धर्मशाला और स्कूलों में चल रहे हाडौती के सरकारी कॉलेज

सरकार की छवि बिगाड़ने पर तुला उच्च शिक्षा विभाग : दो साल से अंगे्रजी का शिक्षक तक नहीं लगा पाए , न पढ़ाने को प्रोफेसर और न ही बैठने को क्लास रूम, सात में से आधे विषयों की लगती ही नहीं कक्षाएं

धर्मशाला और स्कूलों में चल रहे हाडौती के सरकारी कॉलेज

हाड़ौती के कई सरकारी महाविद्यालय धर्मशाला, अस्पताल भवन और जर्जर स्कूलों में चल रहे हैं, जहां सुविधाएं तो न के बराबर हैं लेकिन हादसों का खतरा भरपूर है।

कोटा। विद्यार्थियों को घर के पास ही बेहतर उच्च शिक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से सरकार ने ग्रामीण अंचलों में भी सरकारी कॉलेज तो खोल दिए, लेकिन पढाने को शिक्षक ही नहीं दिए। साधन-संसाधनों की अनुपलब्धता से अपंग हुए गवर्नमेंट कॉलेजों में क्वालिटी एजुकेशन मिलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हाड़ौती के कई सरकारी महाविद्यालय धर्मशाला, अस्पताल भवन और जर्जर स्कूलों में चल रहे हैं, जहां सुविधाएं तो न के बराबर हैं लेकिन हादसों का खतरा भरपूर है। इन कॉलेजों को आज तक खुद का भवन नसीब नहीं हुआ। गांवों के सरकारी स्कूलों में उधार के कमरों में यह कॉलेज चल रहे हैं। विद्यार्थियों को फेसिलिटी से लेकर फैकल्टी तक नहीं मिल रही। इनमें से कुछ कॉलेज तो हाल ही में खुले हैं। अब सवाल यह उठता है कि मूलभूत सुविधाओं की कमी वाले इन कॉलेजों में उच्च शिक्षा के हीरे कैसे चमक पाएंगे। इटावा - 50 साल पुरानी जर्जर धर्मशाला में चल रहा कॉलेज राजकीय इटावा महाविद्यालय की स्थापना वर्ष 2018 में हुई थी, तब से यह करीब 50 साल पुरानी त्यागी धर्मशाला में चल रहा है। भवन जितना पुराना है, उतना ही जर्जर अवस्था में है। कक्षा-कक्षों में पानी टपक रहा है। छत का पलास्टर जगह-जगह से उखड़ चुका है। पिछले साल पलास्टर का बड़ा टुकड़ा गिरकर फर्श पर विद्यार्थियों के बीच गिर गया था। गनीमत रही कि बच्चों की संख्या कम होने से वह जगह खाली थी, ऐसे में गंभीर हादसा होने से टल गया। वहीं, पीने के पानी की भी समूचित व्यवस्था नहीं है। 600 विद्यार्थियों पर चार क्लास रूम यूजीसी की गाइड लाइन के अनुसार 40 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन इटावा कॉलेज में तो 600 बच्चों पर 1 ही शिक्षक है और प्रिंसिपल भी वही हैं। वहीं, धर्मशाला में कुल 5 कमरे हैं, जिनमें से एक प्राचार्य ऑफिस और दूसरा असुरक्षित होने के कारण बंद कर दिया है। ऐसे में 3 ही कक्षा कक्ष बचे हैं, जबकि वर्तमान में 600 स्टूडेंट्स का नामांकन है। बच्चों को बिठाने की जगह नहीं होने से कॉलेज में 7 में से 3 विषय की ही कक्षाएं लग पाती है। ऐसे में 4 कक्षाओं को बिठाने की जगह और शिक्षकों के अभाव के चलते उनकी क्लासें नहीं लगा पाते। टीनेशेड व पेड़ के नीचे लगती बीए की क्लासें प्राचार्य नरेंद्र मीणा ने बताया कि त्यागी धर्मशाला का भवन जर्जर है। यहां बच्चों को बिठाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। ऐसे में बीए द्वितीय व तृतीय वर्ष की कुछ क्लासें खुले में टीनशेड व पेड़ के नीचे लगानी पड़ती है। वहीं, गत वर्ष से अब तक अंगे्रजी के प्रोफेसर नहीं होने से बच्चों को पढ़ाई नहीं करा पाते। विद्यार्थी अपने स्तर पर ही कोचिंग व ट्यूशन जाकर अपना कोर्स पूरा करते हैं। हालांकि, कॉलेज में संचालित 7 विषयों में से 5 विषय के शिक्षक तो विद्या सम्बल योजना के तहत लगा लिए थे लेकिन अंग्रेजी के शिक्षक नहीं मिलते, जिससे पढ़ाई का नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि यूजीसी के मापदंड के अनुसार अंगे्रजी शिक्षक नेट क्वालिफाइड होना चाहिए, जो ग्रामीण इलाकों में नहीं मिल पाते। पांच माह पहले ही मिली जमीन, कब्जा नहीं सौंपा प्राचार्य मीणा ने कहा, कॉलेज के लिए फरवरी 2022 में ही जमीन व बजट मिला है। लेकिन अभी तक राजस्व विभाग ने कब्जा नहीं दिया। क्योंकि, कॉलेज के रास्ते पर अतिक्रमण हो रहा है। जब तक अतिक्रमण नहीं हटेगा तब तक कब्जा नहीं मिलेगा। इसी वजह से निर्माण कार्य भी शुरू नहीं हो पाएगा। उन्होंने बताया कि गत दो वर्ष पहले ही जमीन आवंटित हो गई थी लेकिन वह भूमि डूब क्षेत्र में होने के कारण निरस्त कर दी गई थी। जब तक कॉलेज के लिए स्थाई भवन की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक पास में ही संचालित हो रहा आईआईटी भवन में ही बीए की कक्षाएं लगाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था हो जाए तो काफी राहत मिल सकती है। कनवास - स्कूल में चल रहा गवर्नमेंट कॉलेज कनवास के राजकीय आर्ट्स महाविद्यालय की स्थापना वर्ष 2018 में हुई थी। तब से यह कॉलेज राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में चल रहा है। मजेदार बात यह है, स्कूल और कॉलेज एक ही भवन में संचालित हो रहे हैं। इस भवन में तीन दर्जन से अधिक कमरे हैं, जबकि कॉलेज के लिए 6 ही कमरे दिए हुए हैं। इनमें से एक कक्ष प्राचार्य आॅफिस है और 5 कक्षों में ही कक्षाएं चलानी हैं। जबकि, महाविद्यालय में 600 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, यहां बैठने तक की जगह नहीं है और पढ़ाने के लिए एक ही प्रोफेसर है और वो ही प्रिंसिपल है। ऐसे में यहां क्वालिटी एजुकेशन तो दूर सिलेबस पूरा करवाना ही चूनौतिपूर्ण बना है। टपक रही कमरों की छतें अधिकतर कमरों की छतें टपक रही है। स्कूल और कॉलेज एक ही शिफ्ट में एक साथ संचालित होने से शोर शराबा ज्यादा रहता है। स्कूल भवन भी जर्जर है। गत वर्ष भी कॉलेज प्राचार्य ने अपने स्तर पर ही छत की मरम्मत करवाई थी, बजट के अभाव में काम पूरा नहीं करवा सके। दीवारों में सीलन आ रही है। बरसात के समय हादसे की आशंका बनी रहती है। हालांकि गत वर्ष कॉलेज भवन के लिए जमीन आवंटित हो चुकी है। सात में से एक ही विषय की कक्षा चलती है कनवास महाविद्याय के प्राचार्य ललित कुमार नामा ने बताया कि यहां आर्ट्स कॉलेज में 7 विषय संचालित होने से सात शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं लेकिन, यहां मैरे अलावा कोई अन्य शिक्षक नहीं है। हालांकि संविदा पर एक व्याख्याता को लगा रखा है, जो हिन्दी पढ़ाते हैं। ऐसे में महाविद्यालय में केवल हिन्दी की ही कक्षा चलती है। जबकि, अंग्रेजी, राजनीति विज्ञान, भूगोल और चित्रकला के शिक्षकों के पद रिक्त होने से इनकी कक्षाएं नहीं लगती। ऐसे में इन विषयों के विद्यार्थियों की पढ़ाई नहीं हो पाती। हालांकि, विद्या संबल के माध्यम से कुछ शिक्षक लगाकर कामचलाऊ व्यवस्था कर लेते हैं लेकिन स्थाई शिक्षकों के बिना शिक्षा के स्तर में सुधार नामुमकिन है। भवन के लिए जारी हुआ छह करोड़ का बजट प्राचार्य नामा ने कहा, गत वर्ष ही कॉलेज के लिए साढ़े बारह बीघा जमीन आवंटित हुई है, जिस पर भवन निर्माण के लिए 6 करोड़ का बजट भी जारी हो गया है। दो माह पहले जून में ही वित्तिय स्वीकृति जारी हुई है और पीडब्ल्यूडी ने भी तकनीकी स्वीकृति जारी कर दी है, जिससे जल्द ही टेंडर प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय चलाने के लिए विकास समिति बनाई थी लेकिन पदाधिकारी शिक्षकों के तबादले होने से समिति का संचालन ही नहीं हो सका और संविदा शिक्षक इस समिति का हिस्सा नहीं हो सकते। जर्जर अस्पताल भवन में चल रहा मांगरोल कॉलेज कॉलेज शिक्षा सहायक निदेशक डॉ. रघुराज सिंह परिहार के मुताबिक, मांगरोल में 2016 में सरकार ने कॉलेज खोला था, तब से यह सरकारी अस्पताल के जर्जर भवन में चल रहा है। यहां 20 जनों का स्टाफ स्वीकृत है, जिनमें प्रिंसिपल, 7 असिस्टेंट प्रोफेसर के अलावा नॉन टीचिंग स्टाफ शामिल हैं। एकमात्र असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रिचा मीणा ही कार्यरत थी, जिनका हाल ही में ट्रांसफर हो गया। ऐसे में यहां बारां और कोटा से दो शिक्षक डेपुडेशन पर लगाए हैं। कॉलेज में करीब 600 विद्यार्थी हैं, प्रोफेसरों के अभाव में विद्यार्थियों की हिंदी के अलावा 6 विषयों की क्लासें लग ही नहीं पाती, क्योंकि पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं है। कॉलेज का ताला भी यही शिक्षक खोलते हैं। जर्जर भवनों में बच्चों की सुरक्षा को भी खतरा है। कोई छात्रावास तो कोई पंचायत भवन में चल रहे सरकार ने जितनी रफ्तार से नए महाविद्यालय खोले हैं, उतनी ही फुर्ती फेसिलिटी व फैकल्टी उपलब्ध करवाने में नहीं दिखाई। कोटा शहर में रामपुरा गर्ल्स आर्ट्स कॉलेज वर्तमान में गवर्नमेंट आर्ट्स बॉयज कॉलेज के कन्या छात्रावास में संचालित हो रहा है। यहां एडमिशन प्रक्रिया चल रही है। वहीं, बारां जिले में हाल ही में खुले 4 गर्ल्स महाविद्यालयों के लिए भी स्थाई भवन नहीं है। ऐसे में कुछ तो पंचायत भवन में चल रहे हैं तो कुछ पास के बड़े कॉलेज के भवन में शामिल कर संचालित किया जा रहा है। भवन निर्माण के लिए बजट आवंटन के लिए पत्र लिखा है सरकार ने लगभग सभी महाविद्यालयों को भूमि आवंटित कर दी है। वहीं, कुछ कॉलेजों के भवन निर्माण के लिए बजट भी जारी कर दिया गया है। जल्द ही निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। आयुक्तालय की ओर से इस संबंध में सकारात्मक संकेत मिले हैं। वहीं, छात्रसंघ चुनाव के बाद विद्या संबल योजना के तहत विषयवार शिक्षकों को लगाया जाएगा।

कुछ स्थाई शिक्षकों की व्यवस्था स्थानांतरण, डेपुटेशन के माध्यम से की जाएगी। आरपीएससी द्वारा साक्षात्कार चल रहे हैं। प्रदेश के कुछ महाविद्यालयों में चयनित प्रोफेसरों को पोस्टिंग दे दी है। हाड़ौती में भी जल्द पोस्टिंग दिए जाने की उम्मीद है। - डॉ. रघुराज सिंह परिहार, सहायक निदेशक कॉलेज शिक्षा निदेशालय कोटा

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