5 साल में एक भी मिलावटखोर सलाखों के पीछे नहीं

पांच साल में कुल 858 सैंपल लिए और 316 नमूने हो गए फेल

5 साल में एक भी मिलावटखोर सलाखों के पीछे नहीं

पिछले पांच सालों में चिकित्सा एवं खाद्य सुरक्षा विभाग ने शहर में कुल 858 सैंपल लिए। जिनमें 316 जांच में फेल हो गए। वहीं, 8 सैंपल अनसेफ मिले। यानी, लैब से मिली जांच रिपोर्ट में खाद्य पदार्थ के यह सैंपल मानव शरीर के लिए घातक साबित हुए। इसके बावजूद विभाग 5 साल में एक भी मिलावटखोर को सलाखों के पीछे नहीं भेज सका।

कोटा। शिक्षा के साथ खान-पान के लिए मशहूर कोटा के दामन से मिलावट का दाग मिटने के बजाए लगातार बढ़ रहा है। चिकित्सा एवं खाद्य सुरक्षा विभाग का शुद्ध के लिए युद्ध अभियान महज खानापूर्ति साबित हो रहा है। अभियान प्रभावी कार्रवाई की बजाय नमूने लेने और जुमार्ना लगाने तक सीमित रह गया। आलम यह है कि दिवाली हो या होली, मिलावट का खेल खुलेआम चिकित्सा विभाग की आंखों के सामने खेला जाता है। इसके बावजूद जिम्मेदार आंखें मूंदे हैं। पिछले पांच सालों में चिकित्सा एवं खाद्य सुरक्षा विभाग ने शहर में कुल 858 सैंपल लिए। जिनमें 316 जांच में फेल हो गए। वहीं, 8 सैंपल अनसेफ मिले। यानी, लैब से मिली जांच रिपोर्ट में खाद्य पदार्थ के यह सैंपल मानव शरीर के लिए घातक साबित हुए। इसके बावजूद विभाग 5 साल में एक भी मिलावटखोर को सलाखों के पीछे नहीं भेज सका।  दरअसल, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण मिलावटखारों में कानून का डर समाप्त हो गया। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ जुमार्ना वसूला जा रहा। जिससे मिलावटखोरों के हौसलें बुलंद हो रहे हैं। साथ ही मुनाफाखोरों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है।

तीन कैटेगरी में होती है जांच-

1. सब स्टैंडर्ड फूड: जिनमें खाने की वस्तु निर्धारित मानक पूरे नहीं होते, उसे सब स्टैंडर्ड कैटेगरी में रखा जाता है। इसमें सिर्फ जुमार्ने का ही प्रावधान है। इस कैटेगरी में दोषी पाए जाने पर संबंधित व्यक्ति पर अधिकतम पांच लाख रुपये का जुमार्ना लग सकता है।

2. मिस ब्रांडिग फूड: इसमें खाद्य वस्तु को दूसरे ब्रांड के नाम से बेचने पर, ब्रांड एक्सपायरी डेट का होना, ब्रांड की वस्तु की पैकेजिंग पर लेबल की कमी या अन्य किसी तरह की गड़बड़ी, खाद्यय पदार्थ सामग्री में न्यूट्रिशन की कमी पाए जाने पर उसे मिस ब्रांडिग कैटेगरी में रखा जाता है। इसमें भी जुर्माने का प्रावधान है। इसमें दोषी पाए जाने पर संबंधित दुकानदार पर अधिकतम 3 लाख रुपए तक का जुर्माना किया जाता है।   

3. अनसेफ फूड : इसमें यदि खाद्य पदार्थ बिलकुल भी खाने लायक नहीं है और उसके खाने से व्यक्ति की जान चली जाए या स्वास्थ्य खराब हो जाए तो उसे अनसेफ की कैटेगरी में रखा जाता है। इसमें केस दर्ज होता है और मामला कोर्ट में चलता है। कोर्ट द्वारा इसमें जुर्माने के साथ जुर्माने का भी प्रावधान है। 

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सजा का प्रावधान फिर भी बच निकल रहे मिलावटखोर 
विभाग की लचर जांच रिपोर्ट के कारण पिछले पांच साल में अनसेफ के 8 मामलों में किसी एक को भी सजा नहीं हो पाई। वर्तमान में सभी केस न्यायालय में विचाराधीन हैं। जबकि, अनसेफ मामलों में जुमार्ने से लेकर कारावास तक का प्रावधान है। इसके बवजूद लोगों की जिंदगी खतरे में डालने वाले मिलावटखोर बैखोफ हैं। जुमार्ना देकर आसानी से छूट जाते हैं और फिर से मिलावट के काले धंधे में लिप्त हो जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तब मिलावटखोर सवालों के पीछे नहीं पहुंचेंगे तब तक मिलावट का खेल नहीं रूकेगा। 

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सजा नहीं जुर्माने पर रहता फोकस
खाद्य सुरक्षा विभाग लालची दुकानदारों के खिलाड़ सख्त कार्रवाई करने के बजाए जुमार्ने पर ही फोकस रखते हैं। वर्ष 2019 से अक्टूबर 2022 तक विभाग ने 316 प्रकरणों में कुल 23 लाख 30 हजार रूपए का जुमार्ना वसूला है। वहीं, अनसेफ मामलों में मिलाटखोरों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कोई प्रभावी कोशिश नहीं की गई। लचर जांच रिपोर्ट का फायदा उठाकर लालची दुकानदार कानून के शिकंजे से बच निकल रहे हैं। वहीं, जिम्मेदार अधिकारी अनसेफ प्रकरणों को साबित नहीं कर पाते। 

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858 में से 316 नमूने फेल
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य सुरक्षा विभाग ने कोटा शहर में वर्ष 2018 से अक्टूबर 2022 तक कुल 858 सैंपल लिए। जिनमें से 316 जांच में फेल हो गए। इसके अलावा 8 सैंपल शरीर के लिए घातक यानी अनसेफ मिले। सभी अनसेफ प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन हैं। त्योहारों पर लालची दुकानदार मोटा मुनाफा कमाने के लिए लोगों के भरोसे को तार-तार कर रहे हैं और मिठाइयों के नाम पर बीमारियां परोस रहे हैं। सख्त कार्रवाई के अभाव में शुद्ध के लिए युद्ध अभियान परवान नहीं चढ़ सका। जुमार्ना चुकाने के बाद दुकानदार मिलावट का खेल फिर से शुरू कर देता है। 

खुद ही बरतें सतर्कता
त्योहारी सीजन में खाने-पीने की चीजों विशेषकर मिठाई के मामले में खुद ही सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। क्योंकि, फूड संबंधी मामलों में कानूनी प्रक्रिया इतनी लचीली है कि मिलावट पाए जाने के बाद भी दोषी को सजा नहीं मिल पाती। फूड संबंधी जांच सिर्फ सैंपल लेने तक और उसके बाद लेबोरेट्री से आने वाली रिपोर्ट तक ही सीमित रह जाती है। तब तक मिलावटी सामान बाजार में बिक जाता है, तब तक लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ चुका होता है।

14 दिन में आती है जांच रिपोर्ट
खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2022 से पहले शुद्ध के लिए युद्ध अभियान सिर्फ त्योहारी सीजन में ही चलाया जाता था। लेकिन इस वर्ष सरकार ने इसे 12 महीने ही जारी रखने के आदेश दिए हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम लगातार शहरभर की सभी दुकानों पर कार्रवाई कर खाद्यय पद्धार्थों के सैंपल लेती है। नमूनों की जांच एमबीएस अस्पताल परिसर में बनी लैब में की जाती है और जांच रिपोर्ट 14 दिनों में मिल जाती है। सैंपल फेल होने पर संबंधित दुकानदार के खिलाफ कार्रवाइ की जाती है। 

मिलावटी खाद्य पदार्थ धीमा जहर
मिलावटी खाद्य पदार्थ धीमा जहर है, जो दीमक की तरह धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर देता है। इसके दुष्प्रभाव कई तरह की गंभीर बीमारियों के रूप में सामने आते हैं। लीवर, किडनी कमजोर होने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। फूड पॉइजनिग, एनीमिया, त्वचा संबंधी बीमारियां हो जाती है। पेद दर्द, वायरल बुखार, उल्टी दस्त सहित कई परेशानी हो सकती है। विदेशों में खाद्य पदार्थों को लेकर सख्त नियम है। वहां 99 प्रतिशत शुद्धता का पैमाना तय किया हुआ है। मिलावट को हर कीमत पर रोकना जरूरी है।  
- डॉ. विनोद पंकज, सीनियर शिशुरोग विशेषज्ञ, रामपुरा जिला अस्पताल

खराब खाद्य पदार्थ से होती है कई बीमारियां
मिलावटी खाद्य पदार्थ के सेवन से कई तरह की गंभीर बीमारियां होती हैं। लीवर व किडनी की समस्या, पेट में गड़बड़ी, डायरिया, कैंसर, उल्टी, दस्त, जोड़ों में दर्द, पाचन तंत्र, रक्तचाप व हृदय संबंधी परेशानियां,  त्वचा संबंधी बीमारियां हो जाती है। कई बार मिलावटी खाने से गर्भस्थ शिशु और उसके मस्तिष्क तक को नुकसान पहुंचता है। सोचने की क्षमता भी प्रभावित होती है। इसके  अलावा एसिडिटी, अल्सर, लीवर पर सूजन तक आ सकती है। हेपेटाइटिस होने के साथ आमाशय पर भी असर पड़ सकता है। 
- डॉ. मोहम्मद रफीक, सीनियर फिजिशियन न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा

लगातार कर रहे कार्रवाई
खाद्य सामग्री के लगातार सैंपल लेकर कार्रवाई की जा रही है।  जांच के लिए नमूने एमबीएस स्थित लैब में भेजते  हैं।  जहां सैंपल सब स्टैंडर्ड और मिस ब्रांडिग  के आते हैं तो जुर्माने की कार्रवाई करते हंै। वहीं, कोई सैंपल अनसेफ होता है तो संबंधित दुकानदार अपील करता है, जिसके बाद कोर्ट के माध्यम से स्थानीय लैब वह सैंपल पूना व मैसूर की लैब में जांच के लिए भेजती है। यदि वहां से भी जांच में सैंपल अनसेफ आता है तो कोर्ट द्वारा सजा की कार्रवाई की जाती है।            
- डॉ. जगदीश सोनी, सीएमएचओ

एक्सपर्ट व्यू

7 साल की सजा और 10 लाख के जुर्माने का प्रावधान
फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट 2006 के अध्याय 9 की धारा 48 से 67 तक अपराध एवं जुर्माने का प्रावधान है। इसमें अलग-अलग श्रेणी में जुर्माना तय किया है।  मिस ब्रांड पर 25 हजार से 5 लाख तक का जुमार्ना लगाया जा सकता है। वहीं, शारीरिक नुकसान होता है तो ऐसी स्थिति में अलग-अलग तरह के नुकसान के लिए अलग-अलग कारावास की सजा का प्रावधान है, जो 6 माह से 6 वर्ष तक की सजा हो सकती है। साथ ही 1 से 5 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। किसी मिलावटी सामग्री से मृत्यु हो जाए तो 7 वर्ष का कारावास और 10 लाख का जुर्माना का प्रावधान है। कानून की जटिलताओं के कारण मिलावटखोर बच निकलते हैं।  यदि दूषित खाद्य सामग्री के सेवन से किसी उपभोक्ता की मृत्यु होती है तो उसे 5 लाख तक की क्षतिपूर्ति दिए जाने का प्रावधान है, अन्य स्थिति में 1 से 3 लाख क्षतिपूर्ति दी जाती है।     

- विवेक नंदवाना, सीनियर एडवोकेट, कोटा

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