कचरे के ढेर में भविष्य ढूंढने को मजबूर बचपन
पढ़ाई की उम्र में कचरा एकत्र कर रहे बच्चे
करवर कस्बे के आसपास छोटे -छोटे बच्चे अपना व परिवार का पेट भरने के लिए सुबह से देर शाम तक कचरे के ढेर खंगालते रहते है। ये बच्चे सुबह से शाम तक अपना और घर का गुजारा करने के लिए पढ़ाई लिखने की उम्र में कूड़ा कचरा बीन रहे है।
करवर । करवर कस्बे के आसपास छोटे -छोटे बच्चे अपना व परिवार का पेट भरने के लिए सुबह से देर शाम तक कचरे के ढेर खंगालते रहते है। ये बच्चे सुबह से शाम तक अपना और घर का गुजारा करने के लिए पढ़ाई लिखने की उम्र में कूड़ा कचरा बीन रहे है। बच्चे अपनी उम्र के अन्य बच्चों को सुबह स्कूल जाते हुए देख कर अपने आप को भी स्कूल में पढ़ने तथा उनके साथ खेलने कूदने की सोचते है, लेकिन परिवार की माली हालात ठीक नहीं होने के कारण वह स्कूल जाने व खेलने कूदने की उम्र में कूड़ा कचरे के ढेरों में अपना भविष्य ढूंढते नजर आते है। बच्चों का कहना है कि वह पढ़ना चाहते हो लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इस लायक नहीं है कि वे शिक्षा हासिल करने के लिए किसी स्कूल की ओर कदम बढ़ा सके। बच्चे सुबह से शाम तक कूड़े के ढेरों में शराब की खाली बोतलें,प्लास्टिक का सामान व लोहे का सामान निकालते रहते है। यह बच्चे अपना व परिवार को पेट भरने के लिए अपना जीवन कूड़े के ढेरों में बिता रहे है। कचरा बीनने वाले यह छोटे- छोटे बच्चे आने वाले खतरों से अनजान होकर कूड़ा कचरा बीनते रहते है। कस्बे में दौड़ते हुए तेज वाहनों की आवाज को नकार कर यह अपना ध्यान सिर्फ कूड़ा बीनने में रखते है। यह बच्चे कचरे के ढेरों से सिर्फ सौ -पचास रुपए के लिए अपना जीवन कचरे के ढेरों में बिता रहे है। राज्य सरकार व शिक्षा विभाग ने बच्चों को पढ़ाई की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए गरीब परिवार के बच्चों को निजी स्कूलों में नि:शुल्क पढ़ाने तथा मिड डे मील योजना के तहत नि:शुल्क खाना सरकारी स्कूलों में दिया जाता है, लेकिन इन सब योजनाओं के बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों के सामने कचरा बिनते यह बच्चे नहीं दिखाई देते है। ऐसे में राज्य सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा हर वर्ष सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने को लेकर बड़े पैमाने पर जोर दिया जाता है लेकिन अध्यापक इन बच्चों को स्कूल की मुख्यधारा से नहीं जोड़ पाते है।
शिक्षा की मुख्यधारा से वंचित है
बच्चों को नि:शुल्क व अनिवार्य स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार कहीं योजनाएं चला रही है लेकिन सरकार के लाख प्रयास के बावजूद आज भी करवर क्षेत्र के बच्चं शिक्षा से वंचित है ,पीठ पर कचरे का बोरा लटकाए बाजारों व मोहल्लों में घूमते इन बच्चों को देखकर बचपन बोझिल सा प्रतीत होता है।
कस्बे में प्रशासन अनजान
स्कूली शिक्षा से वंचित दिनभर कूड़े कचरे के ढेर में जिंदगी तलाशते बच्चें बाल अधिकारों और संरक्षण का सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता का दावा करने वाली विभागीय अधिकारियों के दावा के दावों पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। सरकार ने भले ही महिला एवं बाल विकास, शिक्षा व बाल अधिकारिता विभाग सहित सामाजिक संस्थाओं को ऐसे बच्चों को स्कूलों में नामांकन कराने की जिम्मेदारी सौंपी है हालांकि प्रशासन द्वारा एनजीओ के माध्यम से ऐसे बच्चों को चिन्हित कर शिक्षा दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन यह प्रयास केवल दिखावा साबित हो रहा है कस्बे में तीन-चार बालक बालिकाएं कंधे पर कचरे का बोरा लड़का है। देखे जा सकते हैं। उन्हें जहां पर भी कचरे का ढेर दिखता उसमें से प्लास्टिक आदि समेटकर बोरे में डाल लेते है। जब संवाददाता ने उनसे पूछने पर बताया कि वह पढ़ना चाहते हो लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इस लायक नहीं है कि वे शिक्षा हासिल करने के लिए किसी स्कूल की ओर कदम बढ़ा सकें उन्हो का कहना है की अन्य बच्चों को स्कूल जाते देख उन्हें भी स्कूल जाने की इच्छा होती है।
इनका कहना
ऐसे बच्चों को रेस्क्यू करके बाल कल्याण समिति संरक्षण में रखकर शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर उनको संबंधित स्किम में जोड़कर लाभ दिलाया जाएगा।
-सीमा पोद्दार, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, बून्दी
करवर में ऐसे बच्चे नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। प्रशासन द्वारा ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ कर शिक्षा का अलख जगाना चाहिए।
-काजोड़ी लाल प्रजापत, समाज सेवी, करवर
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