यूआईटी का दावा फेल: शहर नहीं हुआ कैटल फ्री
हकीकत- ढाई महीने बाद भी सड़कों पर पशुओं के झुंड, नतीजा- हर सड़क पर हादसों का मंडराता खतरा
देव नारायण आवासीय योजना को शुरू हुए करीब ढाई महीने का समय बीत चुका है। अभी तक भी न्यास अधिकारी शहर को पशु मुक्त तो दूर कोटा दक्षिण निगम क्षेत्र से ही पशु नहीं हटा सके हैं। हालत तो यह है कि न्यास कार्यालय से कुछ मीटर दूर स्थित बस्ती में ही मेन रोड पर पशुओं का बाड़ा बना हुआ है। जहां के पशु दिनभर बीच सड़क पर खड़े होकर यातायात में बाधक बन रहे हैं।
कोटा। नगर विकास न्यास की ओर से निर्मित देव नारायण आवासीय योजना के लॉंच होने के सात दिन में शहर को पशु मुक्त करने का दावा किया जा रहा था। लेकिन हकीकत में ढाई महीने बीत चुके हैं और अभी भी शहर की सड़कों पर पशुओं के झुंड लगे हुए हैं। नगर विकास न्यास की ओर से बंधा धर्मपुरा में करीब 300 करोड़ रुपए की लागत से देव नारायण आवासीय योजना विकसित की गई है। इस योजना में पशु पालकों व पशुओं को शिफ्ट किया जाना है। शहर को कैटल फ्री बनाने के मकसद से विकसित की गई इस योजना में करीब 1 हजार पशु पालकों और 14 हजार से अधिक पशुओं को शिफ्ट किया जाना है।
नगर विकास न्यास के अधिकारियों ने पूरा अमला लगा दिया। पुलिस और प्रशासन के साथ सभी विभागों का सहयोग लेकर योजना में पशुओं को शिफ्ट करने में पूरा जोर लगा दिया। स्वायत्त शासन मंत्री ने 19 जून को इस योजना को शुरू भी कर दिया। उस समय न्यास सचिव व अन्य अधिकारियों ने दावा किया था कि पहले चरण में कोटा दक्षिण निगम क्षेत्र के पशुओं व पशु पालकों को इस योजना में शिफ्ट किया जाएगा। उसके बाद पूरे शहर को सात दिन में पशु मुक्त कर दिया जाएगा। न्यास अधिकारियों ने दावा तो किया लेकिन वह दावा हकीकत नहीं बन सका है। योजना को शुरू हुए करीब ढाई महीने का समय बीत चुका है। अभी तक भी न्यास अधिकारी शहर को पशु मुक्त तो दूर कोटा दक्षिण निगम क्षेत्र से ही पशु नहीं हटा सके हैं। हालत तो यह है कि न्यास कार्यालय से कुछ मीटर दूर स्थित बस्ती में ही मेन रोड पर पशुओं का बाड़ा बना हुआ है। जहां के पशु दिनभर बीच सड़क पर खड़े होकर यातायात में बाधक बन रहे हैं। नगर विकास न्यास के सचिव से लेकर अन्य अधिकारी और पुलिस व प्रशासन के अधिकारी भी उस रोड से दिन में कई बार निकल रहे हैं लेकिन किसी को भी वे या तो नजर नहीं आ रहे। या देखकर भी अनदेखी कर रहे हैं। वर्तमान में हालत यह है कि शहर में एक के बाद एक लगातार त्योहारों की श्रृंखला आ रही है। जिसमें हजारों लोगों की भीड़ सड़कों पर नजर आएगी। ऐसे में हादसों का खतरा भी बना हुआ है। शहर में एक तरफ खराब सड़कें और दूसरीे तरफ पशुओं के झुंड दोनों ही हादसों का कारण बन रहे हैं। शहर क सड़कोंÞ पर लगे पशुओं के झुंड में अधिकतर सांड हैं जिनसे अधिक खतरा है। शहर के मुख्य मार्ग और सब्जीमंडियों तक में पशुओं से जान का खतरा बना हुआ है।
हर दिन एक त्यौहार
शहर में अगले कुछ दिन रोजाना एक त्यौहार है। सोमवार को तेजा दशमी व रामदेव जयंती, मंगलवार को डोल एकादशी, 9 को अनंत चतुर्दशी, उसके बाद 26 से दशहरा मेला शुरू हो जाएगा। वहीं वर्तमान में जैन समाज के पर्यषण पर्व में भी समाज के लोगों की भीड़ सड़कों पर नजर आ रही है। वहीं गणेश महोत्सव भी चल रहा है। जिसमें भी शहर के हर क्षेत्र में सुबह-शाम हजारों लोग दर्शनों के लिए निकल रहे हैं। इसके बावजूद न्यास अधिकारी कुम्कर्णी नींद सोए हुए हैं। जबकि नगर विकास न्यास के पास अतिक्रमण निरोधक दस्ता, थाना और जाब्ता तक है।
जिम्मेदारी से बचते रहे न्यास सचिव
देव नारायण योजना के शुरू होने के बाद भी शहर की सड़कों पर पशुओं के झुंड नजर आने और शहर को कब तक पशु मुक्त कर दिया जाएगा। इस बारे में जानने के लिए नगर विकास न्यास के सचिव राजेश जोशी से जब उनका वर्जन जानना चाहा तो वे अपनी जिम्मेदारी से बचते रहे। उन्होंने इसका कोई जवाब देना तक उचित नहीं समझा।
300 करोड़ की योजना, नहीं हुआ उपयोग
नगर विकास न्यास ने पशु पालकों व पशुओं के लिए 300 करोड़ की योजना तो विकसित कर दी। वहां उन्हें हर तरह की सुविधा दी गई है। उसके बाद भी यदि पशु पालक व पशु वहां नहीं जा रहे हैं और योजना का पूरा उपयोग नहीं हो रहा है। जिससे योजना पर किया गया करोड़ों रुपए जनता के धन की बर्बादी की गई है। योजना के बाद भी सड़कों पर पशुओं के झुंड नजर आने का मतलब योजना का कामयाब नहीं होना है।
- हेमराज सिंह, नयापुरा
नगर विकास न्यास द्वारा पशु पालकों के लिए योजना तो बना दी। उसे शुरू भी कर दिया है। लेकिन उसके बाद भी पशुओं के झुंड सड़कों पर नजर आने का मतलब योजना का कामयाब नहीं होना है। शहर को ट्रैफिक सिग्नल लाइट फ्री बनाने की जगह परेशानी का शहर बना दिया है। उसी तरह से शहर को पशु मुक्त करने की जगह अधिक पशु नजर आने लगे हैं। न्यास द्वारा करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी आमजन को देव नारायण योजना का कोई लाभ नहीं मिला है।
- संजय नागर, पाटनपोल
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