिंजरे
बायलॉजिकल पार्क में तैनात फोरेस्ट गार्ड के अनुसार यहां मांसाहारी वन्यजीवों में 3 पैंथर, 4 भेड़िए, 1 सियार और 3 जरख हैं। इनके एनक्लोजर में ईंट-पत्थर के पक्के मकाननुमा पिंजरे बने हुए हैं। गर्मी से राहत के लिए डक्ट कुलिंग सिस्टम लगा है, जो शाम 6 बजे के बाद बंद कर दिया जाता है। भले ही गार्ड कुछ भी बोलने से बचते रहे लेकिन हकीकत तो यह है, शाम 6 से आधी रात तक सूरज की तपन महसूस होती है। ईंट-पत्थरों के बने पिंजरे उमस से भभकते हैं। प्रचंड गर्मी से जहां इंसान बेहाल है वहीं जिम्मेदारों की करतूत के आगे ये बेजुबान बेबस हैं।

दोहरी मार झेल रहे पैंथर
चिडियाघरों जहां एक तरफ पैंथरों की मेटिंग पर सख्त मनाही है तो वहीं दूसरी ओर उॉन्हें पूरा दिन पिंजरों में बंद रखा जाता है। ऐसे में वे तनाव के साथ गर्मी की दोहरी मार झेल रहे हैं। फोरेस्ट गार्ड के मुताबिक एक दिन में एक ही पैंथर को पिंजरे से बाहर निकाल एनक्लोजर में खुला छोड़ा जाता है। अगले 24 घंटे तक अन्य दोनों पैंथर पिंजरे में ही बंद रहते हैं। समय पूरा होने के बाद दूसरे पैंथर को बाहर निकलने का मौका मिलता है। इस तरह तीसरे पैंथर को 3 दिन बाद खुली हवा में सांस नसीब होती है। अपनी बारी आने तक पिंजरे में रहने वाले पैंथर डक्ट की मदद से दोपहरी तो काट लेता है लेकिन शाम से सुबह तक का समय गर्मी-उमस के बीच ही कटता है।

यहां 2 भालू, एक चोटिल
चिड़ियाघर में दो भालू हैं। नर भालू की उम्र 8 साल तो मादा एक साल की है। जिसे 5 महीने पहले शंभुपुरा गांव से रेस्क्यू कर यहां लाए थे। इस दौरान उसके सिर पर चोट लगने से वह घायल हो गई। हालांकि उसकी मरहम पटटी की जाती है। वहीं, नर भालू को 3 महीने पहले उदयपुर से रेस्क्यू कर कोटा लाए थे। इसे कभी-कभी दौरा पड़ने की शिकायत है। दोनों भालूओं को अलग-अलग समय एनक्लोजर में छोड़ा जाता है। दोपहर को एनक्लोजर में बने वाटर पाइंट पानी के अभाव में सूखे पड़े थे।

गर्मी का मांसाहारी वन्यजीवों पर ये पड़ता है प्रभाव
-    हीट स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है।
-    भोजन कम लेना और रूची में गिरावट, जैसे भोजन देख दौड़कर आना, एक्टिवपन में गिरावट, इंसान को देखकर भी रिएक्शन नहीं करना आदि।
-    पानी कम पीना। आंखों से आंसू आना और चमक कम होना।
-    चमड़ी और बालों का रंग फीका होना।
-    शारीरिक गतिविधियां कम हो जाना।
-    बाहरी उद्दीपनों पर हरकत न करना।
-     प्रजन्न क्षमता पर विपरित असर आॅ पड़ता है।

जिम्मेदारों के बयानों में विरोधाभास
24 घंटे चलता है डक्ट  सिस्टम
 वन्यजीवों को गर्मी के प्रकोप से बचाने के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। मांसाहारी वन्यजीवों के पिंजरों में डक्ट कुलिंग सिस्टम लगाया हुआ है, जो पूरे 24 घंटे चलते हैं। वहीं, सभी शाकाहारी वन्यजीवों के पिंजरों के आसपास धूप से बचाव के लिए ग्रीन नेट लगाया है।
- महेशचंद शर्मा, रेंजर बायलॉजिकल पार्क इंचार्ज

शाम 7 बजे तक चलाते हैं सिस्टम को
अभेड़ा बायलॉजिकल पार्क में मौजूद वन्यजीवों के लिए व्यवस्थित इंतजाम किए हैं। मांसाहारी एनिमल के पिंजरों में सुबह 9 से शाम 7 बजे तक डक्ट एयरकंडिशनर चलाया जाता है। जबकि, जेकाल के पिंजरों में रात 8.30 बजे तक एयरकंडिशन चालू रखा जाता है। क्योंकि उनके 4 बच्चे भी साथ रहते हैं। 
 - डॉ. विलास राव गुलाने, वन्यजीव चिकित्सक अभेड़ा बायलॉजिकल पार्क

तापमान के हिसाब से करते हैं कूलिंग
वन्यजीवों को गर्मी से राहत के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं। खासकर मांसाहारी वन्यजीवों के लिए कूलिंग सिस्टम लगाया है। जिसके चलने के समय में तापमान के हिसाब से बदलाव किया जाता है। मौसम में नमी व ठंडा वातावरण होने पर इसका समय घटा दिया जाता है।
 - डॉ. आलोक गुप्ता, डीएफओ वन्यजीव विभाग कोटा

6 बजे तक ही चलता है डक्ट
बायलॉजिकल पार्क में तैनात गार्ड के मुताबिक, डक्ट कुलिंग सिस्टम सुबह 11 से शाम 6 बजे तक चलाया जाता है। इसके बाद इसे बंद कर दिया जाता है, जो अगले दिन निर्धारित समय पर फिर से चलाया जाता है।

एक्पर्ट व्यू
मंसाहारी वन्यजीवों के लिए लगाया गया डक्ट कूलिंग सिस्टम 16 से 18 घंटे चलाया जाना चाहिए। क्योंकि, शाम से लेकर आधी रात तक गर्मी की तपन रहती है। ईंट-पत्थरों से बने कमरानुमा पिंजरे उमस से भभकते हैं। यहां 3 पैंथर हैं, जब एक पैंथर को पिंजरे से एनक्लोजर में छोड़ा जाता है तो दोनों पैंथरों को पिंजरों में ही रखा जाता है। ऐसे में खुले में घुमने वाले पैंथर के पिंजरे का डक्ट बंद कर दूसरे पैंथरों के लिए चला देना चाहिए। वहीं, दूसरे पैंथर को बाहर निकलने का मौका 48 घंटे बाद मिलता है, जबकि तीसरे को खुली हवा में सांस लेने का मौका 72 घंटे बाद मिलता है। ऐसे में इन पैंथर को गर्मी की वजह से हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है।
- डॉ. अनिल पांडे, पूर्व वन्यजीव चिकित्सक कोटा चिड़ियाघर

 मांसाहारी वन्यजीवों में गर्मी अधिक होती है, इसलिए उन्हें मौसम के हिसाब से अनुकुलित वातावरण में रखना बेहद जरूरी है। यदि तापमान अधिक है तो कुलिंग सिस्टम का समय बढ़ाया जाना चाहिए। जहां डक्ट पहले 8 घंटे चलता है तो समय बढ़ाकर 12 घंटे कर देना चाहिए।
- बाबूलाल जाजू, पर्यावरण विद व पीपुल्स फार एनीमल के प्रदेश प्रभारी

 

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