पांच हजार कुंभकारों के लिए फिर जलेंगे उम्मीदों के दीपक

सादे दीपक के साथ चायनीज दीपकों की डिमांड, फेंसी व डिजाइन वाले दीपक भी लुभा रहे , फिर से घूमने लगे चाक, सवा करोड़ दीपक हो चुके तैयार

पांच हजार कुंभकारों के लिए फिर जलेंगे उम्मीदों के दीपक

दो साल से कोरोना के कारण कुंभकारों का व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया था। नवरात्र के बाद से बाजारों में रौनक लौटी तो लघु उद्योग से जुड़े लोगों को फिर से रोजगार मिलने की आस बनी है। इसी के चलते पांच माह से धूल खा रहे कुंभकारों के चाक इन दिनों तेजी से घूम रहे हैं।

कोटा। इलेक्ट्रॉनिक दीपक और रोशनी की लड़ियों के आगे परंपरागत मिट्टी का दीपक बाजार की प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है। बाजार में इस बार चाइनीज दीपक के  साथ सादे दीपक कड़ी टक्कर देने को तैयार है। हालांकिस्थानीय व्यापारियों द्वारा तैयार किए रोशनी के आइटम परंपरागत मिट्टी के दीपक की रोशनी कम करने पर तुले हैं।  हाड़ौती संभाग के तीन माह से खाली बैठे कुंभकारों को अब दीपावली से आस बनी है।  पिछले एक दशक से दीपक से घर रोशन करने का चलन कम हुआ है, उसकी जगह इलेक्ट्रॉनिक बिजली के बल्ब की लड़ियों ने ले लिया  है। ऐसे में कुंभकारों की हालत पहले से पतली हो गई है।  इस बार चाइनीज के बल्व की झालर और लाइटों की मांग कम होने से दीपक की डिमांड बढ़ने की उम्मीद कुंभकार लगा रहे हैं। 

देशी दीपक और टेराकोटा दीपक में हर साल होती है प्रतिस्पर्धा
कुंभकार कैलाश प्रजापत ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मिट्टी के साधरण दीपकों की डिमांड कम हुई है। अब लोग कलात्मक और स्टाइलिश दीपक की मांग करते हैं। हालांकि पूजन के लिए साधा दीपक की अभी डिमांड है। लेकिन लोग घरों में अब रोशनी के लिए लोग 10 से 20 दीपक ही लेकर जाते है। पहले एक व्यक्ति 50 से 100 दीपक लेकर जाता था। वर्तमान में मिट्टी के दाम बढ़ने से लागत भी नहीं निकलती, लेकिन पुस्तैनी कार्य है इसलिए कर रहे हैं। साधारण दीपक 1 रुपए में बिक रहा है वहीं टेराकोटा और डिजायन वाला दीपक 5 रुपए का एक बिक रहा है। 10 हजार दीपक तैयार किए अभी तक 1500 दीपक ही बिके हंै। 

आर्थिक पैकेज दे सरकार
अखिल भारतीय प्रजापति कुंभकार महासंघ नई दिल्ली के राष्टÑीय उपाध्यक्ष नंदलाल प्रजापति ने बताया कि पिछले दो साल से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले, लुहार और लघु उद्योगों से जुड़े लोग कोविड के चलते बेरोजगार हो गए थे।  संक्रमण कम होने के बाद फिर से काम पर लेगे तो मिट्टी के दाम आसमान छू रहे है। इस बार लगातार बारिश के कारण कुंभकारों मिट्टी बर्तन तैयार नहीं हो सके। प्रधानमंत्री ने लोकल के लिए वोकल करने का आह्वान किया लेकिन छोटे कामगारों के लिए किसी भी आर्थिक पैकेज की घोषणा नहीं करने से इनकी हालत खराब है। कई परिवार अपने इस पुस्तैनी धंधे को बंद कर मजदूरी कर रहे हैं। 

 हाड़ौती में 5 हजार कुंभकार परिवार बना रहे दीपक
 दो साल से कोरोना के कारण कुंभकारों का व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया था। नवरात्र के बाद से बाजारों में रौनक लौटी तो लघु उद्योग से जुड़े लोगों को फिर से रोजगार मिलने की आस बनी है। इसी के चलते पांच माह से धूल खा रहे कुंभकारों के चाक इन दिनों तेजी से घूम रहे हैं। हाड़ौती में 5 हजार कुंभकार परिवार है, जो मिट्टी के बर्तन, दीपक, मुर्तियां बनाने का कार्य करते हैं। कोटा में करीब एक हजार परिवार हैं जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। अभी एक-एक कुंभकार 10 हजार से लेकर 20 हजार मिट्टी के दीपक तैयार करने जुटा है। करीब सवा करोड़ दीपक तैयार हो चुके हैं।

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मिट्टी के दीपक जलाने से वातावरण में आती है शुद्धता
ज्योतिषाचार्य पंडित अरुण श्रृंगी ने बताया कि पुरातन समय से ही घी के दीपक जलाकर पूजा अर्चना की जाती है। इसके पीछे का लॉजिक यह है कि घी के दीपक जलाने से वातावरण में शुद्धता आती है। पुराने समय से ही हवन यज्ञ धूप दीप जलाकर वातावरण को शुद्ध बनाते आ रहे हैं। जिससे नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। इससे लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है । पिछले तीन दशक से महंगाई और आधुनिक शैली के चलते  घी के दीपक की जगह तेल के दीपक ने ले ली और  अब तो इसका चलन भी कम होने लगा है। लोग घरों में दीपावली पर इलेक्ट्रानिक लड़िया और मोमबत्ती जलाने लगे हैं। इससे तो वातावरण शुद्ध होने के बजाए प्रदूषित हो रहा है। 

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पत्थर के चाक पर काम करने से मिलती है संतुष्टि
धनराज प्रजापति ने बताया कि पुराने पारंपरिक पत्थर के चाक की जगह अब इलेक्ट्रॉनिक चाक ने ले ली है। उससे काम जल्दी हो जाता है। लेकिन जो आत्मीय जुड़ाव डंडे से मिट्टी के चाक चलाने में मिलता है वह मोटर चलित चाक पर  नहीं मिलता है। मिट्टी के चाक में फिजिकल वर्क ज्यादा होने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और आइटम में फिनिशिंग अच्छी आती है। 

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