टावी पद्धति से चिकित्सकों ने दिया बुज़ुर्ग को नया जीवन
हृदय का एक वॉल्व पूरी तरह से सिकुड़ चुका था
हृदय के वॉल्व में खराबी होने पर ओपन हार्ट सर्जरी का विकल्प आम होता है। लेकिन टावी एक ऐसी तकनीक है जिसके तहत बिना किसी चीर-फाड़ या सर्जरी के प्रभावित वॉल्व को बदला जा सकता है और रोगी उपचार के ठीक अगले ही दिन आराम से चलने फिरने की स्थिति में आ जाता है
जयपुर। हृदय के वॉल्व में खराबी होने पर ओपन हार्ट सर्जरी का विकल्प आम होता है। लेकिन टावी एक ऐसी तकनीक है जिसके तहत बिना किसी चीर-फाड़ या सर्जरी के प्रभावित वॉल्व को बदला जा सकता है और रोगी उपचार के ठीक अगले ही दिन आराम से चलने फिरने की स्थिति में आ जाता है। हाल ही में नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर ने इस तकनीक द्वारा एक 75 वर्षीय रोगी का हार्ट वॉल्व बदला गया। रोगी एक चेन-स्मोकर था, उसे गंभीर सी.ओ.पी.डी. थी और हृदय में कई ब्लॉकेज के कारण उसकी कुछ साल पहले एंजियोप्लास्टी हो चुकी थी। इसलिए ओपन हार्ट सर्जरी करना जोखिम भरा होता और ऐसे मामले में इस मरीज के लिए टावी तकनीक एक वरदान साबित हुई।
अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के बाद भी 75 वर्षीय नरेन शर्मा (बदला हुआ नाम) जीवन के प्रति सकारात्मक रूख रखते थे। उन्हें गंभीर सी.ओ.पी.डी. था, वह हृदय रोगी थे और उन्हें तीन साल पहले ही वॉल्व की समस्याओं का पता चला था, जिसके लिए वे दवाएं ले रहे थे। लेकिन पिछले कुछ दिनों से जब उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो उनके परिजन उन्हें नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर लायें। डायग्नोसिस कराने पर पता चला कि हार्ट वॉल्व की कार्यप्रणाली और भी खराब हो चुकी थी जिसके लिए तत्काल वॉल्व बदलने की जरूरत थी।
नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अंशु काबरा और कोरोनरी इंटरवेंशन स्पेशलिस्ट डॉ. संजय महरोत्रा की एक हार्ट टीम का गठन किया गया ताकि मरीज के लिए सबसे उपयुक्त उपचार विकल्प का निर्णय लिया जा सके। पारंपरिक रूप से ऐसे मामलों में खराब हार्ट वॉल्व को बदलने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है लेकिन मरीज के चिकित्सा इतिहास को देखते हुए नॉन सर्जिकल टावी तकनीक को सबसे उपयुक्त उपचार विकल्प माना गया।
टावी पद्धति के फायदों: डॉ. अंशु काबरा, कंसलटेंट-कार्डियोलॉजी, नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जयपुर ने कहा कि, यह प्रक्रिया एक छोट चीरे के माध्यम से की जाती है (जांघ के पास) जिसके द्वारा ही बायो-प्रोस्थेटिक वॉल्व को प्रभावित वॉल्व क्षेत्र तक पहुंचाया जाता है। क्योंकि प्रक्रिया बिना ऐनेस्थीसिया या सर्जरी के होती है इसलिए मरीज अगले ही दिन से पूरी तरह से सक्रिय हो जाता है। प्रोसीजर और रिकवरी की दृष्टि से देखें तो टावी का अनुभव एंजियोग्राफी के समान है क्योंकि पूरा प्रोसीजर बहुत मामुली चीरे से होता है और मरीज की रिकवरी बहुत जल्दी होती है। टावी प्रक्रिया डेढ़ घंटे तक चली और मरीज को दूसरे दिन वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है और उन्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। उनके दिल की कार्यप्रणाली में भी सुधार आया है।
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